दिल्ली हाई कोर्ट ने वर्ष 1993 के मुंबई श्रृंखलाबद्ध विस्फोट मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे प्रत्यर्पित गैंगस्टर अबू सलेम की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद उसकी हिरासत अवैध नहीं हो सकती. अब उस याचिका का कोई औचित्य नहीं है. कोर्ट ने सलेम के वकील को हिरासत अवैध होने के मुद्दे पर संतुष्ट करने को कहते हुए इस मामले की सुनवाई 29 नवंबर तक के लिए टाल दी है.
दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा बयान
सलेम ने याचिका दाखिल कर भारत में अपने हिरासत को अवैध घोषित करने एवं संधि की शर्तो के अनुसार उसे पुर्तगाल वापस भेजने की मांग की है. कोर्ट ने कहा कि एक बार जब अदालत ने सलेम के मुकदमे की सुनवाई कर ली और उसे दोषी ठहरा दिया तो वह कैसे कह सकता है कि हिरासत अवैध है.
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि भले ही शुरू में सलेम की हिरासत कानून के लिहाज से अनुचित थी, फिर भी अदालत ने जब सुनवाई के बाद सजा दे दिया तो उसकी हिरासत अवैध नहीं रहती है. इस मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण का मामला नहीं बनता है. यह तब होता जब आपकी हिरासत अवैध होती, लेकिन अब ऐसा नहीं है.
अबू पर क्या हैं आरोप?
अब जानकारी के लिए बता दें कि गैंगस्टर अबू सलेम उम्रकैद की सजा काट रहा है. उस पर 1993 में तो गंभीर आरोप लगे ही थे, इसके अलावा 1995 में एक बिजनेसमैन की हत्या का मामला दर्ज हुआ था. कहा गया था कि बिल्डर प्रदीप जैन ने अबू सलेम के कुछ पैसे नहीं लौटाए थे, जिसके बाद उसके आदमियों ने बिल्डर को गोलियों से भून दिया था. उस मामले में अबू उम्रकैद की सजा काट रहा है.
संजय शर्मा