'हिंदू समाज में विवाह से बदलता है महिला का गोत्र', उत्तराधिकार कानून को लेकर बोला सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस नागरत्ना ने कहा, 'महिला विवाह के बाद अपने भाई-बहनों या माता-पिता से भरण-पोषण नहीं मांगती. यह पति और उसकी संपत्ति के खिलाफ है. जिम्मेदारी पति, बच्चों और पति के परिवार की होती है. यदि महिला की संतान नहीं है तो वह वसीयत बना सकती है.”

Advertisement
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी (File Photo: ITG) हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी (File Photo: ITG)

सृष्टि ओझा

  • नई दिल्ली,
  • 25 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:42 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की एक धारा (धारा 15 (1) (बी)) को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान हिंदू रीति-रिवाजों और परंपराओं पर महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं.

धारा 15(1)(b) के अनुसार, यदि किसी हिंदू महिला का बिना वसीयत (intestate) के निधन हो जाता है और उसके पति या संतान नहीं हैं, तो उसकी संपत्ति पति के वारिसों को मिल जाएगी.

Advertisement

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इस प्रावधान की वैधता की जांच करते समय अदालतों को यह ध्यान रखना चाहिए कि हिंदू समाज किस तरह से चलता है.

कोर्ट ने बताया हिंदू समाज में गोत्र का महत्व

जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "आप बहस करने से पहले याद रखें. यह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम है. ‘हिंदू’ का क्या अर्थ है और समाज किस तरह से संचालित होता है, यह समझना ज़रूरी है. हिंदू समाज में कन्यादान की परंपरा है. विवाह के समय स्त्री का गोत्र बदलता है, नाम बदलता है और उसकी ज़िम्मेदारी पति व उसके परिवार की होती है. "

यह भी पढ़ें: समान नागरिक संहिता: जानिए UCC का हिंदू उत्तराधिकार और टैक्स कानून पर क्या पड़ेगा प्रभाव?

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि एक बार शादी होने के बाद, कानून के तहत महिला की जिम्मेदारी उसके पति और उसके परिवार की होती है. न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, "वह अपने माता-पिता या भाई-बहनों से गुजारा भत्ता नहीं मांगेगी. वह अपने भाई के खिलाफ गुजारा भत्ता याचिका दायर नहीं करेगी! यह पति और उसकी संपत्ति के खिलाफ है." उन्होंने यह भी जोड़ा, "अगर किसी महिला के बच्चे नहीं हैं, तो वह हमेशा वसीयत बना सकती है."

Advertisement

कपिल सिब्बल का तर्क

याचिकाकर्ताओं में से एक की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि धारा 15 (1) (बी) मनमानी है क्योंकि यह महिलाओं की गरिमा को प्रभावित करती है. उन्होंने पूछा, "अगर कोई पुरुष बिना वसीयत के मर जाता है, तो उसकी संपत्ति उसके परिवार को मिलती है. तो फिर किसी महिला की संपत्ति, उसके बच्चों के बाद, केवल उसके पति के परिवार को ही क्यों मिले?" मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि चुनौती धार्मिक रिवाजों की नहीं बल्कि क़ानून की वैधता की है.

यह भी पढ़ें: 'आपके सपने बहुत बड़े हैं...' शादी को हुआ 1 साल और पत्नी ने एलिमनी में मांगे 5 करोड़, SC ने लगाई फटकार

हालांकि, पीठ ने न्यायिक हस्तक्षेप के माध्यम से सदियों पुरानी प्रथाओं को बदलने के खिलाफ चेतावनी दी. कोर्ट ने कहा, "कठोर तथ्यों से बुरा कानून नहीं बनना चाहिए. हम नहीं चाहते कि हजारों साल से चली आ रही कोई चीज हमारे फैसले से टूट जाए."

मामले को कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता केंद्र भेजते हुए कहा कि पक्षकार आपसी सुलह के विकल्प तलाशें, जबकि संवैधानिक मुद्दों पर विचार जारी रहेगा.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement