हिंदी पब्लिशर्स को चेतन भगत का सुझाव, खुद को बदलें, वरना युवा भाग जाएगा

e-साहित्य आजतक 2020 में अंजना ने चेतन से पूछा कि अंग्रेजी और हिंदी साहित्य जगत में कोई फर्क है क्या? इसपर उन्होंने कहा कि मैंने दोनों देखें हैं और दोनों ज्यादा अलग नहीं हैं .

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चेतन भगत चेतन भगत

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 24 मई 2020,
  • अपडेटेड 9:54 PM IST

भारत के मशहूर लेखक चेतन भगत e-साहित्य आजतक का हिस्सा बने. इस मौके पर उन्होंने एंकर अंजना ओम कश्यप से बातचीत की. चेतन ने अपनी किताबों से लेकर बॉलीवुड की फिल्मों और हिंदी और अंग्रेजी साहित्य जगत के बारे में कई बातें कहीं. यहां तक कि उन्होंने हिंदी पब्लिशर्स को सुझाव भी दे डाला

अंग्रेजी और हिंदी साहित्य जगत में फर्क?

अंजना ने चेतन से पूछा कि अंग्रेजी और हिंदी साहित्य जगत में कोई फर्क है क्या? इसपर उन्होंने कहा कि मैंने दोनों देखें हैं और दोनों ज्यादा अलग नहीं हैं . हालांकि अंगेजी में गुरुर है. हिंदी में भी गुरुर है इसलिए उसको लोगों ने पढ़ना कम कर दिया है. हिंदी की फिल्म देखने के लिए लोग सिनेमा के बाहर लंबी लाइनों में खड़े होते हैं. हिंदी गाने भी सुनते हैं. लेकिन हिंदी कि किताब को पढ़ना कूल नहीं समझते.

एक फैन ने मुझे कहा था कि मैं घर पर आपकी हिंदी की किताब रखता हूं और इंग्लिश की किताब को कॉलेज लेकर जाता हूं. हिंदी की किताबें काफी पब्लिश हो रही हैं, लेकिन पब्लिशर्स सब अपने आप को रवीन्द्रनाथ टैगोर मानते हैं. जरूरी है कि हिंदी साहित्य अपने पैर पर कुल्हाड़ी ना मारे. अपने आप में थोड़ा बदलाव लाए.

क्यों किताबों में होता है नंबर?

एंकर अंजना ने चेतन से पूछा कि उनकी लगभग हर किताब में कोई ना कोई नंबर है. चाहे वो 3 मिस्टेक्स ऑफ माय लाइफ हो, रेवोलुशन 2020, वन नाईट एट द कॉल सेंटर संग तमान किताबों में नंबर डालने की क्या वजह है?

इसपर चेतन ने कहा- देखिए मैं पहले इंजिनियर था. अभी भी हूं. मैंने 15-20 साल नंबर्स में बिताए हैं उन्हीं में जिया हूं. नम्बरों की दुनिया से ही मैंने आया हूं. ये मेरा ट्रेडमार्क बन गया है. मेरी लिगेसी है ये. विरासत है मेरी.

फिल्मी अंदाज में क्यों लिखते हैं किताब?

चेतन भगत से e-साहित्य आजतक एक दौरान पुचा गया कि उनकी किताबों की कहानी और किरदार बॉलीवुड की फिल्मों जैसे होते हैं . तो क्या वो फिल्मों को ध्यान में रखकर अपनी किताबों को लिखते हैं?

इसपर चेतन ने कहा- मेरा हीरो और हीरोइन मध्यम वर्गी भारत से होते हैं. मैं जो लिखता हूं लोग उससे रिलेट कर पाते हैं. अब तो फिल्में भी छोटे शहरों के बारे में बनती हैं. लोग उनसे भी जुड़ पाते हैं.

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