किसी कृति के साहित्यिक होने न होने का निर्णय समालोचक नहीं, साहित्य प्रेमी करते हैं: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

साहित्य आजतक 2024 के दूसरे दिन महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 'साहित्य आजतक' के मंच पर साहित्यकारों को 'आजतक साहित्य जागृति सम्मान' प्रदान किया. 8 साहित्यकारों को सम्मान से नवाजा गया. गीतकार गुलजार को 'आजतक साहित्य जागृति लाइफ टाइम अचीवमेंट' सम्मान दिया गया.

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 'साहित्य आजतक' में शिरकत की (फोटो साभार: सीडीके- चंद्रदीप कुमार) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 'साहित्य आजतक' में शिरकत की (फोटो साभार: सीडीके- चंद्रदीप कुमार)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 23 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:46 PM IST

22 नवंबर से 24 नवंबर तक यानी पूरे तीन दिनों के लिए दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में साहित्य का मेला लगा हुआ है. इस दौरान साहित्य आजतक 2024(Sahitya Aajtak 2024) के दूसरे दिन साहित्यकारों को महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 'साहित्य आजतक' के मंच पर आकर 'आजतक साहित्य जागृति सम्मान' प्रदान किया. गीतकार गुलजार को  'आजतक साहित्य जागृति लाइफ टाइम अचीवमेंट' सम्मान से नवाजा गया.

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंडिया टुडे ग्रुप की सराहना की

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस दौरान साहित्य आजतक में मौजूद सभी लोगों को संबोधित भी किया. उन्होंने आजतक साहित्य जागृति सम्मान विजेताओं को बधाई दी. उन्होंने कहा कि जो समाज या संस्थान साहित्य और साधना से जुड़े रचनाकरों का सम्मान करता है उसके भविष्य के प्रति विश्वास मजबूत होता है. उन्होंने इस सम्मान समारोह की आयोजन के लिए उन्होंने इंडिया टुडे ग्रुप की सराहना की.

यह भी पढ़ें: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 'आजतक साहित्य जागृति सम्मान' के विजेताओं को किया सम्मानित, गुलजार को 'लाइफटाइम अचीवमेंट' अवॉर्ड

'विभिन्न भाषाओं के साहित्य को आजतक लोगों तक पहुंचाए'

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आगे अपने संबोधन में कहा कि हमारे देश में विभिन्न भाषाओं में रचित स्थानीय साहित्य में अखिल भारतीय चेतना सहज ही विद्यमान रहती है. यह रचना रामायण और महाभारत से लेकर स्वाधीनता संग्राम से होते हुए आज के साहित्य में भी दिखाई पड़ती है. पंडित गोपबंधु दास द्वारा भारतीय चेतना की ये अभिव्यक्ति मुझे बहुत प्रिय है. मेरी दृष्टि में भारत भूमि का एक-एक पत्थर शिलाग्राम की तरह उपासना यज्ञ है. भारत का प्रत्येक स्थान मुझे जगन्नाथपुरी धाम की तरह प्रिय है. मैं आजतक से ये अपेक्षा करती हूं कि आज आप सब विभिन्न भारतीय भाषाओं में उपलब्ध साहित्य को लोगों तक पहुंचाए. संथाली भाषा के महाकवि डॉक्टर रामदास टूडू तथा कवि साधु रामचंद्र मुर्मू की हृदय को छूने वाली रचनाओं से भी साहित्य प्रेमियों का परिचय करवाइए. अन्य वंचित वर्गों के साहित्यों जिसे कि सब अल्टर्न लिटरेचर कहा जाता है को भी प्रस्तुत कीजिए. आप साहित्य के छुपे हुए रत्नों को सामने ले आइए.

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उन्होंने आगे कहा कि साहित्य सेवा का जो काम साहित्यिक पत्रिकाएं बहुत कठिनाई से कर पाती हैं उसे टेक्नोलॉजी के माध्यम से आप बहुत बड़े पैमाने पर कर सकते हैं. ऐसा करके आप भारतीय समाज और साहित्य की बहुत बड़ी सेवा करेंगे. जो व्यक्ति परिवार या समाज सही अर्थों में संवेदनशील है, वो अपने बच्चों की सभी जरूरतों को केंद्र में रखता है. इसलिए मैं चाहती हूं कि आप बाल साहित्य को प्रोत्साहित करने का प्रयास भी करें. मौलिक लेखन तथा अनुवाद के माध्यम से बाल साहित्य को समृद्ध बनाना देश और समाज को समृद्ध बनाने में सहायक होगा.

'विश्व का महानतम साहित्य किसी भी तरह की सीमाओं को नहीं मानता'

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने संबोधन में साहित्य की सीमाओं का भी जिक्र किया. वह कहती हैं कि विश्व का महानतम साहित्य किसी भी तरह की सीमाओं को नहीं मानता. यहां तक कि वह निरक्षरता की सीमा को भी नहीं मानता है. ओडिशा के घर-घर में गांव-गांव में साक्षर-निरक्षर सभी लोग भागवत की पंक्तियों को उल्लेख करते रहते हैं. कम पढ़े लिखे किसान और मजदूर संत कबीर के दोहे को उनके गहरे अर्थों को समझते भी हैं. आपस में बातचीत में मुहावरे की तरह उनका प्रयोग भी करते हैं. महानतम साहित्य सबको समझ में आता है इसी को विद्वान लोग साहित्य की संप्रेषणता कहते हैं. इसी कृति के साहित्यिक होने या न होने का निर्णय केवल समालोचक नहीं कर सकते हैं. ये निर्णय सामान्य साहित्य प्रेमी करते हैं.

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'लोगों के दुख दर्द में भागीदार होना साहित्य की पहली शर्त है'

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि तुलसीदास के रामचरित मानस को तत्कालीन विद्वानों ने अनेक कारणों से खारिज कर दिया था. रामचरित मानस की भाषा संस्कृत नहीं थी बल्कि सामान्य लोगों की भाषा थी. यह भी विद्वानों द्वारा उस महाकाव्यों के बहिष्कार का एक प्रमुख कारण था. वो महाकाव्य साहित्य जगत का अमूल्य रत्न माना जाता है. ऐसा देखा गया है कि जो साहित्यकार लोगों के सुख दुःख से जुड़े रहते हैं उनकी रचनाओं को पाठकों से स्नेह प्राप्त होता है. जो साहित्यकर्मी समाज के अनुभवों को केवल रॉ मटेरियल समझते हैं उन्हें समाज भी खारिज कर देता है. ऐसे साहित्यकर्मियों का काम एक छोटे से लिटरेरी इस्टैब्लिशमेंट यानी साहित्यिक तंत्रों में सिमट कर रह जाते हैं. जहां बौद्धिक आडम्बर और पूर्वाग्रह है वहां साहित्य नहीं है.

उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मैं समझती हूं कि लोगों के दुख दर्द में भागीदार होना साहित्य की पहली शर्त है. दूसरे शब्दों में मानवता के प्रवाह में जुड़ना साहित्य की कसौटी है. साहित्य वही है जो मनुष्यता को शक्ति प्रदान करे समाज को बेहतर बनाए. साहित्य मानवता के शाश्वत मूल्यों को बदलती परिस्थितियों के अनुरूप ढालता है. साहित्य समाज को नई संजीवनी देता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों पर अनेक संत कवियों तथा सरस्वती चंद्र नामक उपन्यास सहित कोई साहित्यिक रचनाओं का प्रभाव पड़ा था. साहित्य के ऐसे प्रभाव का सम्मान करना ही चाहिए.

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8 साहित्यकारों को मिला आजतक साहित्य जागृति सम्मान

आजतक साहित्य जागृति उदीयमान लेखिका पुरस्कार सिनीवाली को उनकी 'हेती-सुकन्या अकथ कथा' कृति के लिए मिला. आजतक साहित्य जागृति उदीयमान लेखक का पुरस्कार 2024 अमरेश द्विवेदी को 'रंग पुटुसिया' के लिए मिला है.

आजतक साहित्य जागृति भारतीय भाषा प्रतिभा सम्मान भरत खेनी को 'राजा रवि वर्मा' कृति के लिए दिया गया. आजतक साहित्य जागृति लोकप्रिय लेखक सम्मान यतींद्र मिश्र को पुस्तक 'गुलज़ार सा'ब : हज़ार राहें मुड़ के देखीं के लिए दिया गया.

आजतक साहित्य जागृति भारतीय भाषा प्रदीप दाश को 'चरु चीवर और चर्या' पुस्तक के लिए मिला. आजतक साहित्य जागृति सर्वश्रेष्ठ रचना सम्मान लेखक शिवमूर्ति को 'अगम बहै दरियाव' की रचना के लिए मिला. आजतक साहित्य जागृति सर्वश्रेष्ठ रचना सम्मान 2024 ऊषा प्रियम्वदा को मिला. उन्होंने उपन्यास अर्कदीप्त लिखा है.

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