साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10 वर्ष 2025: राजनीतिक लेखकों को भारत के इतिहास और एकता की चिंता

'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' में वर्ष 2025 की 'राजनीति' श्रेणी की पुस्तकों में गोपाल कृष्ण गांधी, प्रेम प्रकाश, रोमिला थापर, शाहिद सिद्दीकी, आशुतोष, रीतिका खेरा और गीता हरिहरन की पुस्तकों को स्थान मिला है. खास बात यह कि इनमें से अधिकांश ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों और आदर्शों को वर्तमान की कसौटी पर कसा है. इस शृंखला में स्थान पाने वाले लेखकों की पूरी सूची..

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जय प्रकाश पाण्डेय

  • नोएडा,
  • 24 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:02 PM IST

'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' में वर्ष 2025 की 'राजनीति' श्रेणी की पुस्तकों में गोपाल कृष्ण गांधी, प्रेम प्रकाश, रोमिला थापर, शाहिद सिद्दीकी, आशुतोष, रीतिका खेरा और गीता हरिहरन की पुस्तकों को स्थान मिला है. खास बात यह कि इनमें से अधिकांश ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों और आदर्शों को वर्तमान की कसौटी पर कसा है. 'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' राजनीतिक श्रेणी में स्थान पाने वाले लेखकों और पुस्तकों की पूरी सूची यहां आप पढ़ें, उससे पहले कुछ बातें आपसे...
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किताबें आपको बताती हैं, जताती हैं, रुलाती हैं. वे भीड़ में तो आपके संग होती ही हैं, आपके अकेलेपन की भी साथी होती हैं. शब्द की दुनिया समृद्ध रहे, आबाद हो, फूले-फले और उम्दा किताबों के संग आप भी हंसें-खिलखिलाएं, इसके लिए इंडिया टुडे समूह ने अपने डिजिटल चैनल 'साहित्य तक' पर वर्ष 2021 में पुस्तक-चर्चा कार्यक्रम 'बुक कैफे' की शुरुआत की थी... आरंभ में सप्ताह में एक साथ पांच पुस्तकों की चर्चा से शुरू यह कार्यक्रम आज अपने वृहत स्वरूप में सर्वप्रिय है.
भारतीय मीडिया जगत में जब 'पुस्तक' चर्चाओं के लिए जगह छीजती जा रही थी, तब 'साहित्य तक' के 'बुक कैफे' में लेखक और पुस्तकों पर आधारित कई कार्यक्रम प्रसारित होते हैं. इनमें 'एक दिन एक किताब' के तहत हर दिन पुस्तक चर्चा; 'नई किताबें' कार्यक्रम में हमें प्राप्त होने वाली हर पुस्तक की जानकारी; 'शब्द-रथी' कार्यक्रम में लेखक से उनकी सद्य: प्रकाशित कृतियों पर बातचीत; और 'बातें-मुलाकातें' कार्यक्रम में किसी वरिष्ठ रचनाकार से उनके जीवनकर्म पर संवाद शामिल है. 
'साहित्य तक' पर हर शाम 4 बजे प्रसारित हो रहे 'बुक कैफे' को प्रकाशकों, रचनाकारों और पाठकों की बेपनाह मुहब्बत मिली है. 'साहित्य तक' ने वर्ष 2021 से 'बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला शुरू की तो उद्देश्य यह रहा कि उस वर्ष की विधा विशेष की दस सबसे पठनीय पुस्तकों के बारे में आप अवश्य जानें. 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की यह शृंखला इसलिए भी अनूठी है कि यह किसी वाद-विवाद से परे सिर्फ संवाद पर विश्वास करती है. इसीलिए हमें साहित्य जगत, प्रकाशन उद्योग और पाठकों का खूब आदर प्राप्त होता रहा है. यहां हम यह भी स्पष्ट कर दें कि यह सूची केवल बेहतरीन पुस्तकों की सूचना देने भर तक सीमित है. यह किसी भी रूप में पुस्तकों की रैंकिंग नहीं है. 
'बुक कैफे' पुस्तकों के प्रति हमारी अटूट प्रतिबद्धता और श्रमसाध्य समर्पण के साथ ही हम पर आपके विश्वास और भरोसे का द्योतक है. बावजूद इसके हम अपनी सीमाओं से भिज्ञ हैं. संभव है कुछ बेहतरीन पुस्तकें हम तक न पहुंची हों, यह भी हो सकता है कुछ श्रेणियों की बेहतरीन पुस्तकों की बहुलता के चलते या समयावधि के चलते चर्चा में शामिल न हो सकी हों... फिर भी हमारा आग्रह है कि इससे हमारे प्रिय दर्शकों, पुस्तक प्रेमी पाठकों के अध्ययन का क्रम अवरुद्ध नहीं होना चाहिए. आप खूब पढ़ें, पढ़ते रहें, किताबें चुनते रहें, यह सूची आपकी पाठ्य रुचि को बढ़ावा दे, आपके पुस्तक संग्रह को समृद्ध करे, यही कोशिश है, यही कामना है. 
पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की 'साहित्य तक' की कोशिशों को समर्थन, सहयोग और अपनापन देने के लिए आप सभी का आभार.
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साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' वर्ष 2025 की 'राजनीति' श्रेणी की श्रेष्ठ पुस्तकें हैं ये-
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* The Undying Light: A Personal History of Independent India | Gopalkrishna Gandhi

भारत के जाने-माने बुद्धिजीवियों में से एक की यह आत्मकथा तीन साल के उस लड़के की यादों से शुरू होती है, जब उनके दादा महात्मा गांधी की हत्या हुई थी. आठ हिस्सों में बंटी इस पुस्तक में  देश का बंटवारा, आज़ाद देश की उम्मीदें, लोकतंत्र की शुरुआत, 1962 का भारत-चीन युद्ध, पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद,  प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और  प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु, युवा नौकरशाह के रूप में लेखक का जीवन, प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी का उदय, जयप्रकाश नारायण का आंदोलन, आपातकाल, नेल्ली नरसंहार, ऑपरेशन ब्लूस्टार, इंदिरा गांधी की हत्या, सिखों का नरसंहार; भागलपुर दंगा, राकेश शर्मा की अंतरिक्ष यात्रा, कश्मीरी पंडितों का पलायन, मंडल विरोधी विरोध प्रदर्शन, राजीव गांधी की हत्या; बाबरी मस्जिद विध्वंस; सूरत का ब्यूबोनिक प्लेग; ऑपरेशन शक्ति; ग्राहम स्टुअर्ट स्टेंस और उनके दो बेटों की हत्या, IC 814 का अपहरण; राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का भारत दौरा; राष्ट्रपति नारायणन की चीन यात्रा, गुजरात के भुज का भूकंप, वहां के सांप्रदायिक दंगे, नंदीग्राम हिंसा और मोदी युग तक के बदलाव शामिल हैं. पुस्तक बहुसंख्यकवादी राजनीति द्वारा लोकतांत्रिक गणतंत्रवाद, संघवाद और धर्मनिरपेक्षता के सामने आने वाली चुनौतियों पर भी विचार करती है.
- प्रकाशकः Aleph Book Company
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* History That India Ignored | Prem Prakash
- भारत को पहली बार हिंदुस्तान किसने कहा था?, भारत भूमि पर इस्लाम पहली बार कब आया? हिंदुओं के इस्लाम स्वीकारने की सबसे बड़ी वजह क्या थी? क्या सच में भारत में इस्लाम तलवार के बल पर आया? अगर महात्मा गांधी चाहते तो क्या भगत सिंह की फांसी रुकवा सकते थे? दिल्ली से पहले कलकत्ता ही क्यों थी भारत की राजधानी? 15 अगस्त, 1947 को लाल किला पर पहली बार तिरंगा किसने फहराया था? ऐसे न जाने कितने ही सवाल उठते तो हैं लेकिन नज़रअंदाज़ कर दिए जाते हैं. वरिष्ठ पत्रकार, ANI के संस्थापक और लेखक प्रेम प्रकाश अपनी इस किताब में इन सब सवालों के जवाब देते हैं. उनका मानना है कि इतिहास के अनगिनत, अनजाने पहलुओं पर आज भी परदा पड़ा है. ऐसे कई सच हमसे छुपे रह गए, जिन्हें हर भारतीय को जानना चाहिए. सात दशकों से भी अधिक के काल-खंड में देश और दुनिया की कई ऐतिहासिक घटनाओं को कवर करने वाले इस वयोवृद्ध पत्रकार ने  1962 के भारत-चीन युद्ध, 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध सहित कई प्रमुख संघर्षों और महत्त्वपूर्ण घटनाओं की रिपोर्टिंग की है. वे गिनती के; और संभवतः ऐसे अकेले भारतीय पत्रकार हैं, जिन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर डॉ मनमोहन सिंह तक भारत के सभी प्रधानमंत्रियों के साथ साक्षात्कार किया. यह पुस्तक अनुभवों से भरे एक बेहतरीन पत्रकार के लेखकीय कौशल की बानगी भी प्रस्तुत करती है.
- प्रकाशक: Vitasta Publication
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* जवाहरलाल हाज़िर हो: जेल की सलाखों के पीछे पंडित नेहरू के 3259 दिन | पंकज चतुर्वेदी

- भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू 1922 में पहली बार जेल गए और 1945 में आखिरी बार रिहा हुए. इस बीच वो कुल नौ बार जेल गए. सबसे कम 12 दिनों और सबसे अधिक 1,041 दिनों के लिए. वे कुल 3259 दिन यानी अपने जीवन के सवा आठ साल जेल में रहे. यह पुस्तक एक ऐसे युवा की कहानी है जो उस दौर में देश के चुनिंदा रईस परिवार के इकलौते पुत्र था. लंदन में रह कर विद्यालय से विधि तक की पढ़ाई कर लौटा और किस तरह स्वतंत्रता संग्राम में अपने हिस्से की आहुति दी. कैसे जब वह गांधीजी के संपर्क में आया तो शानो-शौकत की ज़िंदगी त्यागकर देश की आज़ादी के संकल्प को जीवन का लक्ष्य बना लिया. एक दौर ऐसा आया कि घर के सारे लोग जेल में और घर में केवल बच्चे थे. चतुर्वेदी ने इस पुस्तक में पं नेहरू के जेल-जीवन को दर्ज किया है. आख़िर वे कौन से नौ अपराध थे, जिनके कारण बरतानिया हुकूमत ने उन्हें सजाएं सुनाईं और जेल में बंद रखा? कैसा था नेहरू का जेल जीवन? वास्तव में यह कहानी है नेहरू के सन् 1915 से 1947 तक लगातार संघर्ष की. कैसे उन्होंने जेल और अदालत को अपनी बात कहने का माध्यम बनाया.पुस्तक हमारी आज़ादी की यात्रा, कारावास और कानून के संकरे गलियारों से होते हुए हमारे संविधान तक पहुंची कैसे पहुंची. यह महज अदालती कार्यवाही का दस्तावेज नहीं हैं, बल्कि नेहरू के जेल के आने और जाने के दौरान घटित हो रही महत्त्वपूर्ण घटनाओं और स्वतंत्रता संग्राम के अनगिनत-अनाम सैनानियों की गाथा है.
- प्रकाशक: पेंगुइन रैंडम हाउस
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* Reclaiming Bharat: What Changed in 2024 and What Lies Ahead | Ashutosh

-  भारतीय लोकतंत्र में 'अबकी बार 400 पार' नारे की अपनी ही कहानी है. 2024 के आम चुनावों में एक तरफ बहुतेरे लोगों में इस बात का डर था कि NDA को अगर 400 सीटें मिल गईं तो वह लोकतंत्र के मौलिक ढांचे के साथ छेड़छाड़ करेगी तो दूसरी ओर माहौल जोश से भरा था- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक का नेतृत्व किया था, और इसे हजारों वर्षों का सबसे बड़ा ऐतिहासिक अवसर बताया था. उनके स्टार प्रचारक पूरी तरह से सांप्रदायिक मुद्दे पर जोर दे रहे थे. मीडिया के अधिकांश सर्वे भी मोदी की बहुमत वाली हैट्रिक का ही दावा कर रहे थे. लेकिन जब चुनावी नतीजे आए तो हकीकत कुछ और निकली. क्या इन नतीजों ने वाकई सभी उम्मीदों को झुठला दिया? अयोध्या का भव्य राम मंदिर भाजपा और मोदी के लिए निर्णायक जीत में तब्दील क्यों नहीं हुआ? यहां तक ​​कि इस मंदिर से जुड़े निर्वाचन क्षेत्र में भी उसे मुंह की खानी पड़ी. खुद वाराणसी संसदीय क्षेत्र से प्रधानमंत्री होने के बावजूद मोदी जीत के मतों का अपना अंतर बढ़ाने का करिश्मा नहीं दिखा सके. ऐसा क्यों हुआ? क्या ये नतीजे वाकई उतने चौंकाने वाले थे, जितने दिख रहे थे? या इनके संकेत शुरू से ही थे, जो शोर के बीच दब गए थे? पत्रकार, संपादक और राजनीतिक विश्लेषक आशुतोष ने इस पुस्तक में भारत के विकसित राजनीतिक परिदृश्य का एक दुर्लभ दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है. 
- प्रकाशक: Westland Books
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* This Too Is India: Conversations on Diversity and Dissent | Editor: Githa Hariharan

- हमारे समाज, संस्कृति, राजनीति की सच्चाई क्या है? और हम भविष्य में इसे कैसे आकार देने की उम्मीद करते हैं? ऐसे कई प्रश्न इस पुस्तक की आत्मा हैं. यह कोई एकरैखिक विमर्श नहीं, बल्कि अनेक आवाज़ों का ऐसा संवाद है, जो हमारे समय की जटिलताओं को उनके पूरे तनाव और विरोधाभासों के साथ सामने रखता है. इस पुस्तक में शामिल ज्यादातर लेख अपने मूल रूप में बातचीत और संवाद की शक्ल में दर्ज हैं. यही संवादात्मक स्वर इसे विशेष बनाता है- यह पाठक को उपदेश नहीं देता, बल्कि उसे सोचने, सवाल करने और अपनी धारणाओं पर पुनर्विचार करने के लिए आमंत्रित करता है. इन वार्ताओं के माध्यम से हम अपने समय के सजग, संवेदनशील और साहसी विचारकों को सुनते हैं. ये विचारक हैं- बामा, नयनतारा सहगल, रोमिला थापर, शांता गोखले, वोल्गा, टी.एम. कृष्णा, संजना कपूर. अपने-अपने क्षेत्र की प्रतिनिधि ही नहीं हैं, बल्कि अपने समय की नैतिक बेचैनी की गवाह भी हैं. हरिहरन ने संपादक के रूप में स्वयं पीछे हटकर वक्ताओं को पूरी जगह दी है, जो पुस्तक को हमारे समय का एक वैचारिक दस्तावेज़ बना देती है.
- प्रकाशक: Context
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* रेवड़ी या हक़: सामाजिक सुरक्षा पर एक नज़रिया | डॉ रीतिका खेरा

- क्या Freebies से जनता को 'अपाहिज' बनाया जा रहा है? क्या Freebies में मध्यम वर्ग के टैक्स का पैसा बर्बाद हो रहा है? आज कल लगभग हर सरकार सीधे तौर पर जनता में पैसे बांट रही है. जब भी कोई Direct Bennit Transfer की Scheme आती है, इसे रेवड़ी का नाम दे दिया जाता है. विपक्षी दे तो 'रेवड़ी' और आप दें तो 'Social Security'. पक्ष-विपक्ष इसी  'रेवड़ी' और 'Social Security' के बाच इधर से उधर घूमता रहता है और अपने हिसाब से इस्तेमाल करता है. प्रो खेड़ा ने इस पुस्तक को लिखने के क्रम में अनेक देशों में चल रही सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं का अध्ययन किया और फिर इन योजनाओं का भारत के संदर्भ में तुलनात्मक अध्ययन कर यहां दर्ज किया है. पुस्तक कई ज़रूरी सवालों जैसे- Social Security क्यों जरूरी है?Maternity Leave देना सही है या गलत? Freebies सुविधा है या अधिकार? जैसे सवालों का जवाब देती है. प्रो खेरा ने देश में चल रही सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का मूल्यांकन भी किया है. जिसमें आंगनबाड़ी योजना भी शामिल है. वह बताती हैं कि आंगनबाड़ी ने देश के विकास की नींव कैसे रखी? उत्तर भारत और दक्षिण भारत की आंगनबाड़ियों में क्या अंतर है? उनका मानना है कि Mid Day Meal Scheme भारत में फैली जातिवाद की जड़ों का समूल नाश कर सकती है, और कर रही है. 
- प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
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* हमारा इतिहास उनका इतिहास किसका इतिहास? | रोमिला थापर | मूल अंग्रेज़ी: 'Our History, Their History, Whose History' | अनुवाद: संजय कुंदन

- आख़िर इतिहास क्या होता है? इतिहास ना तो तारीख़ों का एक संग्रह मात्र है, ना ही इसका मकसद बस कहानी सुनाना है. धर्म और राष्ट्रवाद दोनों का इतिहास पर गहरा असर होता है, लेकिन केवल इसी परिप्रेक्ष्य से इतिहास की पड़ताल करना दरअसल इतिहास को विकृत करना है. इस किताब में थापर विभिन्न राष्ट्रवादों के जटिल संसार और इतिहास पर उनके प्रभाव का गहराई से विश्लेषण करती हैं. वे बताती हैं कि राष्ट्रवाद विभिन्न आख्यानों को जन्म देता है. ये आख्यान समुदायों को वंशावली प्रदान करते हैं और समाजों की दिशा निर्धारित करते हैं. आज एक राष्ट्रवादी सिद्धांत सदियों के 'कुशासन' के दौरान एक धार्मिक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय के उत्पीड़न की बात कर रहा है. थापर संस्कृतियों के अंतर्संबंध और मिश्रण के ऐतिहासिक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने के प्रयासों की आलोचना करती हैं. एनसीईआरटी की भारतीय इतिहास की पाठ्य पुस्तकों के कई हिस्सों को हटाए जाने की चर्चा करते हुए वह कहती हैं कि इसके पीछे सत्ता की विचारधारा के अनुरूप इतिहास के अध्ययन को बढ़ावा देने की मंशा ज़्यादा है. 
- प्रकाशक: वाम प्रकाशन
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* I, Witness: India from Nehru to Narendra Modi | Shahid Siddiqui

- भारतीय राजनीति और प्रधानमंत्रियों की अब तक की कारगुजारी का मोटा-माटी लेखा-जोखा है यह पुस्तक. वरिष्ठ पत्रकार, पूर्व राज्यसभा सदस्य और लेखक शाहिद सिद्दिक़ी ने नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी जैसे नेताओं को बेहद करीब से देखा. वह पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक बदलते भारत के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं. भारतीय राजनीति में जो कुछ भी घटा उनकी आंखों के सामने ही घटा. आज़ादी के बाद की दिल्ली, विभाजन का दंश, मुसलमानों की स्थिति और राजनीति, पत्रकारिता और सामाजिकता के संदर्भ में जो कुछ उन्होंने देखा और जिया उसे इस पुस्तक में दर्ज किया है. उन्होंने दिल्ली की राजनीति के उतार-चढ़ाव और बदलते भारत की दिशा और दशा को बखूबी लिखा है. इस पुस्तक में भारतीय राजनीति की कहानियां और नेताओं के अंदरूनी किस्से भी दर्ज हैं. जो रोमांचित करते हैं, अविश्वास से भर देते हैं और पाठक को सोचने पर मजबूर करते हैं. इन किस्सों में संजय गांधी के राजकुमार वाली छवि, इंदिरा गांधी की कैबिनेट के किस्से, जवाहर लाल नेहरू के उत्तराधिकारी की खोज, राजीव गांधी, राहुल गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, अमर सिंह, वीपी सिंह, मुलायम सिंह यादव और लालकृष्ण आडवाणी से लेकर मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी से जुड़े कई अनसुने किस्से शामिल हैं.
- प्रकाशक: Rupa Publications
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* 'Hitler: The Proclaimed Messiah of the Palestinian Cause | Aabhas Maldahiyar

दशकों से हिंदू राष्ट्रवाद को फासीवादी कहा जाता रहा है, लेकिन इतिहास इस विडंबना को उजागर करता है. विनायक दामोदर सावरकर पहले भारतीय राजनेता थे जिन्होंने इज़राइल को मान्यता दी, जबकि अरब दुनिया हिटलर को एक रॉकस्टार मसीहा मानती थी, और उसे पैगंबर मुहम्मद का वारिस, इमाम अली का पुनर्जन्म, और यहां तक कि अल-महदी भी- यह मानते हुए कि वह यहूदियों को खत्म करने के लिए एक दैवीय मिशन पर था. इस खुलासे में, मलदहियार ने जर्मन, अमेरिकी और ब्रिटिश अभिलेखागारों से डिक्लासिफाइड दस्तावेजों सहित विस्फोटक सामग्री का एक खजाना उजागर किया है, जो नाज़ी-इस्लामवादी गठबंधन का खुलासा करता है जिसे इतिहास ने मिटाने की कोशिश की थी. ग्रैंड मुफ्ती द्वारा हिटलर से होलोकॉस्ट को मध्य पूर्व में निर्यात करने का आग्रह करने से लेकर मुस्लिम ब्रदरहुड द्वारा मीन कैम्फ को दूसरी कुरान की तरह मानने तक, यह किताब इस मिथक को तोड़ती है कि फासीवाद और जिहाद कभी एक-दूसरे के विरोधी थे. यहां तक ​​कि हिटलर ने भी एक इस्लामी यूरोप का सपना देखा था, जिहाद को एक परफेक्ट युद्ध मशीन के रूप में सराहा, जबकि हिमलर कुरान को ऐसे गले लगाता था जैसे वह सोने से पहले की ज़रूरी किताब हो. लेखक इस्लामोफासीवाद, ज़ायोनीवाद और इज़राइल के सीधे-सादे इतिहास को भी डिकोड करते हैं. इतिहास के सबसे खतरनाक गठबंधन का एक निडर, व्यंग्यात्मक और बिना फिल्टर वाला विवरण.
- प्रकाशक: BluOne Ink
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* Missing from the House: Muslim Women in the Lok Sabha | Rasheed Kidwai & Ambar Kumar Ghosh

- जो वोट नहीं करता वो लोकतंत्र में गुनहगार माना जाता है, पर जब एक वर्ग सदन से ही नदारत हो तो उसे क्या कहा जाए. किसकी ग़लती कही जाए, किसे गुनहगार माना जाए? ऐसा ही एक वर्ग है- मुस्लिम महिलाओं का. इस पुस्तक के लेखकद्वय ने आज़ादी के बाद से अब तक लोकसभा पहुंचने वाली 18 मुस्लिम महिला सांसदों की पहली समग्र और दस्तावेज़ी कहानी लिखी है. यह किताब सिर्फ़ चुनाव जीतने की कहानी नहीं बल्कि उस संघर्ष की कहानी है जो चुनाव से पहले और बाद में हर मोड़ पर जारी रहा. राजनीतिक विरासत से लेकर ज़मीनी संघर्ष तक इन महिलाओं को लड़ना पड़ा पितृसत्ता से, धार्मिक रूढ़ियों से और उस राजनीतिक व्यवस्था से, जो उन्हें अपवाद मानती रही. अकबर जहां अब्दुल्ला, आबिदा अहमद, महबूबा मुफ़्ती जैसी राजनीतिक परिवारों से आने वाली महिलाएं, और साथ ही ज़ोहराबेन चावड़ा जैसी गांधीवादी कार्यकर्ता, डॉ ममताज़ संघमिता जैसी शिक्षाविद और राजनेता, और नुसरत जहां, जिन्होंने राजनीति से संसद तक का सफ़र तय किया. यह किताब मुस्लिम महिला सांसदों की पहचान राजनीति तक सीमित नहीं करती, बल्कि यह दिखाती है कि कैसे इन महिलाओं ने सवाल पूछे, असहमति जताई और उस लोकतंत्र में जगह बनाई जहां उनके लिए दरवाज़े बंद थे. आज जब संसद में महिलाओं की भागीदारी पर बहस हो रही है, और मुस्लिम महिलाओं की राजनीतिक भूमिका अक्सर संदेह के घेरे में रखी जाती है, उस समय यह किताब सिर्फ़ इतिहास नहीं, एक चेतावनी और एक उम्मीद दोनों है.
- प्रकाशक: Juggernaut
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'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' के वर्ष 2025 की 'राजनीति' श्रेणी में शामिल सभी रचनाकारों, लेखकों, अनुवादकों और प्रकाशकों को हार्दिक बधाई! साहित्य और पुस्तक संस्कृति के विकास की यह यात्रा आने वाले वर्षों में भी आपके संग-साथ बनी रहे. 2026 शुभ हो. पाठकों का प्यार बना रहे.

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