साहित्य आजतक: जैसी कविताएं 30 साल पहले होती थीं, वैसी आज नहीं: गगन गिल

 साहित्य आजतक आज आखिरी दिन है. कार्यक्रम के तीसरे दिन हल्लाबोल मंच के सत्र आज की कविता में गगन गिल पहुंचीं. इस दौरान उन्होंने आज की कविता की मौजूदा स्थिति पर अपनी बात रखी.

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गगन गिल गगन गिल

देवांग दुबे गौतम

  • नई दिल्ली,
  • 18 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 1:24 PM IST

'साहित्य आजतक' के हल्लाबोल मंच के सत्र 'आज की कविता' में हिंदी की नामीगिरामी कवयित्री गगन गिल ने शिरकत की. गगन गिल ने इस दौरान आज की कविता की मौजूदा स्थिति पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि 30 साल पहले जो कविताएं होती थीं वैसी आज नहीं हैं. पहले की कविताओं में विस्तार हुआ करता था, जो आज नहीं दिखता. उन्होंने कहा कि समय के साथ कविता की भाषा एडिट होती है.

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उन्होंने कहा कि आज की कविताओं में शब्द कम होते हैं. आज के युवा कविता तो बढ़ियां लिख रहे हैं लेकिन एक आवाज को दूसरी आवाज से अलग करना संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि जब तक कोई लेखक अपनी भाषा को लेकर अपनी छाप नहीं छोड़ेगा उसे कोई नहीं पढ़ेगा. और आज के लेखक में यही सबसे बड़ी चुनौती है.

उन्होंने कहा कि इंटरनेट से जो चीज उठाकर कॉपी पेस्ट की जाती है वह अपने आप में ऑरिजनल चीज होती है. इस दौरान गगन गिल ने मां और गाय पर लिखी एक कविता भी सुनाई.

उन्होंने कहा कि कविता की कभी धार कम नहीं होती है. कविता का काम प्रेरण देना नहीं है. कविता का काम सबसे पहले कवि के अपने अंदर के काम को सुलझाना होता है और उसके बाद पाठक को. गगन गिल ने कहा कि कविता में हमें दिल की बात समझनी है, यह चीज हमें इंटरनेट नहीं बताएगी.

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बता दें कि गगन गिल 'एक दिन लौटेगी लड़की', 'अंधेरे में बुड्ढा', 'यह आकांक्षा समय नहीं', और 'थपक-थपक दिल थपक थपक' जैसी कविताएं लिख चुकी है.

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