सिर्फ पांच घंटे सोते हैं तो जरा ध्यान दें!

बदलती लाइफस्टाइल में कुछ घंटों की नींद लेना भी एक काम जैसा हो गया है. अगर आपकी भी जिंदगी में सोने के लिए सिर्फ चार-पांच घंटे ही नसीब होते हैं तो जरा हाल में हुए इस शोध का जान लेना आपके लिए बहुत जरूरी है. 

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कम सोना आपकी याद्दाशत को कमजोर कर सकता है. कम सोना आपकी याद्दाशत को कमजोर कर सकता है.

वन्‍दना यादव

  • लंदन,
  • 30 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 2:10 PM IST

लंदन में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि पांच घंटे से कम की नींद लेने से याददाश्त कमजोर हो सकती है. यह अध्ययन दिमाग के एक हिस्से हिप्पोकैम्पस में तंत्रिका कोशिकाओं के बीच जुड़ाव न हो पाने पर केंद्रित है. अध्ययन में पता चला कि कम सोने से हिप्पोकैम्पस में तंत्रिका कोशिकाओं के बीच जुड़ाव नहीं हो पाता है, जिससे याद्दाश्त कमजोर होती है.

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ग्रोनिनजेन इंस्टीट्यूट फॉर इवॉल्यूशनरी लाइफ साइंसेज के असिस्टेंट प्रोफेसर रॉबर्ट हैवेक्स ने अध्ययन ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि, 'यह साफ हो गया है कि याद्दाश्त बरकरार रखने में नींद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हम जानते हैं कि झपकी लेना महत्वपूर्ण यादों को वापस लाने में सहायक होता है. मगर, कम नींद कैसे हिप्पोकैंपस में संयोजन कार्य पर असर डालती है और याद्दाश्त को कमजोर करती है, यह स्पष्ट है.'

शोधकर्ताओं ने इसका परीक्षण चूहों के दिमाग पर किया. परीक्षण में डेनड्राइट्स के स्ट्रक्चर पर पड़ने वाले कम नींद के प्रभाव को जांचा गया. सबसे पहले उन्होंने गोल्गी के सिल्वर-स्टेनिंग पद्धति का पांच घंटे की कम नींद को लेकर डेन्ड्राइट्स और चूहों के हिप्पोकैम्पस से संबंधित डेन्ड्राइट्स स्पाइन की संख्या को लेकर निरीक्षण किया.

विश्लेषण से पता चला कि कम नींद से तंत्रिका कोशिकाओं से संबंधित डेन्ड्राइट्स की लंबाई और मेरुदंड के घनत्व में कमी आ गई थी. उन्होंने कम नींद के परीक्षण को जारी रखा, लेकिन इसके बाद चूहों को बिना बाधा तीन घंटे सोने दिया. ऐसा वैज्ञानिकों के पूर्व कार्यों का परीक्षण करने के लिए किया गया. पूर्व में कहा गया था कि तीन घंटे की नींद, कम सोने से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए पर्याप्त है.

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पांच घंटे से कम नींद वाले परीक्षण के प्रभाव को दोबारा जांचा गया. इसमें चूहों के डेन्ड्रिक स्ट्रक्चर की निगरानी चूहों के सोने के दौरान की गई, तो डेन्ड्रिक स्ट्रक्चर में कोई अंतर नहीं पाया गया. इसके बाद इस बात की जांच की गई कि कम नींद से आण्विक स्तर पर क्या असर पड़ता है. इसमें खुलासा हुआ कि आण्विक तंत्र पर कम नींद का नकारात्मक असर पड़ता है और यह कॉफिलिन को भी निशाना बनाता है.

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