रिकार्ड चीनी उत्पादन फिर भी मायूस गन्ना किसान

रिकॉर्ड चीनी उत्पादन के बावजूद सूबे में गन्ना किसानों के 2,700 करोड़ रु. मिलों पर बकाया

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एम.रियाज़ हाशमी एम.रियाज़ हाशमी

मंजीत ठाकुर / संध्या द्विवेदी

  • उत्तर प्रदेश,
  • 06 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 9:04 PM IST

उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान फिर मायूस हैं. पिछले कई कड़वे अनुभवों के बावजूद उन्होंने मीठे गन्ने की भरपूर खेती की और दो हक्रते में गन्ना मूल्य भुगतान के सरकारी वादे पर भरोसा करके चीनी मिलों को अनवरत सप्लाई भी जारी रखी. मिलों ने भी चीनी उत्पादन के पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले. मिलों में चीनी का ढेर जितना बढ़ रहा है, गन्ना मूल्य की बकाया राशि भी उतनी ही बढ़ती जा रही है.

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मेरठ के 52 वर्षीय किसान रामवीर सिंह लगभग एक एकड़ भूमि में खेती करते हैं. आधी जमीन पर उन्होंने गन्ने की खेती की और 20 जनवरी तक करीब तीन लाख रु. मूल्य का गन्ना चीनी मिल को सप्लाई किया. अक्तूबर 2017 में उन्हें मिल की ओर से सिर्फ 70,000 रु. का भुगतान मिला और लगभग 75 फीसदी भुगतान अभी बकाया है.

पूरे प्रदेश में 35 लाख से अधिक किसान भुगतान की समस्या से जूझ रहे हैं. खासकर 'शुगर बोल' पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए इससे गन्ना पेराई के सीजन में पूरे बाजार का गणित बिगड़ रहा है. रामवीर सिंह कहते हैं, ''विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने दो हक्रते में गन्ना मूल्य भुगतान की बात कही थी.

लेकिन जमीनी हकीकत बेहद खराब है. पेराई सीजन को तीन माह हो चुके हैं लेकिन भुगतान ढाई महीने से नहीं हो पाया है.'' सहारनपुर के किसान अरुण राणा सवाल पूछते हैं, ''सरकार बताए कि हम बिजली, बच्चों की स्कूल फीस, दवाई, रोजमर्रा के खर्चे और खेत मजदूरों का मासिक भुगतान कहां से करें?''

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हालांकि सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि 30 जनवरी तक करीब 11,136 करोड़ रु. का भुगतान सूबे के किसानों के खातों में जा चुका है जो 14 दिन पहले तक 13,837 करोड़ रु. के आसपास था. लेकिन चीनी मिलों पर अब भी बकाएदारी 2701.59 करोड़ रु. की है. इस मामले में अलग-अलग मिलों के आंकड़े अलग-अलग हैं. 

भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ. राकेश टिकैत कहते हैं, ''सब सरकारों की नीयत एक जैसी है. गन्ना अधिनियम में 14 दिन में भुगतान की व्यवस्था है तो सरकार इसे लागू क्यों नहीं कराती?'' हालांकि सारी चीनी मिलों का मामला एक जैसा नहीं हैं. कई मिलों ने किसानों को एडवांस भुगतान भी किया है.

यूपी शुगर मिल्स एसोसिएशन के सचिव दीपक गुप्ता कहते हैं, ''चीनी के दाम से ही गन्ने के दाम निकलेंगे. गन्ने के दाम राजनैतिक कारणों से बढ़ाए जाते हैं इसलिए वे कम नहीं होते, चीनी के दाम कम होते रहते हैं.''  प्रमुख सचिव और गन्ना आयुक्त संजय आर. भूसरेड्डी कहते हैं, ''किसानों को घबराने की जरूरत नहीं है.

उनके भुगतान की गारंटी चीनी, शीरा और खोई है जो सरकार के नियंत्रण में है. बिक्री से पैसा एस्क्रो एकाउंट में आ रहा है जो रिलीज किया जा रहा है.'' चीनी के दामों में सुस्ती को भी भुगतान में देर से जोड़ा जा रहा है लेकिन ये दलीलें अगली फसल की तैयारी में जुटे किसानों की समस्या का हल नहीं हैं. गन्ना बकाया हर सीजन की समस्या है. इसका स्थायी हल निकाले बगैर किसानों को राहत नहीं मिलेगी.

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