'बहेंगे अश्क उसके तो क्या कोई पोंछता होगा…' साहित्य आजतक में चला कविता का जादू, सुनकर झूम उठे लोग

दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में चल रहे साहित्य के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2025' का आज दूसरा दिन है. यहां 'कविता की नई बहार' सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में युवा कवि-कवयित्रियों ने शानदार रचनाएं पेश कर जमकर वाहवाही लूटी.

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साहित्य आजतक 2025 के कवि सम्मेलन में चला शब्दों का जादू. (Photo: ITG) साहित्य आजतक 2025 के कवि सम्मेलन में चला शब्दों का जादू. (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:40 PM IST

देश की राजधानी दिल्ली में चल रहे 'साहित्य आजतक 2025' का आज दूसरा दिन है. साहित्य के इस महोत्सव का आयोजन मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में किया जा रहा है. ज्ञान, शब्द और अभिव्यक्ति का यह महाकुंभ आज शनिवार को और भी ऊर्जावान हो उठा. दस्तक दरबार पर शुरू हुए सत्र 'कवि सम्मेलन : कविता की नई बहार' में देश के अलग–अलग हिस्सों से आए युवा, प्रतिभाशाली और अपनी सशक्त रचनाओं के लिए पहचाने जाने वाले कवि एक साथ मंच पर जुटे.

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इस कवि सम्मेलन में स्वयं श्रीवास्तव, वरुण आनंद, अभिसार शुक्ला, मनु वैशाली, मणिका दुबे और कायनात शाहिदा ने अपनी रचनाएं पेश कीं. इन कवि और कवयित्रियों ने प्रेम, समाज, राजनीति, संवेदना, विडंबना और रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े अनुभवों को अपनी कविताओं के माध्यम से बेबाकी और सुंदरता से प्रस्तुत किया.

मंच पर जोरदार तालियां गूंज उठीं. दूसरे दिन का यह सत्र साहित्य प्रेमियों के लिए एक बेहतरीन अवसर साबित हुआ, जहां नई पीढ़ी के कवियों ने अपनी कलम से न सिर्फ नई दिशाएं दिखाईं, बल्कि कविता की परंपरा को समकालीन रूप देते हुए सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर दिया.

कवयित्री कायनात शाहिदा ने अपनी खूबसूरत रचनाएं पेश कर खूब दाद लूटी... उन्होंने पढ़ा-

वो इस जमाने की हद से आगे गुजर चुका है
वो जिसको पागल बुला रहे हैं जमाने वाले

जमाने वालों हमारे होने की कद्र समझो
कहां मिलेंगे हम ऐसे जज्बे लुटाने वाले

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ये जो इक आग है पानी में लगी अच्छी है
वो जो इक फूल है बंजर में खिला अच्छा है

अब हमें खुल के अदावत पे उतर आने दो
अब मुहब्बत की नुमाइश नहीं होगी हमसे.

कायनात के बाद कवि अभिसार शुक्ला ने कविताएं पेश कीं. उन्होंने पढ़ा-

रिस रिस के जैसे दरिया रवानी पे आ गया
वैसे ही दुख भी आंख के पानी पे आ गया
ये नौकरी ये शायरी ये इश्क और देश
सारे के सारा बोझ जवानी पे आ गया.

पतंगें चरखियां हैं पर उड़ाना भूल जाता हूं
मैं तुमसे इश्क करता हूं बताना भूल जाता हूं
बचाना चाहता हूं आठ वर्षों से वही इक खत
जिसे पढ़ते हुए अक्सर जलाना भूल जाता हूं.

वहशत गोद में सर रखेगी और मुहब्बत हो जाएगी
ये दुनिया पहले मर्द बनेगी फिर औरत हो जाएगी.

इसी के साथ अभिसार ने 'वो एक नाम राम हैं' शीर्षक से खूबसूरत रचना सुनाई, जिसे खूब सराहा गया.

वहीं युवा कवयित्री मनु वैशाली ने अपनी प्रस्तुति से सुनने वालों का मन मोह लिया. मनु वैशाली की कविताओं ने आध्यात्मिकता और प्रकृति का ऐसा संगम रचा कि हर पंक्ति नदी की तरह बहती हुई मन में उतरती चली गई. उनके शब्दों में शास्त्रीय सौंदर्य भी था और समकालीन संवेदना भी, जो सुनने वालों को भीतर तक छू गई. उन्होंने पढ़ा-

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जगती का मंगल अभिनंदन करने को
तन जोगन मन जीवन चंदन करने को

पांवों की पायल के घुंघरू सूचक हैं
इन पांवों के खुलके नर्तन करने को

मान कहो क्या उन शिखरों का जिनसे धारा न फूटे
पूजें वो तट कौन भला जो हों बहते जल से छूटे.

जिस सागर को धैर्य धराया उसको लहरें गतियां दीं
पर गतियों पर सीमा बांधी पर धरती को नदियां दीं

जब नदियों में बहता जल था फिर अंबर में बादल क्यों
बारहमासी है जल बादल फिर चातक पागल क्यों.

शोर मचाती नदियों को क्यों शिखरों का अवसाद मिला
क्यों सागर के शांत तटों को लहरों का संवाद मिला.

मनु वैशाली के बाद कवि स्वयं श्रीवास्तव को मंच पर आवाज दी गई. उनकी रचनाओं ने समय, समाज और राजनीति पर एक सीधी, सटीक और प्रभावी टिप्पणी की. स्वयं की प्रस्तुति में व्यंग्य की धार और संवेदनाओं का वजन दोनों साथ चले, जिसने सभागार को मंत्रमुग्ध कर दिया. उनकी रचनाएं देखिये...

ऐसा नहीं कि सारा फलक मांग रहे हैं
हम सिर्फ अपने हिस्से का हक मांग रहे हैं
सरकार तुम चलाओ हमको नौकरी तो दो
रोटी के लिए थोड़ा नमक मांग रहे हैं.

बातों का दौर है ये कयासों का दौर है
जिंदों की अर्थियों पे बताशों का दौर है
जो तृप्ति उनके पास समंदर रखा मिला
प्यासों के इर्द गिर्द तमाशों का दौर है.

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ठहरी सिकंदरी का मुकद्दर नहीं मिला
दर छोड़ के गए तो कहीं दर नहीं मिला
हर रोज सोचते हैं कि हम लौट जाएंगे
लौटे तो अपने घर में अपना घर नहीं मिला.

न जीत में न हार के जाने में मजा है
जितना कि दिल की आग बुझाने में मजा है
इस जिंदगी के खेल में शामिल जुआरियों
बस जान लो कि दांव लगाने में मजा है.

शायद वो कोई रंग है शायद वो फूल है
उसकी मुहब्बतों का भी अपना उसूल है
उसने कहा कि साथ मेरे चल सकोगे तुम
हमने कहा कि सात जनम तक कबूल है.

इसी के साथ स्वयं ने एक गीत सुनाकर लोगों को मुग्ध कर दिया... उन्होंने पढ़ा-

कुछ गीतों की पूंजी और बस बांसुरी बजानी आती है
इस वंशी की धुन के आगे इक पेट खड़ा सीना ताने
मैं डूब रहा खुद उसको कैसे उम्मीदों का तृण दे दूं

मन के दर्पण के कोने में इक साध अधूरी रहती है
चंदा कितना भी चाहे पर तारे से दूरी रहती है

किस्मत की देवी की बेटी का हाथ मुझे कैसे मिलता
वो मिला उसे जिसमें किस्मत की रेखा पूरी रहती है

मन का मनमीत मिले न मिले जीवन सबका कट जाता है
जो मुझे चुकाने हैं वे तुमको क्यों ऋण दे दूं.

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इनके बाद कवयित्री मणिका दुबे को आवाज दी गई. उनके शब्दों में इंतजार, प्रेम और पीड़ा की महीन बुनावट ऐसे खुली कि सुनने वालों की आंखों में कहानी-सी तैरने लगी. उनकी पंक्तियां देखिये...

वो अब क्या देखता होगा वो अब क्या सोचता होगा
वो या तो सो रहा होगा वो या तो जागता होगा

हमारे शहर में गिरने लगा है जोर का पानी
वहां बारिश हुई होगी तो क्या वो भीगता होगा

मैं उसको हर जगह हर ओर ऐसे ढूंढ़ती हूं कि
कोई पागल ही होगा जो किसी को ढूंढ़ता होगा

मैं सोते जागते तस्वीर उसकी देख लेती हूं
वो क्या भूले से भी तस्वीर मेरी देखता होगा.

परेशानी में मुझको डालती है बात ये अक्सर
बहेंगे अश्क उसके तो क्या कोई पोंछता होगा.

इसी के साथ उन्होंने एक गीत पढ़ा, गीत की पंक्तियां देखिये...

कुछ तकलीफें ऐसी होती हैं जो कह लेने से कम होती हैं
तुम दफ्तर से आकर मुझको अपने दिल का हाल बताना
जैसे सुख में रखा है वैसे दुख में साझेदार बनाना
मुझे जरूरी सा लगता है तुम पर आया भार उठाना.

इनके बाद कवि वरुण आनंद को आवाज दी गई. उनकी कविताओं में युवा प्रेम की शरारत भी थी और रिश्तों की गहराई भी, जिसे सुनते हुए लोग मुस्कुराने लगे. वरुण ने पढ़ा-

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नजर मिला के चुराने से कुछ नहीं होगा
बहानेबाज बहाने से कुछ नहीं होगा

गले लगा कि मेरे दिल को चैन आ जाए
ये हाथ वाथ मिलाने से कुछ नहीं होगा

तू मेरा है तो बता चीखकर जमाने को
ये बात मुझको बताने से कुछ नहीं होगा

किसी को जान ले फिर उसको अपनी जान बना
यूं सबको जान बनाने से कुछ नहीं होगा.

सखी के पांव में मेहंदी लगी है
मुई के पांव में मेहंदी लगी है

उदासी साथ चलती है हमारे
खुशी के पांव में मेहंदी लगी है.

वो जिसके साथ घर से भागना था
उसी के पांव में मेहंदी लगी है

समंदर से कहो खुद आए मिलने
नदी के पांव में मेहंदी लगी है

किसी के पांव भीगे हैं लहू से
किसी के पांव में मेहंदी लगी है

सभी कहने को मेरे हमकदम हैं
सभी के पांव में मेहंदी लगी है

मुस्कुराओ तो बात बन जाए
पास आओ तो बात बन जाए

वैसे पीता नहीं हूं चाय मैं
तुम पिलाओ तो बात बन जाए.

चांद सितारे फूल परिंदे शाम सवेरा एक तरफ
सारी दुनिया उसका चरबा उसका चेहरा एक तरफ

वो लड़कर भी सो जाए तो उसका माथा चूमूं मैं
उससे मुहब्बत एक तरफ है उससे झगड़ा एक तरफ

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जिस शय पर वो उंगली रख दे उसको वो दिलवानी है
उसकी खुशियां सबसे अव्वल सस्ता महंगा एक तरफ

जख्मों पर मरहम लगवाओ लेकिन उसके हाथों से
चारासाजी एक तरफ है उसका छूना एक तरफ

सारी दुनिया जो भी बोले सबकुछ शोर शराबा है
सबका कहना एक तरफ है उसका कहना एक तरफ.

---- समाप्त ----

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