'एक नहीं बल्कि दो पाकिस्तान हैं...' साहित्य आजतक में लेखक असगर वजाहत ने क्यों कही ये बात

दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में शब्द-सुरों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का आखिरी दिन है. यह कार्यक्रम 24 नवंबर से शुरू हुआ था. यहां किताबों की बातें हो रही हैं. फिल्मों की बातें हो रही हैं. सियासी सवाल-जवाब किए जा रहे हैं और तरानों के तार भी छेड़े जा रहे हैं.

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साहित्य आजतक के मंच पर उपस्थित लेखक कहानीकार असगर वजाहत. साहित्य आजतक के मंच पर उपस्थित लेखक कहानीकार असगर वजाहत.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 26 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 8:04 PM IST

Sahitya Aaj Tak 2023: दिल्ली में 24 नवंबर से सुरों और अल्फाजों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का आज अंतिम दिन है. इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में कई जाने-माने लेखक, साहित्यकार व कलाकार शामिल हो रहे हैं. साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' के मंच पर आज ये समय और साहित्य सेशन में लेखक असगर वजाहत शामिल हुए.

असगर वजाहत का जन्म 5 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में हुआ. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की. इसके बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च किया. दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में अध्यापन किया. असगर वजाहत 5 वर्षों तक हंगरी के बुडापेस्ट में भी अध्यापक रहे. यूरोप, अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में व्याख्यान दिया. इसके बाद वापस दिल्ली लौट आए और पढ़ाने लिखाने के बीच लेखन जारी रखा.

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आज के सेशन में उन्होंने मनुष्य के कर्म और भाग्य को लेकर कहानी सुनाई. बीते दिनों असगर वजाहत के उपन्यास पर गांधी और गोडसे को लेकर एक फिल्म बनी थी. इस पर कई सवाल भी उठे थे, इस संबंध में जब असगर वजाहत से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी और गोडसे के बीच में दोनों को समझने की कोशिश की गई है. हमें ये समझना चाहिए कि हमारे समाज के लिए क्या सही है और क्या गलत है. बिना सुने किसी के बारे में कोई भी राय नहीं बना लेनी चाहिए.

असगर वजाहत ने कहा कि आज युवा समाज कोई भी काम मिलकर ही कर सकता है. आगे बढ़ सकता है. ये पूरा संसार इसी से चलता है. इस तरह की धारणा बननी चाहिए. साहित्य और कलाएं इंसान को जोड़ने का काम करती है. ये मनुष्य की संवेदना को बढ़ाती हैं. मानवीयता को बढ़ाती हैं. हम अगर स्वार्थी हो जाएंगे तो ये समाज नहीं चलने वाला. कोई किसी की चिंता नहीं करेगा तो समाज आगे नहीं बढ़ सकेगा.

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उन्होंने कहा कि मैं जिन जिन देशों में गया, वहां अनुभव किया कि लोग मानवता पर विश्वास करते हैं. उन्होंने मेरी बहुत सहायता की. उनके अंदर किसी भी प्रकार की कोई गलत भावना नहीं थी. 

पाकिस्तान यात्रा के सुनाए अनुभव

असगर वजाहत ने अपने पाकिस्तान यात्रा के अनुभव बताते हुए कहा कि एक नहीं बल्कि दो पाकिस्तान हैं, एक पाकिस्तान सरकार का पाकिस्तान है, दूसरा वहां के लोगों का पाकिस्तान है, जो वहां रहते हैं. पाकिस्तानी लोग किसी भी दूसरे देश के लोगों के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं. वहां के आम लोगों का भी रवैया अच्छा है. 

उन्होंने बताया कि लाहौर में एक जगह चाय पी, वहां चायवाले को जब पता चला कि मैं भारत से हूं तो उसने कहा कि मैं आपसे पैसे नहीं लूंगा. तो वहां के आम लोग चाहते हैं कि दोस्ती हो. मगर सरकार ऐसा नहीं चाहती. राजनेताओं ने सामाजिक स्तर पर लोगों को बांटने का काम किया है.

नाटक पर आमिर खान बना रहे हैं फिल्म

असगर वजाहत के नाटक 'जिसने लाहौर नहीं देखा उसका जन्म ही नहीं हुआ' काफी प्रसिद्ध है. इस नाटक पर आमिर खान 'लाहौर 1947' फिल्म बना रहे हैं. राजकुमार संतोषी निर्देशक हैं. ये एक मेगा प्रोजेक्ट है. इसमें बताया जाएगा कि मनुष्यता कितनी महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि अगर देश, समाज और पूरी दुनिया जिस रूप में चल रही है, उसी दिशा में चलती रही तो भविष्य में बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा. जीवन संकट में खड़ा हो जाएगा. इस बारे में सोचना बहुत जरूरी है.

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'पर्यावरण को लेकर बेहद गंभीर होने की जरूरत'

असगर वजाहत ने कहा कि भविष्य में आने वाले संकटों से निपटने के लिए पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता, ऊर्जा के प्रयोग में कमी लाना, चेतना इन सभी बातों पर गंभीरता से सोचना होगा और काम करना होगा. हम ऐसा जीवन बना रहे हैं, जो जीवन कूड़ा पैदा कर रहा है और वो कूड़ा खत्म भी नहीं होने वाला है. इसलिए हमें इस पर सोचना होगा.

'समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें युवा'

समय और साहित्य के समक्ष कौन से संकट और अच्छाइयां हैं? इसके जवाब में असगर वजाहत ने कहा कि आज के युवाओं को पाठ्यक्रम से बाहर उन्हें मानवीय बनाने वाली पढ़ाई भी करनी चाहिए. अपनी रुचि के अनुसार रास्ता चुनना चाहिए. काम करना चाहिए. युवा अपनी जिम्मेदारी अपने समाज के प्रति कम महसूस करते हैं, अपने समाज को आप ही अच्छा बना सकते हैं. इसलिए युवाओं को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियां समझनी चाहिए. उन्हें जागरूक होना चाहिए.

साहित्य के लिए अलग अलग माध्यमों का उपयोग होना चाहिए. फिल्म, नाटक इन सब क्षेत्रों में साहित्य को जाना चाहिए. हिंदी क्षेत्र के रचनाकार मीडिया और फिल्म से अपने आप की दूरी को कम करें.

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