बुक रिव्यू: कस्तूरबा गांधी के संघर्ष की कहानी 'बा'

इसमें गांधी जैसे व्यक्तित्व की पत्नी के रूप में एक स्त्री का स्वयं अपने और साथ ही देश की आजादी के आंदोलन से जुदा दोहरा संघर्ष देखने को मिलता है. इस उपन्यास से गुजरने के बाद हम उस स्त्री को एक व्यक्ति के रूप में चिन्हित कर सकेंगे, जो महात्मा गांधी के बापू बनने की ऐतिहासिक प्रक्रिया में हमेशा एक खामोश ईंट की तरह नींव में बनी रही.

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कस्तूरबा गांधी के व्यक्तित्व को उजागर करती है 'बा' कस्तूरबा गांधी के व्यक्तित्व को उजागर करती है 'बा'

अंजलि कर्मकार

  • नई दिल्ली,
  • 16 जून 2016,
  • अपडेटेड 9:29 PM IST

महात्मा गांधी को लेकर एक बड़ा और चर्चित उपन्यास लिख चुके गिरिराज किशोर राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'बा' उपन्यास में कस्तूरबा गांधी को लेकर आए हैं. इसमें गांधी जैसे व्यक्तित्व की पत्नी के रूप में एक स्त्री का स्वयं अपने और साथ ही देश की आजादी के आंदोलन से जुदा दोहरा संघर्ष देखने को मिलता है. इस उपन्यास से गुजरने के बाद हम उस स्त्री को एक व्यक्ति के रूप में चिन्हित कर सकेंगे, जो महात्मा गांधी के बापू बनने की ऐतिहासिक प्रक्रिया में हमेशा एक खामोश ईंट की तरह नींव में बनी रही. उस व्यक्तित्व को भी जान सकेंगे, जिसने घर और देश की जिम्मेदारियों को एक धुरी पर साधा.

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ऐसे दस्तावेज बहुत कम हैं, जिनमें कस्तूरबा के निजी जीवन या उनकी व्यक्ति-रूप में पहचान को रेखांकित किया जा सका हो. इसलिए उपन्यासकार को भी इस रचना के लिए कई स्तरों पर शोध करना पड़ा. उन्नीसवीं सादी के भारत में एक कम उम्र लड़की का पत्नी रूप में होना और फिर धीरे-धीरे पत्नी होना सीखना. उस पद के साथ जुडी उसकी इच्छाएं, कामनाएं और फिर इतिहास के एक बड़े चक्र के फलस्वरूप एक ऐसे व्यक्ति की पत्नी के रूप में खुद को पाना, जिसकी ऊंचाई उनके समकालीनों के लिए भी एक पहेली थी. यह यात्रा लगता है कई लोगों के हिस्से की थी, जिसे बा ने अकेले पूरा किया.

यह उपन्यास इस यात्रा के हर पड़ाव को इतिहास की तरह रेखांकित भी करता है और कथा की तरह हमारी स्मृति का हिस्सा भी बनाता है. इस उपन्यास में हम खुद बापू के भी एक भिन्न रूप से परिचित होते हैं. उनका पति और पिता का रूप. घर के भीतर वह व्यक्ति कैसा रहा होगा, जिसे इतिहास ने पहले देश और फिर पूरे विश्व का मार्गदर्शक बनते देखा, उपन्यास के कथा-फ्रेम में यह महसूस करना भी एक अनुभव है.

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लेखक के बारे में
गिरिराज किशोर का जन्म 1937 में मुजफ्फरनगर में हुआ था. 1995 में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका और मॉरीशस की यात्रा की. उनकी प्रकाशित कृतियां इस प्रकार हैं. लोग, चिड़ियाघर, जुगलबंदी, दो, तीसरी सत्ता, दावेदार, यथा-प्रस्तावित, इंद्र सुनें, अन्तर्ध्वंस, परिशिष्ट, यात्राएँ, ढाईघर, गिरमिटिया (उपन्यास) नीम के फूल, चार मोती बेआब, पेपरवेट, रिश्ता और अन्य कहानियां, शहर-दर-शहर, हम प्यार कर लें, गाना बड़े गुलाम अली खां का, जगत्तारणी, वल्दरोजी, आन्द्रे की प्रेमिका और अन्य कहानियां (कहानी-संग्रह); नरमेध, घास और घोड़ा, प्रजा ही रहने दो, जुर्म आयद, चेहरे-चेहरे किसके चेहरे, केवल मेरा नाम लो, काठ की तोप (नाटक); गुलाम-बेगम-बादशाह (एकांकी-संग्रह); कथ-अकथ, लिखने का तर्क, संवाद सेतु, सरोकार (निबंध-संग्रह).

सम्मान: हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश का नाटक पर 'भारतेंदु पुरस्कार’; मध्यप्रदेश साहित्य परिषद का परिशिष्ट उपन्यास पर 'वीरसिंह देव पुरस्कार’; उत्तर प्रदेश हिंदी सम्मेलन द्वारा 'वासुदेव सिंह स्वर्ण पदक’; 1992 का 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार’; 'ढाईघर’ के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा 'साहित्य भूषण सम्मान’; महात्मा 'गांधी सम्मान’, हिंदी संस्थान, उत्तर प्रदेश; 'व्यास सम्मान’, के.के. बिडला न्यास, नई दिल्ली; 'जनवाणी सम्मान’, हिंदी सेवा न्यास, इटावा.

किताब का नाम: बा

प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन

पेज: 276

साल: 2016

आईएसबीएन 13: 9788126728343

मूल्य (पेपरबैक): 225 रुपये

हार्डबाउंड: 536 रुपये

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