अब प्यार में हां-ना के लिए इंतजार नहीं होता, आज गांधीजी भी ट्रोल हो जाते!

'हॉफ गर्लफ्रेंड' के लेखक ने कहा कि आज के समय में अगर मां-बाप अपने लड़के-लड़की को घर से निकलने पर पाबंदी लगाते हैं तो लड़का-लड़की के पास सोशल मीडिया का पॉवर है. वो घर बैठे फेसबुक-व्हाट्सऐप के जरिये एक-दूसरे संवाद कर लेते हैं. और यही फेसबुक-व्हाट्सऐप है जिसकी वजह से न्यू जेनेरेशन किसी की हां-ना के लिए लंबा इंतजार नहीं करते हैं.

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साहित्य आजतक में पुण्य प्रसून वाजपेयी के साथ राइटर चेतन भगत साहित्य आजतक में पुण्य प्रसून वाजपेयी के साथ राइटर चेतन भगत

नंदलाल शर्मा

  • नई दिल्ली ,
  • 12 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 7:23 PM IST

साहित्य आजतक के तीसरे और आखिरी दिन सपनों के सौदागर सेशन में राइटर चेतन भगत ने मौजूदा दौर की रिलेशनशिप को अपने अंदाज में परिभाषित किया. चेतन ने कहा कि आज प्यार आसान हो गया है. सोशल मीडिया के दौरे में अब इंतजार नहीं होता. हम भी क्लास में बैठे-बैठे लड़की तक अपना संदेश पहुंचाते थे, उसकी मनाही पर दूसरे दिन फिर दूसरी लड़की पर ट्राय करते थे.

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'इंतजार का दौर खत्म हो गया है'

उन्होंने कहा कि आज की जेनेरेशन में एक नया बदलाव आया है. पहले एक लड़का एक लड़की से हां के इंतजार में 2 से 3 साल बिता देता था. लड़की भी इसी तरह किसी लड़के के इंतजार में साल बिताती थी, लेकिन अब इस दौर में इंतजार का वक्त खत्म हो गया है. ये सब सोशल मीडिया की वजह से हुआ है.

हां-ना के लिए इंतजार नहीं करती नई जेनरेशन

'हॉफ गर्लफ्रेंड' के लेखक ने कहा कि आज के समय में अगर मां-बाप अपने लड़के-लड़की को घर से निकलने पर पाबंदी लगाते हैं तो लड़का-लड़की के पास सोशल मीडिया का पॉवर है. वो घर बैठे फेसबुक-व्हाट्सऐप के जरिये एक-दूसरे संवाद कर लेते हैं. और यही फेसबुक-व्हाट्सऐप है जिसकी वजह से न्यू जेनेरेशन किसी की हां-ना के लिए लंबा इंतजार नहीं करते हैं.

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जब चेतन ने खुद का कराया वैक्स

चेतन भगत ने बताया कि अपनी किताब (वन इंडियन गर्ल) में वे वैक्स के बारे में जिक्र करना चाहते थे. इस किताब के लिए उन्होंने करीब सौ लड़कियों से बातचीत भी की, फिर वो वैक्स कराने के लिए एक ब्यूटी पॉर्लर में जा पहुंचे और खुद का वैक्स करा भी लिया.    

आज के दौर में बापू भी हो जाते ट्रोल

सोशल मीडिया की खामियां बताते हुए चेतन ने कहा कि आज के दौर में अगर 'बापूजी' भी होते तो उन्हें ट्विटर पर ट्रोल का सामना करना पड़ता. अच्छा है कि इस दौर में गांधीजी नहीं हैं.

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