अनंत काल तक निर्विघ्न शासन करें राजन! श्रीकान्त अस्थाना की दो कविताएं 'एक विनम्र अभ्यर्थना' और 'मुक्तिपथ'

कोरोना काल में व्यवस्था की खामी से बदहाल लोगों की पीड़ा और आक्रोश को स्वर देने वाली ये कविताएं आपको अंदर तक झिंझोड़ देंगी

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पलायन करते मजदूर का प्रतीकात्मक चित्र और कवि श्रीकान्त अस्थाना [इनसेट में] पलायन करते मजदूर का प्रतीकात्मक चित्र और कवि श्रीकान्त अस्थाना [इनसेट में]

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 26 मई 2021,
  • अपडेटेड 4:02 PM IST

कोरोना काल ने हम पर, हमारे दिमागों पर कितना और किस तरह असर डाला है, इस पर अभी कोई बड़ा शोध नहीं हुआ है, पर इतना तो तय है कि इसने हमारी पृथ्वी को कई तरह से बदल दिया है. लोगों की आस्थाएं बदल गई हैं और जीवन के प्रति दृष्टिकोण भी. पर अफसोस की इस दौर में भी लोगों ने अलग अलग तरीके से सीख ग्रहण की. सक्षम लोगों ने आपदा में अवसर ढूंढा, तो आम लोगों, श्रमिकों, कामगारों, किसानों और बेबसों ने वह बदहाली झेली, जो जीते -जीते भी मृत्यु सरीखी है. धर्म, अर्थ, प्रेम, राग, संवेद्ना ही नहीं, जीवन मूल्य और मृत्यु से जुड़े  स्थापित सनातन संस्कार तक बदल गए हैं.

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ऐसे में सरकार और व्यवस्था, कहां और कितनी बची है, इसे समझना एक कठिन पहेली सरीखा है. ऐसे विषम हालातों में व्यवस्था की खामी से बदहाल लोगों की पीड़ा और आक्रोश को लेकर रची गईं श्रीकांत अस्थाना की ये दो कविताएं 'एक विनम्र अभ्यर्थना' और 'मुक्तिपथ' आपको अंदर तक झिंझोड़ देंगी

एक विनम्र अभ्यर्थना!

दीर्घकाल, नहीं...नहीं,
अनंत काल तक निर्विघ्न शासन करें राजन!
स्वयं कोई ईश्वर भी नहीं हिला सकेगा आपकी सत्ता अनंत काल तक..!
इतने लंबे समय तक सारी तुरहियों, ढोल और नगाड़ों के साथ
देश के कोने-कोने में पूरे सुर से गाई हैं मैंने आपकी गाथाएं
कि आश्चर्य से उबल कर बाहर निकल आई हैं
प्रजा की आंखें - अब वे कुछ नहीं देख सकते!
मेरे गानवृंद के अतितार सुरों से
विदीर्ण हो चुके हैं उनके श्रवणपट - अब कुछ नहीं सुन सकेंगे वे!
मेरे साथ सुर मिलाते-मिलाते
नष्ट हो चुके हैं उनके स्वर यंत्र - गूंगे हैं अब ये सारे!
नाचते-नाचते इतनी लचक चुकी है इनकी रीढ़
कि, कभी ये सीधे खड़े नहीं हो सकते आपके सामने!
आपको राज के लिए चाहिए थी जैसी प्रजा
बिलकुल वैसे ही ढल चुके हैं 110 कोटि लोग!
अब आपको जनतांत्रिक दिखावे की भी जरूरत नहीं होगी, राजन!
सत्ता का... शक्ति का जी भर उपयोग करें, प्रभु!
मित्रों, परिचितों, दरबारियों और दास-दासियों को
उपकृत और चमत्कृत करें, राजन!
अंतःपुरस्थ महारानियों के साथ विहार करें, प्रणयरत हों, विलास करें, चक्रवर्ती!
इस भूखंड की समस्त सम्पत्ति का भोग करें, महाराज!
रोग, शोक और संकट जैसे शब्द मैंने मिटा दिए हैं कोशों से
अब कोई कोशकार बचा भी नहीं है कि लिख दे
इन शब्दों को नए सिरे से, और, बाधा बने आपकी सुखानुभूतियों में!
राजप्रासादों के आसपास की मखमली घास पर
अब आपको नहीं सुनाई देगी कोई अवांछित पदचाप
बदलवा लीजिए इच्छानुसार अपने महलों के ढांचे,
विहार स्थल, वार्ता प्रखंड, विदेशियों से मुलाकात के कक्ष
और भी जो चाहें...
कहीं से नहीं उठेगी किसी प्रतिरोध की आवाज!
कोई नहीं मांगेगा कुछ भी आपसे!
कोटि-कोटि लोग धन्य हैं आपकी उपस्थिति से
पूरी हुई, आप सा शासक पाने की अनंत काल से संचित उनकी कामना!
इनमें से किसी को नहीं चाहिए आपके प्रवचन के सिवा कोई रोजगार
किसी को कोई गुरेज नहीं है, अकाल मौत मरने से!!
नहीं, नहीं! मुझे गलत मत समझें, नाथ!
आपके प्रति समर्पण की अकुलाहट में
बहुत प्रसन्नता से प्राण त्याग रहे हैं लोग
पापहारिणी गंगा में और उसके किनारों पर,
नश्वर देह छोड़ते हुए
सहज ही, सगर-पुत्रों-जैसा मोक्ष अर्जित कर रहे हैं लोग!
इस बात का कतई बुरा न मानें, देव!
ये सभी कृतज्ञ हैं आपके राज के - कि मुक्ति का अवसर मिला।
प्रभु, थोड़ी कृपा बनाए रखें, हम अकिंचन भाटों पर भी
कुछ दाने मिलें तो लगें शेष काम पर
बचे हैं कुछ करोड़, जो नहीं समझ सके हैं पूरी बात
कहीं उनमें से न उठ खड़ा हो कोई सिरफिरा
प्रयास करे राजन के विरुद्ध विषवमन का
ऐसा होने के पहले हमें मोर्चे पर जाना होगा।
तभी निष्कंटक होगा आपका राजकाज।
तभी आप सुख विहार कर पाएंगे , राजन!
तभी आप अनंत काल तक निर्विघ्न शासन कर पाएंगे, राजन!!
हमारी विनम्र अभ्यर्थना है कि, अनंत काल तक निर्विघ्न शासन करें राजन!!!

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                                               -श्रीकान्त अस्थाना, मई, 2021

***
मुक्तिपथ

मुक्ति की ही तलाश में भागे थे गांव से
मुक्ति की ही तलाश में भाग रहे हो गांव
वहीं, जहां नहीं थी मुक्ति...
मुक्ति नहीं मिलती किसी
बस अड्डे, रेल की बोगी या ट्रक में
चिलचिलाती सड़कों पर
भूखे-प्यासे, नंगे पांव घिसटते हुए भी
नहीं मिलती मुक्ति...
मुक्ति कैद है रायसीना पहाड़ियों के
गुंबद वाले ढांचे में...
वही, जिधर जाते हुए डर लगता है,
हर मोड़ पर कोई अवरोध रोकता है,
हर कदम मन कांपता है कि
कोई पीछे से पकड़ न ले कॉलर
घसीट ले किसी कोने पर बने कोठरे में
बरसाने लगे बेंत और पूछे कि
कैसे की मजाल इधर आने की...
तलाश है मुक्ति की, तो
खोजो वहीं जहां कैद है वह
ढूंढ़ना होगा उसे उन्हीं नाकों पर
उन्हीं गलियों में, चौराहों पर
जो जाते हैं, सत्ता के घर।
कांपते रहे हो जिस राजपथ से
बदलना पड़ेगा उसे जनपथ में!
यही... बस एक यही है
मुक्ति का पथ!

- मई, 2020

# पत्रकार एवं पत्रकारिता शिक्षक के रूप में श्रीकांत अस्थाना प्रमुख हिंदी और अंग्रेज़ी समाचार-पत्रों एवं विश्वविद्यालयों कार्यरत रहे हैं. उन्हें हिंदी पत्रकारिता में तकनीकी समावेश, नवाचार, मूल्यनिष्ठा एवं गुणवत्ता के लिए जाना जाता है. हृदय से कवि मन अस्थाना एक चिंतनशील समीक्षक और अनुवादक भी हैं. उन्होंने राजनीति, आयुर्वेद, कला आदि विषयों से संबंधित पुस्तकों का अंग्रेज़ी से हिंदी तथा हिंदी से अंग्रेज़ी में परस्पर अनुवाद भी किया है. ऐसी पुस्तकों में हिंदी में शाश्वती सेन की चर्चित पुस्तक 'बिरजू महाराजः मेरे गुरु, मेरी नजर में', कृष्णा बोस की पुस्तक 'एमिली और सुभाषः एक सच्ची प्रेम कथा' और नित्यप्रिय घोष की पुस्तक 'रवींद्रनाथ टैगोरः चित्रों और शब्दों में जीवनकथा' शामिल है.

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