कथेतर श्रेणी की पुस्तकों से वर्ष 2025 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की शुरुआत

'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' में वर्ष 2025 की 'कथेतर' श्रेणी की पुस्तकों में जंगल, जीवन, स्त्री, भक्ति और घुमक्कड़ी से जुड़ी पुस्तकें शामिल. देखें पूरी सूची..

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जय प्रकाश पाण्डेय

  • नोएडा,
  • 22 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:02 PM IST

किताबें आपको बताती हैं, जताती हैं, रुलाती हैं. वे भीड़ में तो आपके संग होती ही हैं, आपके अकेलेपन की भी साथी होती हैं. शब्द की दुनिया समृद्ध रहे, आबाद हो, फूले-फले और उम्दा किताबों के संग आप भी हंसें-खिलखिलाएं, इसके लिए इंडिया टुडे समूह ने अपने डिजिटल चैनल 'साहित्य तक' पर वर्ष 2021 में पुस्तक-चर्चा कार्यक्रम 'बुक कैफे' की शुरुआत की थी... आरंभ में सप्ताह में एक साथ पांच पुस्तकों की चर्चा से शुरू यह कार्यक्रम आज अपने वृहद स्वरूप में सर्वप्रिय है.
भारतीय मीडिया जगत में जब 'पुस्तक' चर्चाओं के लिए जगह छीजती जा रही थी, तब 'साहित्य तक' के 'बुक कैफे' में लेखक और पुस्तकों पर आधारित कई कार्यक्रम प्रसारित होते हैं. इनमें 'एक दिन एक किताब' के तहत हर दिन पुस्तक चर्चा; 'नई किताबें' कार्यक्रम में हमें प्राप्त होने वाली हर पुस्तक की जानकारी; 'शब्द-रथी' कार्यक्रम में लेखक से उनकी सद्य: प्रकाशित कृतियों पर बातचीत; और 'बातें-मुलाकातें' कार्यक्रम में किसी वरिष्ठ रचनाकार से उनके जीवनकर्म पर संवाद शामिल है. 
'साहित्य तक' पर हर शाम 4 बजे प्रसारित हो रहे 'बुक कैफे' को प्रकाशकों, रचनाकारों और पाठकों की बेपनाह मुहब्बत मिली है. 'साहित्य तक' ने वर्ष 2021 से 'बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला शुरू की तो उद्देश्य यह रहा कि उस वर्ष की विधा विशेष की दस सबसे पठनीय पुस्तकों के बारे में आप अवश्य जानें. 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की यह शृंखला इसलिए भी अनूठी है कि यह किसी वाद-विवाद से परे सिर्फ संवाद पर विश्वास करती है. इसीलिए हमें साहित्य जगत, प्रकाशन उद्योग और पाठकों का खूब आदर प्राप्त होता रहा है. 
'बुक कैफे' पुस्तकों के प्रति हमारी अटूट प्रतिबद्धता और श्रमसाध्य समर्पण के साथ ही हम पर आपके विश्वास और भरोसे का द्योतक है. बावजूद इसके हम अपनी सीमाओं से भिज्ञ हैं. संभव है कुछ बेहतरीन पुस्तकें हम तक न पहुंची हों, यह भी हो सकता है कुछ श्रेणियों की बेहतरीन पुस्तकों की बहुलता के चलते या समयावधि के चलते चर्चा में शामिल न हो सकी हों... फिर भी हमारा आग्रह है कि इससे हमारे प्रिय दर्शकों, पुस्तक प्रेमी पाठकों के अध्ययन का क्रम अवरुद्ध नहीं होना चाहिए. आप खूब पढ़ें, पढ़ते रहें, किताबें चुनते रहें, यह सूची आपकी पाठ्य रुचि को बढ़ावा दे, आपके पुस्तक संग्रह को समृद्ध करे, यही कोशिश है, यही कामना है. 
पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की 'साहित्य तक' की कोशिशों को समर्थन, सहयोग और अपनापन देने के लिए आप सभी का आभार.
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साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' वर्ष 2025 की 'कथेतर' श्रेणी की श्रेष्ठ पुस्तकें हैं-
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* जल जंगल ज़मीन: भारत का आदिवासी समाज |  हरिराम मीणा
- हम जिन्हें आदिवासी कहते हैं वे भारत के मूल निवासी हैं. इनका संदर्भ रामायण, महाभारत, पुराणों तथा अन्य प्राचीन अभिलेखों में भी मिलता है. देश के विभिन्न क्षेत्रों में बसे हुए आदिवासी अलग-अलग क्षेत्रों में रहने के चलते  अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा और सामाजिक परंपरा से जुड़े हैं. आपस में कई भिन्नताओं के बावजूद सभी आदिवासी समुदायों में कुछ समान विशेषताएं मिलती हैं, जैसे उनका प्रकृति-प्रेम, जीव-जंतुओं के साथ मिल-जुलकर रहना, स्त्री-पुरुष के बीच समानता और निजी संपत्ति की अवधारणा का अभाव. अधिकांश  आदिवासियों के जंगल के रहवासी होने के चलते गैर-आदिवासी शहरी समाज अकसर सोचता है कि ये लोग पिछड़े, असभ्य और जंगली हैं. लेकिन जब हम उन्हें उनके जीवन की सहजता, सरलता, सामूहिकता, निःस्वार्थता, भाईचारा, अन्याय का प्रतिकार और पृथ्वी के पारिस्थितिकीय संतुलन की दृष्टि से देखते हैं तो वे कथित शिक्षित, समृद्ध और सभ्य समाज से बेहतर दशा में दिखाई देते हैं. आदिवासी प्राकृतिक संपदा को ट्रस्टी या कस्टोडियन की हैसियत से सुरक्षित रखते हैं. हरिराम मीणा आदिवासी समाज के विशेषज्ञ और चिंतक हरिराम मीणा ने आदिवासियों के जीवन के लम्बे और गहन अध्ययन के आधार पर उनके समकाल और भविष्य की चुनौतियों को इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है.
- प्रकाशकः राजपाल एंड सन्ज़
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* Breath: Wake Up to Life | Prem Rawat  
 
- सांस!  जीवन की शुरुआत है, तो अंत भी. यह एकमात्र ऐसी चीज है जो सभी मनुष्यों में समान है. फिर भी विडम्बना देखिए कि यह मानवीय अनुभव का सबसे उपेक्षित पहलू है. जिसे हम सहज मानते हैं, वास्तव में वही हमारी साझा वास्तविकता का आधार है. हमारी प्रत्येक सांस मृत्यु पर विजय, दुनिया में हमारी दृढ़ उपस्थिति और निरंतर बने रहने के हमारे समर्पण का संकेत है. वैश्विक शांति दूत और न्यूयॉर्क टाइम्स के बेस्टसेलर लेखक प्रेम रावत Breath: Wake Up to Life पुस्तक के माध्यम से हमसे आग्रह करते हैं कि हम रुकें और अपनी सांसों में लीन होने के क्षण को महसूस करें. हम जानें कि हमारी सांस इस धरती पर हमारे साझा मानवीय अनुभव का चमत्कार है. बारीक रेखाचित्रों और प्रवाहमय गद्य से परिपूर्ण यह पुस्तक प्रत्येक क्षण में सामंजस्य खोजने के लिए एक सुंदर मार्गदर्शिका है. लेखक का दावा है कि अपने जीवन में शांति लाने के लिए सांस की सरल; लेकिन गहन शक्ति का अनुभव हमें आंतरिक और बाह्य शांति की ओर उन्मुख कर देता है.
- प्रकाशकः Pan Macmillan
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* पितृसत्ता, यौनिकता और समलैंगिकता | सुजाता  
 
- आधुनिक समाज में स्त्री या तो देवी है या भोग की वस्तु. समता और समानता का दंभ भरने वाले लोकतांत्रिक राष्ट्रों में भी उसे राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से गैरबराबरी का सामना करना पड़ता है. अपनी पुस्तक 'पितृसत्ता, यौनिकता और समलैंगिकता' में लेखिका सुजाता स्त्री चिंतन के नए आयामों को केंद्र में रखते हुए इस बात की पड़ताल करती हैं कि कैसे पितृसत्ता ने मातृसत्ता को पलटकर अपने पैर पसार लिए, और स्त्री 'हीन से भी हीनतर' होती गयी. वे बताती हैं कि एकल विवाह से पूर्व स्त्री की कोख पर उसी का अधिकार था. वह अपनी मर्जी की भी मालिक थी और संतानों की भी. पर पुरुष ने संपत्ति की अवधारणा के साथ ही इसे अराजक करार दिया. नारी की अस्मिता से समलैंगिकता और यौनिकता  यहीं से जुड़ गए. पुरुषों ने रक्त शुद्धता, नस्ल शुद्धता, जाति जैसी चीजों को बनाये रखने के लिए स्त्री की कोख पर नियंत्रण कर लिया. धर्म और राज्य व्यवस्था ने भी उनका साथ दिया. स्त्री केवल त्याग की मूर्ति और ममता की देवी थी. उसकी यौनिकता को भी धर्म ने परिभाषित किया, और उसकी यौन-इच्छा को पाप समझा गया. पुस्तक स्त्री-विमर्श को नए संदर्भों में देखने का आग्रह करती है.
- प्रकाशकः सेतु प्रकाशन
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* हिंदुत्व का मधु | हृदयनारायण दीक्षित 
   
- हिन्दुत्व भारत की प्रकृति है और संस्कृति भी. यह भारत के लोगों की जीवनशैली है. इस जीवनशैली में सभी विश्वासों के प्रति आदर भाव है, लेकिन भारतीय राजनीति के आख्यान में हिन्दुत्व के अनेक चेहरे हैं. उग्र हिन्दुत्व, सॉफ्ट हिन्दुत्व, साम्प्रदायिक हिन्दुत्व आदि  विशेषण आज मूल हिन्दुत्व पर आक्रामक हैं. अंग्रेज़ी में हिन्दुत्व को हिन्दुइज़्म कहा जाता है, जबकि 'इज़्म' विचार होता है. विचार 'वाद' होता है. वाद का प्रतिवाद भी एक विचार होता है. पूँजीवाद 'कैपिटलिज़्म' है. समाजवाद 'सोशलिज़्म' है. इसी तरह वैज्ञानिक समाजवाद 'कम्युनिज़्म' है. अंग्रेज़ी का 'हिन्दुइज़्म' भी हिन्दूवाद का अर्थ देता है, लेकिन 'हिन्दूवाद' हिन्दुत्व नहीं है. दीक्षित बताते हैं कि हिन्दुत्व समग्र मानवीय अनुभूति है. वीर होना 'वीरवाद' नहीं होता, वीर होने का भाव वीरता है. दयावान होना 'दयावाद' नहीं दयालुता है. हिन्दू होना हिन्दुता या हिन्दुत्व है. वे लिखते हैं कि कुछ विद्वान हिन्दू को मुसलमानों द्वारा दिया गया शब्द मानते रहे हैं, लेकिन यह सही नहीं है. 'हिन्दू' शब्द का प्राचीनतम उल्लेख 'अवेस्ता' में है और अवेस्ता इस्लाम से सैकड़ों वर्ष पुराना है.  522-486 ई.पू.डेरियस के शिलालेख में भी 'हिन्दू' शब्द का उल्लेख है. 'हिन्दू' शब्द विशेष संस्कृति वाले जनसमूह का द्योतक है. यह पुस्तक हिंदुत्व को आधुनिक संदर्भों में व्याख्यायित करती है.
- प्रकाशकः वाणी प्रकाशन    
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* संपूर्ण समाधान | राजेंद्र गोयनका  
 
- किसान को उसकी उपज का वास्तविक मूल्य चाहिए; मजदूर को अपनी क्रय-शक्ति का महँगाई के साथ संबंध चाहिए; उद्यमी व व्यापारी को ऐसा वातावरण चाहिए, जहाँ उसे कार्य करने की स्वतंत्रता हो; छात्रों को रोजगार-परक शिक्षा प्रणाली चाहिए; नागरिकों को सस्ता व सुलभ न्याय चाहिए, सस्ती व उत्तम स्वास्थ्य सेवाएं चाहिए, सरल कर-नीति चाहिए, भ्रष्टाचार और शोषण से मुक्ति चाहिए; देश को सांप्रदायिक सौहार्द चाहिए. गोयनका के अनुसार नागरिकों की आय में वृद्धि, बुनियादी ढाँचे का विकास और बड़े स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा करके न केवल गरीबी समाप्त की जा सकती है, बल्कि हम एक लंबी छलाँग लेकर 15 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था का लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं. यह पुस्तक भारत की विभिन्न समस्याओं का समाधान खोजने का सार्थक प्रयास करती है, साथ ही देश के नीति निर्माताओं के लिए मार्गदर्शक के रूप में उपयोगी है.
- प्रकाशकः प्रभात प्रकाशन 
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* सूरज, साकुरा और सफर | अल्पना मिश्र 
         
- यह पुस्तक केवल यात्रा-वृत्तांत नहीं, बल्कि आत्म-अन्वेषण, स्मृतियों और वैश्विक अनुभवों का भावपूर्ण संकलन है. लेखिका ने जापान की यात्रा को माध्यम बनाते हुए, वहाँ की संस्कृति, प्रकृति 'विशेषकर साकुरा के फूल', और मानवीय संबंधों को बड़े ही संवेदनशील और साहित्यिक अंदाज़ में प्रस्तुत किया है. यह एक पर्यटक की नहीं बल्कि एक घुमक्कड़ साहित्यकार द्वारा रचित यात्रा-वृत्तांत है जो माउंट फूजी और हिमालय के बीच एक सांस्कृतिक सेतु स्थापित करता है. पुस्तक दोनों देशों के बीच रहे ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संबंधों पर प्रकाश डालती है. पुस्तक की विशेषता है कि यह जापान की बाहरी दुनिया को नहीं, बल्कि भीतर की यात्रा को भी उजागर करती है. पुस्तक में जापान की साफ-सुथरी सड़कों से लेकर वहां की शांत संस्कार शीलता तक, सब कुछ लेखक की भावुक लेकिन प्रखर दृष्टि से गुज़रता है. 'सूरज, साकुरा और सफर' अनुभवात्मक साहित्य का एक सुंदर उदाहरण है, जो आपको भावनाओं, विचारों और संस्कृतियों के अद्भुत संगम की सैर कराता है. 
- प्रकाशकः वाणी प्रकाशन    
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* चुप्पियाँ और दरारें: स्त्री आत्मकथा- पाठ और सैद्धांतिकी | प्रो गरिमा श्रीवास्तव  

- यह पुस्तक भारत की अनेक भाषाओं में लिखी गई स्त्री आत्मकथाओं की न सिर्फ शिनाख्त करती है बल्कि इन आत्मकथाओं में विन्यस्त वैचारिकी का गहन विश्लेषण भी प्रस्तुत करती है. यह न सिर्फ हिन्दी बल्कि किसी भी भारतीय भाषा में लिखी गई अपनी तरह की विशेष कृति है. सच तो यह है कि जाति, लिंग और धर्म की बंदिशों से घिरे अवर्ण समाज और स्त्रियों की आत्माभिव्यक्ति बहुत कम सामने आती है.लेखिका ने यह तथ्य पहचाना है और चुप्पी की कारा तोड़ते हुए लिखी गई विभिन्न वर्गों और जातियों से निकली औरतों की आपबीती के मर्म को एक गम्भीर अन्तर्दृष्टि से परखा है. यह पुस्तक हमारा ध्यान उन स्त्री आत्मकथाओं की ओर ले जाती है, जहां मनुष्य जाति के स्त्री पक्ष के तनिक भिन्न अनुभव से हमारा साक्षात्कार होता है. यह स्त्रियों की अपनी अनुभूति है. उनकी अपनी आत्मस्वीकृतियां, पीड़ा और उल्लास है. श्रीवास्तव  हिन्दी के साथ बहु-भाषी, बहु-धार्मिक, बहु-जातीय और बहु-सामुदायिक भारतीय महादेश में हिन्दू, मुसलमान, दलित, सवर्ण, बांग्ला, मलयालम और कन्नड़ में लिखी स्त्री आत्मकथाओं के साथ ऐसे बहुलतावादी संसार में प्रवेश करती हैं, जिनमें दुनियाभर की अश्वेत स्त्री-आत्मकथाओं का उल्लेख भी शामिल है. 
- प्रकाशकः राजकमल प्रकाशन 
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* भक्ति अगाध अनंत | माधव हाड़ा

- भारत में भक्ति की चेतना प्राग्वैदिककाल से निरंतर है. देश के विभिन्न क्षेत्रों की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक ज़रूरतों के तहत इसके कई रूप और प्रवृत्तियां रही हैं और सदियों से इनमें अंतःक्रियाएं और रूपांतरण होता रहा है. यह सीमित अवधि का कोई ‘आंदोलन’ नहीं है. यह केवल परलोक-व्यग्र चेतना भी नहीं है बल्कि मनुष्य की पार्थिव चिंताएं भी इसी के माध्यम से व्यक्त हुई हैं. भक्ति-चेतना का साहित्य स्वतंत्रचेता संत-भक्तों का साहित्य है और स्वतंत्रता हमेशा बहुवचन में चरितार्थ होती है, इसलिए यह अपनी प्रकृति में बहुवचन है. देश भाषाओं में इसकी व्याप्ति ने इसको जनसाधारण के लिए सुलभ कर दिया. विडंबना यह है कि संपूर्ण देश में सदियों से मौजूद इस भक्ति-चेतना की, भाषायी वैविध्य और औपनिवेशिक ज्ञानमीमांसीय पूर्वग्रह के कारण, अभी तक कोई समेकित पहचान नहीं बन पाई है. भक्ति-चेतना को उत्तर-भारत में केवल कबीर, तुलसी आदि तक सीमित समझ लिया गया है, जबकि वस्तुस्थिति इससे अलग है. भक्ति का, उत्तर-भारत की तुलना में, व्यापक प्रसार दक्षिण में हुआ और उसकी पहुंच उत्तर-पूर्व, कश्मीर आदि क्षेत्रों में भी व्यापक थी. महाराष्ट्र में भी उसकी व्याप्ति का दायरा बहुत विस्तृत था. गुजरात के जनसाधारण में भी उसकी स्वीकार्यता कम नहीं थी. बंगाल, ओड़िशा और असम के संत-भक्तों ने तो उत्तर-भारतीय संत-भक्तों को बहुत दूर तक प्रभावित किया. इस पुस्तक में पहली बार छठी से लगाइत उन्नीसवीं-बीसवीं सदी तक के संत-भक्तों की रचनाएं संकलित की गई हैं. 
- प्रकाशकः राजपाल एंड सन्ज़
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* एक था जाँस्कर | अजय सोडानी  
     
लेखक से घुमक्कड़, जिज्ञासु, प्रकृति प्रेमी हैं कि वे सिर्फ़ यात्रा नहीं करते- बल्कि 'पक्षधर यात्रा' करते हैं. अर्थात एक ऐसी यात्रा जो प्रकृति की, उसकी पवित्रता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. लेखक प्रकृति के वकील की हैसियत से अपना झोला उठाते हैं और यह यात्रा-कथा बुन देते हैं. यह कथा है जाँस्कर की; जहाँ आज 2900 हेक्टेयर में खेती होती है और कुल जनसंख्या है 13773. लद्‌दाख का यह हिस्सा न तो हमलावरों की नज़र में ज़्यादा पड़ा, न भारत आने वाले मुसाफ़िरों की. इसलिए यह अपनी जीवन शैली और संस्कृति के साथ विकास की मार से  बचा रहा. हालांकि इस इलाके से जुड़ी कथाएं दूर देश के सैलानियों को हमेशा आकर्षित करती रही हैं. जाँस्कर में मंथर गति से एक समूचा जीवन जीने वाले लेखक ने इस इलाके  का सफ़र जुलाई 2013 में शुरू किया और पहले अनुभवों से कहा- 'नवपाषाण युग जैसे अभी-अभी ही व्यतीत हुआ है इधर से.' इस यात्रा-वृत्त में हिमालय की बर्फ़ीली दुनिया का रोमांच, इतिहास, संस्कृति  और कथाएं-उपकथाएं शामिल हैं, जो अपने शब्द चित्रों, दृश्यों, जोखिमों, थकानों और आश्चर्यों के साथ आपको तथ्य और तर्क से भर देती हैं.    
- प्रकाशकः राजकमल प्रकाशन 
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* मेरी ढाका डायरी | मधु कांकरिया 
               
यह देश है पड़ोस के राष्ट्र बांग्लादेश से हम भारतीयों की हमेशा से साझेदारी रही है, कुछ इतनी गहरी कि वक़्त की करवटों की बदौलत बीच में खिंच गई नई सरहद के बावजूद, आज भी दोनों देशों के आम अवाम के दिल में बहुत कुछ एक-सा धड़कता है. यह किताब एक प्रबुद्ध लेखिका की आंखों से एक देश और उसके समाज की ली गई ऐसीथाह है, जो वक़्त की विपरीत सी करवटों और उसकी 'एक-सी धड़कन', दोनों का जायज़ा लेती है. लेखिका की ख़ासियत यह है कि बांग्लादेश प्रवास के दौरान वह न केवल वहां की परिस्थितियों का जायजा लेती हैं बल्कि उन परिस्थितियों और उन कारणों की शिनाख़्त भी करती हैं जिनसे ‘सोनार बांग्ला’ की श्यामल भूमि का सहज हास बाधित हो रहा है. वे ग़रीबी की गहरी जड़ें, बहुसंख्यक आबादी की साम्प्रदायिकता और अल्पसंख्यकों के असुरक्षाबोध को इसका बड़ा कारण मानती हैं. लेखिका ने ढाका के अभिजात इलाक़ों से लेकर ग़रीब-गुरबा की दैनिक जद्दोजहद तक को अपने दायरे में लिया है. 
- प्रकाशकः राजकमल प्रकाशन 
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वर्ष 2025 के 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' में शामिल सभी पुस्तक लेखकों, प्रकाशकों, अनुवादकों और प्रिय पाठकों को बधाई! 
हम स्पष्ट कर दें, यह किसी रूप में 'साहित्य तक' द्वारा पुस्तकों की क्रमानुसार रैंकिंग नहीं है. टॉप 10 सूची में स्थान बनाने वाली सभी पुस्तकें आपकी 'हर हाल में पठनीय' पुस्तकों में शामिल हों, हमारा सुझाव यही है. वर्ष 2025 में  टॉप 10 पुस्तकों की यह शृंखला 31 दिसंबर तक जारी रहेगी. 2026 शुभ हो. आप सबका प्यार बना रहे.

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