खाकी में धड़कते दिल की बानगी हैं आईपीएस प्रवीण कुमार का 'वह एक और मन'

पुलिसिया पेशे में ज़िन्दगी बहुत मसरूफ़ होती है मगर तजुर्बे भी मीलों लंबे होते हैं. सच को सच कहने की क़ुव्वत रखने वाले पुलिस अफसर प्रवीण कुमार का यह कविता संकलन तो यही बताता है.

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काव्य संग्रह वह एक और मन और आईपीएस प्रवीण कुमार [इनसेट में] काव्य संग्रह वह एक और मन और आईपीएस प्रवीण कुमार [इनसेट में]

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 23 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 10:23 PM IST

न दावा है और न दलील है
क्यों जिरह करके ज़लील है.

जैसा था सब सच रख दिया,
न ये मुख़्तसर न तफ़सील है... इन पंक्तियों के रचयिता हैं आईपीएस कवि प्रवीण कुमार. पुलिसिया पेशे में ज़िन्दगी बहुत मसरूफ़ होती है मगर तजुर्बे भी मीलों लंबे होते हैं. सच को सच कहने की क़ुव्वत रखने वाले और फिलहाल मेरठ परिक्षेत्र में पुलिस महानिरीक्षक के रूप में तैनात प्रवीण कुमार इंजीनियरिंग ग्रेजुएट और क़ानून में परास्नातक हैं, यानी आपने बीई और एलएलएम की डिग्रियां ले रखी हैं, मगर रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के तजुर्बों ने उन्हें और भी ज़्यादा सिखाया, पढ़ाया है. यही कारण है कि उनकी कविताएं न केवल आम इंसान के सुख-दुःख की सच्ची अभिव्यक्ति हैं बल्कि ये सुख-दुःख को समभाव से स्वीकार करने के साहस की संवाहक भी हैं. प्रवीण कुमार ने अपने कवि मन में उमड़ती संवेदनाओं और अनुभूतियों को काव्य संकलन 'वह एक और मन' में संकलित कर प्रस्तुत किया है, जिसे प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित किया है.

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ये शायरी अदाकारी नहीं है लफ़्ज़ों की,
परत-दर-परत एहसास से पिरोना ज़रूरी है.

कवि को बख़ूबी मालूम है कि दिल की गहराइयों से उपजी संवेदनाएं ही कविता का मूल हैं, लफ़्ज़ तो उसका पैरहन मात्र हैं. यही वजह है कि उनकी कविताएं जीवन की विसंगतियों के साथ-साथ आम इंसान के स्वर्णिम भविष्य और उसकी हक़गोई का मंज़रनामा भी हैं. इनमें दार्शनिकता भी है, रुमानियत भी है और सूफ़ीवाद भी. इन कविताओं में एक तरफ अपनों और अपनी तमाम ख़्वाहिशों से बिछड़ जाने की पीड़ा है तो दूसरी तरफ तमाम सपनों को पूरा करने और दुनिया को बेहतर बनाने की ज़िद भी है. 'मुझे चेतना अस्वीकार है' -के उदघोष के साथ इंकलाबी स्वर भी है. सपनों की उड़ान को चाँद-सितारों के पार तक ले जाने की आज़ादी है मगर अपने भाग्य की ख़ुद पहरेदारी करने की बंदिशें भी हैं.

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प्रेम, ज़िन्दगी, ख़्वाहिश, ख़्वाब, प्यास, नज़रिया, तसव्वुर, रात और हक़ीक़त जैसे रवायती मौज़ूआत से लेकर चिड़ियों की गुफ़्तगू, मौन, सोशल मीडिया, स्थानांतरण, अलाव, मुहांसे, कोविड और कोरोना तक पर रची कविताएं इस काव्य-संकलन का हिस्सा हैं. यहां वर्दी, ख़ाकी और लावारिस माल जैसे पुलिस विभाग के प्रचलित शब्दों और प्रतीकों पर भी भाव भरी पंक्तियां हैं. मसलन कुछ पंक्तियां देखें-

थाने के लावारिस मालों की तरह,
जाने-अनजाने, मालखाने के
एक ऐसे वाहन में तब्दील हो गया हूं
जिसका चेसिस नम्बर मिट गया है...
किसी मुआयने की तरह मुझे सिलसिलेवार करो,
वो लम्हें, जो फिसल के भागे हैं,
फिर से उन्हें गिरफ़्तार करो.

कुल मिलाकर 'वह एक और मन' की कविताएं जीवन के विविध पक्षों पर गुफ़्तगू करती हुई दिखाई देती हैं और मनुष्य की सुप्त चेतनाओं को जगाती हुई नज़र आती हैं. इनमें सकारात्मक जीवन की पदचाप सुनी जा सकती है.
यही अहसास का तराशा हुआ नशेमन है,
यहीं उसकी ख़ामोश सदा रहती है.
अपराधियों की धरपकड़, कानून व्यवस्था और शस्त्र की आज़माइश में दिन-रात गुज़ारने वाले बेहद ज़हीन शख़्स की क़लम से उपजे हुए ख़ूबसूरत अशआर अब आपके हवाले हैं. इस काव्य संकलन में कुल 112 कविताएं हैं

# यह समीक्षा उत्तर प्रदेश एसटीएफ़ में डिप्टी एसपी के पद पर तैनात डॉ राकेश मिश्रा ने लिखी है. आपका लेखकीय नाम राकेश तूफ़ान है.
***
पुस्तकः वह एक और मन
रचनाकारः प्रवीण कुमार
विधाः कविता
भाषाः हिंदी
प्रकाशकः प्रभात प्रकाशन
मूल्यः 250 रुपए

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