दिसंबर 1949 से 1992 तक विवादित ढांचे में, 6 दिसंबर 1992 से 25 मार्च 2020 तक तिरपाल के नीचे विराजमान रहे रामलला अब तीसरे ढांचे में विराजेंगे. रामलला नव विक्रम संवत्सर के दिन गर्भ गृह के समीप नए ढांचे में शिफ्ट होंगे. यहां से रामलला को भव्य मंदिर में शिफ्ट किया जाएगा, लेकिन इसके लिए रामलला को अगले आमचुनाव तक या उसके भी बाद तक प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है.
वहीं, 2 अप्रैल को रामनवमी है. रामनवमी के अवसर पर उमड़ने वाली भीड़ और कोरोना वायरस को देखते हुए प्रशासन विशेष व्यवस्था करने में जुट गया है. प्रशासन के मुताबिक कोरोना वायरस से बचाव के एहतियात और श्रीरामनवमी पर जुटने वाली भीड़ को लेकर मंथन किया जा रहा है. प्रशासन की मानें तो कोशिश यही की जा रही है कि भीड़ कम जुटे. यदि ऐसा नहीं हुआ, तो प्रत्येक श्रद्धालु के स्वास्थ्य की स्क्रीनिंग करना नामुमकिन हो जाएगा. इससे खतरा और बढ़ेगा.
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इस बीच जिस ढांचे में रामलला विराजमान होंगे, वह दिल्ली से अयोध्या पहुंच चुका है. दिल्ली के विशेष कारखाने में प्रत्येक हिस्से को मोल्डिंग और फिटिंग के साथ जांच परख कर अयोध्या लाया गया मंदिर का यह ढांचा वातानुकूलित है. इसके अंदर का तापमान 24 से 25 डिग्री सेल्सियस रहेगा. 24 मार्च तक इसे मंदिर के गर्भगृह के पास पूरी तरह फिट कर दिया जाएगा.
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श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास के वरिष्ठ पदाधिकारियों के मुताबिक इस प्री फेब्रिकेटेड मेक शिफ्ट स्ट्रक्चर को फिट करने में 7 से 8 दिन का समय लगेगा. अयोध्या के जिलाधिकारी और न्यासी अनुज झा के मुताबिक सोमवार से इसकी फिटिंग का कार्य शुरू कर दिया जाएगा और इसे 23 मार्च तक पूर्ण रूप से तैयार कर लिया जाएगा. उन्होंने बताया कि समस्त सुरक्षा इंतजाम सुनिश्चित कर लिए जाएंगे और 24 मार्च की रात तक अनुष्ठान चलेंगे.
गोपनीय होगी रामलला की पधरावनी
जिलाधिकारी ने कहा कि 11 पंडितों के अनुभवी निर्देशन में वैदिक अनुष्ठान के बाद शुभ मुहूर्त में श्री रामलला की पधरावनी गोपनीय ढंग से होगी. उन्हें पालकी में विराजित कर पूर्ण वैदिक रीति और अनुष्ठान के साथ नए अस्थाई मंदिर के ढांचे में प्रतिष्ठित कर दिया जाएगा. जिलाधिकारी ने कहा कि रामलला को प्रतिष्ठित करने के बाद अनुष्ठान उत्सव 2 अप्रैल यानी श्री रामनवमी तक जारी रहेंगे.
भूमि के अध्ययन में जुटा विशेषज्ञों का दल
राजस्थान के तकनीकी विशेषज्ञों का दल भी अयोध्या पहुंच चुका है. विशेषज्ञों का यह दल भूमि का अध्ययन करने में जुट गया है. 14 विशेषज्ञों में मंदिर निर्माण करने वाली कंपनी लार्सन एंड टुब्रो के अधिकारी भी शामिल हैं. यह दल अत्याधुनिक तकनीक से भूमि के साथ ही मंदिर निर्माण में इस्तेमाल किए जाने वाले पत्थरों की गुणवत्ता के रसायनिक और भौतिक परीक्षण भी कर रहा है.
संजय शर्मा