ज्ञानवापी में वजूखाने के अंदर शिवलिंग मिलने के बाद अब वहां वजू करने पर पाबंदी लगाने की मांग उठने लगी है. ऐसे में अगर आप नहीं जानते तो आपके मन में एक सवाल जरूर उठ रहा होगा कि आखिर वजू क्या है..और मुस्लिम धर्म में इसे लेकर क्या मान्यताएं हैं.. आपकी इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए हमने मुस्लिम विद्वानों से बात की है..जिन्होंने बताया है कि वज़ू अरबी मूल का शब्द है और ये नमाज की तैयारियों का पहला चरण है.
मस्जिद में वजूखाना की अहमियत
मस्जिद में नमाज से पहले मुस्लिम समुदाय का हर शख्स शारीरिक शुद्धता के लिए वजू करता है. इस्लाम धर्म के जानकारों का कहना है कि वजू करने के बाद ही नमाज पढ़ी जा सकती है. माना जाता है कि वजू के लिए पानी बहता हुआ होना जरूरी है. वजू करना महिलाओं के लिए भी जरूरी होता है. अगर कोई घर पर भी नमाज कर रहा है तो उन्हें भी वजू करना जरूरी होता है.
बताया जाता है कि जामिया मस्जिद मे सिर्फ उस तरह का वजूखाना बना है..जो पुरानी मस्जिदों में है...ये वजूखाने इसलिए क्योंकि नल नहीं होते थे..तालाब के बीच..मस्जिद के किनारे बनाया जाता था. इस्लाम में वजू के लिए चार चीजें हैं..हाथ धोना..कुल्ली करना..तीन बार पूरे चेहरे को धोना...ये वजू का बेसिक है..उसके बाद बाजू तक तीन बार हाथ धोना है.
उसी के बाद नमाज पढ़ने के लिए जाया जाता है..लेकिन इस वजू करने से पहले साफ सुथरा होना चाहिए..जितनी बारी नमाज पढ़ें...हर एक मुसलमान को वजू करना जरूरी है. लेकिन अब जमाना बदल गया है..मस्जिदों में भी मॉडर्नाइजेशन आई है..बाथरुम में जाकर वजू किया जाता है.
मस्जिद में फव्वारे वाला विवाद
वैसे वजू के बाद ज्ञानवापी विवाद में एक और मुद्दे पर बहस चल रही है. ज्ञानवापी के फव्वारे के पीछे कौन सा विज्ञान है? आजतक ने इस मुद्दे पर प्रोफ़ेसर अख्तर से खास बातचीत की है. वे बताते हैं कि मुगल काल में भी फिजिक्स और डायनामिक्स काफी डिवेलप था और जो पानी को एक जगह से दूसरी जगह तक ले जाने में काम आता था. हम आम तौर पर वैदिक और मुस्लिम तकनीकों को नजरअंदाज कर देते हैं और यही मानते हैं कि अंग्रेजों ने ही सारी वैज्ञानिक तकनीकी हमें दी लेकिन ऐसा नहीं है. पहले भी ऐसे उदाहरण हैं चाहे वो दिल्ली में हो या और कहीं जहां पर वाटर डायनॉमिक्स पर काम किया गया था.
मुस्लिम धर्म में प्रार्थना से पहले वजू करने की प्रथा रही है और उसके लिए ही ऐसे होदा या पौंड मस्जिदों में बनाए जाते थे और उन में फव्वारे इसलिए लगाए जाते थे ताकि पानी ठहरे नहीं क्योंकि ठहरा हुआ पानी सड़ जाता है. प्रोफेसर ये भी मानते हैं कि मस्जिद में भी जो स्ट्रक्चर देखने को मिला है उससे यही लगता है कि वह फव्वारा रहा होगा और उसका काम पानी को साफ करने का मालूम पड़ता है. उसमें कौन सी तकनीक अपनाई गई होगी या फिर पत्थर का क्या इस्तेमाल रहा होगा उसके बारे में जानकारी खोजबीन के जरिए ही पता चल सकती है. मुगलकालीन तकनीक तुर्की और अन्य देशों से हिंदुस्तान में आई थी और यहां पर भी अपनी तकनीक विकसित की गई इसलिए अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तकनीक देखने को मिलती है.
अशरफ वानी / कुमार कुणाल