उत्तराखंड में क्यों खाली हो गए हजारों गांव, पलायन आयोग ने मुख्यमंत्री ने सौंपी रिपोर्ट

जब से उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया है, तब से निरंतर पलायन बढ़ता ही जा रहा है. पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के हजारों गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं. वहीं 400 से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां 10 से भी कम नागरिक हैं.

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उत्तराखंड का वीरान पड़ा एक गांव (फाइल फोटो) उत्तराखंड का वीरान पड़ा एक गांव (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • देहरादून,
  • 19 जून 2019,
  • अपडेटेड 10:57 PM IST

विकट भौगोलिक संरचना वाले उत्तराखंड में पलायन बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है. जब से उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया है, तब से निरंतर पलायन बढ़ता ही जा रहा है. पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के हजारों गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं. वहीं 400 से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां 10 से भी कम नागरिक हैं. पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि प्रदेश सरकार पलायन रोकने के लिए हर संभव उपाय करेगी. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार ने इसके लिए हमारी सरकार द्वारा शुरू की गई अधिकतर योजनाएं बंद कर दीं.

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पलायन आयोग की ओर से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार अकेले अल्मोड़ा जिले में ही 70 हजार लोगों ने पलायन किया है. सूबे की 646 पंचायतों के 16207 लोग स्थाई रूप से अपना गांव छोड़ चुके हैं. पलायन आयोग की रिपोर्ट में 73 फ़ीसदी परिवारों की मासिक आय 5000 रुपये से कम बताई गई है. आयोग ने मूलभूत सुविधाओं के अभाव को पलायन की मुख्य वजह बताया है. 17 सितंबर 2017 में पलायन आयोग का गठन किया था और आयोग ने साल 2018 में सरकार को अपनी पहली रिपोर्ट सौंपी थी.

2018 तक खाली हो चुके थे 1734 गांव, मुख्यमंत्री के जिले में सर्वाधिक

आयोग की पहली रिपोर्ट के अनुसार 2011 में उत्तराखंड के 1034 गांव खाली थे. साल 2018 तक 1734 गांव खाली हो चुके थे. राज्य में 405 गांव ऐसे थे, जहां 10 से भी कम लोग रहते हैं. प्रदेश के 3.5 लाख से अधिक घर वीरान पड़े हैं, जहां रहने वाला कोई नहीं. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के गृह जनपद पौड़ी में ही अकेले 300 से अधिक गांव खाली थे. खाली पड़े गांवों को भूतिया गांव कहे जाने लगा है. आयोग के अनुसार पलायन के मामले में इस बार भी पौड़ी और अल्मोड़ा जिले शीर्ष पर रहे हैं.

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पलायन करने वालों में सर्वाधिक युवा

पलायन करने वालों में 42.2 फीसदी 26 से 35 उम्रवर्ग के युवा हैं. पलायन आयोग के अध्यक्ष एसएस नेगी ने कहा कि रोजगार के साधनों का अभाव युवाओं के पलायन का मुख्य कारण है. रोजगार के नाम पर पहाड़ों पर कुछ भी नहीं है, जिसके कारण युवा रोजी-रोटी की तलाश में बड़े शहरों का रुख करने को विवश हो रहे हैं. पलायन के आंकड़ों पर प्रदेश सरकार के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि सरकार इसे रोकने के लिए कार्य कर रही है. उन्होंने कहा कि जो लोग वोट देने घर आते हैं, उन्हें रोकने का प्रयास करने से भी पलायन रुक सकता है.

हरीश रावत ने ली चुटकी, साधा निशाना

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पलायन आयोग पर चुटकी लेते हुए कहा कि इसका मुख्यालय पौड़ी में बनाया गया था. पलायन आयोग के अध्यक्ष ही पलायन कर राजधानी में बैठे हुए हैं तो पहाड़ का पलायन कैसे रुकेगा? उन्होंने कहा कि जब तक पहाड़ के लिए योजनाएं नहीं बनाई जाएंगी, युवाओं के लिए कुछ होगा नहीं, तब तक पलायन नहीं रुकेगा. रावत ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री रहते पहाड़ के लिए 3000 से अधिक योजनाएं बनाई थीं. वर्तमान सरकार ने इनमें से अधिकतर योजनाएं बंद कर दीं.

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जनता का दर्द यह है कि पहाड़ पर न तो रोजगार है और ना ही उपजाऊ जमीन. जनप्रतिनिधि और सरकारें हैं कि एक-दूसरे को कोसने से फुर्सत नहीं. पहाड़ पर पहाड़ जैसा जीवन जीने को मजबूर लोगों की समस्याएं समझने के प्रयास के दावे करते-करते सरकारें आती हैं, जाती हैं लेकिन लोगों के सामने रह जाता है वही विकट पहाड़.

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