कहते हैं कि नेताओं का चर्चा में बने रहना भी उनकी सियासत के लिहाज से जरुरी होता है और वो भी चुनाव का वक्त हो, तो जरुरत और भी ज्यादा बढ़ जाती है. ऐसे में सियासी दुश्मन मीडिया में खुद से ज्यादा सुर्खियां बटोरे और उसका अंदाज भी हमलावर हो, तो दर्द बढ़ना लाजमी है. कुछ ऐसा ही यूपी के सीएम अखिलेश यादव महसूस कर रहे हैं. उनको लगता है कि उनके विकास के काम मीडिया में जगह कम बना पा रहे हैं और संसद सत्र के चलते मायावती दिल्ली में रोज कोई न कोई बयां देकर सुर्खियों में आ जाती हैं.
इसीलिए एक दिन के लिए संसद आये अखिलेश ने सबसे पहले इसी बात पर नए अंदाज में निशाना साधते हुए मुहावरा ही गढ़ डाला. मायावती का नाम लिए बगैर अखिलेश बोले कि आजकल पत्थर लगाने वाली टीवी में खूब आती हैं, उनका नया नाम बीबीसी 2 होना चाहिए. फिर इसका फुल फॉर्म भी अखिलेश ने बताया-बुआ ब्रॉडकास्टिंग कारपोरेशन. जिसके बाद अखिलेश समेत नीरज शेखर, सुरेंदर नागर जैसे सपा सांसदों ने जमकर ठहाका लगाया.
1993 गेस्ट हाउस कांड की दिलाई याद
इसके बाद सभी को इंतजार मायावती के जवाब का था. माया के करीबियों ने उनको अखिलेश के बयान की पूरी जानकारी दी, तो माया ने उनसे कहा कि, मैं खुद इसका जवाब दूँगी. फिर क्या था, मायावती खुद मीडिया से मुखातिब हुईं और अखिलेश यादव को सपा मुखिया का बबुआ करार दे डाला. मायावती ने 1993 के गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाते हुए कहा कि, जो हुआ था उसके बाद ऐसे लोगों से कैसा रिश्ता, ये सपा मुखिया का बबुआ, किसी को बुआ, किसी को माता, किसी को चाचा कहता है और पैर छूता रहता है. ये सपा मुखिया का बबुआ पीएम को खुश करने के लिए नोट के लिए लाइन में लगे लोगों पर लाठीचार्ज करवाता है. इस वक्त इस सपा मुखिया के बबुआ को यूपी की जनता की सुध लेनी चाहिए तो दिल्ली में संसद घूम रहा है. बबुआ को पता है कि सरकार नहीं आ रही, इसीलिए गठबंधन की बात कर रहा है. मायावती हर लाइन में बबुआ बोल रहीं थीं, खुद भी मुस्कुरा रहीं थीं और उनके सहयोगी सांसद भी हंस रहे थे.
दरअसल, अखिलेश मायावती को बुआ कहकर खुद की सियासी छवि को दुरुस्त रखना चाहते रहे. लेकिन चुनाव अखिलेश की छवि पर हो और उसमें डेंट ना हो, तो नुकसान बसपा को झेलना पड़ सकता था. इसीलिए मायावती ने पहले तो अखिलेश को मुलायम जैसा ही बताया, फिर अखिलेश को बुआ कहने से मना किया और बात बढ़ी तो दोनों की जंग बीबीसी और बबुआ पर पहुँच गयी.
अभी तो चुनावों की घोषणा नहीं हुई, तब बीबीसी और बबुआ सामने हैं, तय है आगे माया और अखिलेश की सियासी लड़ाई तमाम और मुहावरे गढ़ेगी, जिसका लुत्फ़ आप और हम उठाएंगे. तो तैयार रहिये देश के सबसे बड़े प्रदेश के त्यौहार के सियासी रंगों में सराबोर होने के लिए.
कुमार विक्रांत