एपिलेप्सी यानी मिर्गी दिमाग से जुड़ी एक ऐसी बीमारी है जिसके पूरी दुनिया में करीब 5 करोड़ लोग शिकार हैं. ये एक बेहद सामान्य न्यूरोलॉजिकल डिसीज है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, मिर्गी बहुत ज्यादा खतरनाक नहीं है, लेकिन शरीर के कई अंदरूनी रोग इसका कारण बन सकते हैं. पूरी दुनिया में तकरीबन 50 फीसद मामलों में मिर्गी के कारणों की पहचान नहीं हो पाई है.
मिर्गी की बीमारी के चलते रोगियों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इसलिए बहुत से लोग इस बीमारी को उजागर ही नहीं करते हैं. ड्राइविंग लाइसेंस से लेकर नौकरी और विवाह में अड़चनें मरीजों का जीवन और मुश्किल बना देती हैं. इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 14 फरवरी को वर्ल्ड एपिलेप्सी डे भी सेलिब्रेट किया जाता है. आइए आज आपको मिर्गी के लक्षण और इलाज से जुड़ी कुछ जरूरी बातें बताते हैं.
क्यों पड़ते हैं मिर्गी के दौरे?
मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर है जो ब्रेन सर्किट में असामान्य तरंगें पैदा करता है. दिमाग में गड़बड़ी के चलते इंसान को बार-बार दौरे पड़ते हैं. दौरा पड़ने पर दिमाग का संतुलन बिगड़ जाता है और शरीर बुरी तरह लड़खड़ाने लगता है. बीमारी को बढ़ावा देने वाले कारक मरीज की उम्र पर निर्भर करते हैं. नवजात शिशुओं के साथ जन्म दोष या डिलीवरी के समय ऑक्सीजन की समस्या के चलते ऐसा हो सकता है. जबकि वयस्कों में सिर पर चोट, इंफेक्शन या ब्रेन ट्यूमर मिर्गी को बढ़ावा दे सकते हैं.
क्या हैं मिर्गी के लक्षण?
मिर्गी में मरीज को दौरे आना सबसे सामान्य लक्षण है. मिर्गी का दौरा पड़ते ही शरीर का संतुलन खो जाता है. मरीज हाथ-पैरों को मरोड़ते हुए किसी स्टैच्यू की तरह जमीन पर गिर जाता है. इनमें दांतों को भींचने या 2 मिनट के लिए हाथों को रगड़ने जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं. कन्फ्यूजन या शरीर में अचानक झटका लगने से वे सामान गिरा सकते हैं. ऐसा अक्सर सुबह के वक्त ज्यादा होता है.
मिर्गी 5 से 15 साल और 70 से 80 साल की आयु के बीच विकसित हो सकती है. जन्म से मिर्गी के दौरे पड़ने के मामले केवल 5 से 10 प्रतिशत हैं. इसमें कुछ लोगों को इलाज की जरूरत नहीं पड़ती है. जबकि कुछ मरीजों को केवल सोते समय ही हल्के झटके महसूस होते हैं.
क्या है इलाज?
आमतौर पर 60-70 फीसद मामलों में दवाओं से मिर्गी का इलाज संभव है. मिर्गी के प्रकार को ध्यान में रखते हुए रोगी को तकरीबन 2-3 साल तक इसकी दवाओं का सेवन करना पड़ता है. कुछ मामलों में ही रोगी को जीवनभर इसकी दवाएं लेनी पड़ती हैं. जबकि कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जहां रोगी पर दवाओं का कोई असर नहीं होता है और ऐसी परिस्थिति में डॉक्टर्स को सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है.
एक्सपर्ट कहते हैं कि मिर्गी के रोगियों को हेल्दी डाइट लेनी चाहिए. इसमें बहुत ज्यादा कार्ब्स वाला खाना खाने से बचना चाहिए. इसका इलाज बहुत आसानी से हो सकता है. अच्छी बात ये है कि मिर्गी के 75 फीसद मामलों में दवाओं का रिस्पॉन्स बहुत अच्छा रहता है. जबकि कुछ मामलों में सर्जरी का सहारा लेकर भी मरीज को बचाया जा सकता है.
कब पड़ती है सर्जरी की जरूरत?
यदि मिर्गी में 1-2 साल से दवाओं का कोई असर नहीं हो रहा है और मरीज को हर रोज, हर हफ्ते, हर महीने या हर दूसरे महीने दौरे पड़ रहे हैं तो डॉक्टर्स मरीज को सर्जरी कराने की सलाह दे सकते हैं. इसके लिए डॉक्टर्स को दिमाग में एपिलेप्सी के रूट का पता लगाना पड़ता है. स्पेशल वीडियो ईजी, स्पेशल एमआरआई और कई तरह के टेस्ट करने के बाद इसकी सर्जरी की जाती है.
aajtak.in