उत्तर प्रदेश के 17 आरक्षित संसदीय सीटों में से एक इटावा लोकसभा सीट को समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है. महान दलित नेता और बसपा संस्थापक कांशीराम लोकसभा में इटावा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. इटावा की पहचान अपने शुद्ध देशी घी के उत्पादन के लिए भी है. समाजवादी राजनीति के गढ़ में 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने कमल खिलाया था. हालांकि बीजेपी की ओर से सांसद का अशोक कुमार दोहरे टिकट काटे जाने के बाद वह बागी हो गए और कांग्रेस में शामिल हो गए.
इटावा लोकसभा सीट पर इस बार 13 उम्मीदवार मैदान में हैं. पिछली बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतने वाले अशोक कुमार दोहरे इस बार पार्टी के टिकट नहीं मिलने के बाद पार्टी छोड़ दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेस ने उन्हें इटावा से मैदान में उतारा तो बीजेपी ने जवाब में प्रदेश के चर्चित नेता डॉक्टर राम शंकर कठेरिया को टिकट दे दिया. समाजवादी पार्टी के टिकट पर कमलेश कुमार मैदान में हैं. 3 उम्मीदवार बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान में हैं.
इटावा लोकसभा सीट पर अभी तक कुल 16 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें से चार-चार बार सपा और कांग्रेस ने जीत हासिल की जबकि दो बार बीजेपी, एक-एक बार बसपा, जनता दल, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय लोकदल और सोशलिस्ट पार्टी ने जीत दर्ज की है.
1952 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के तुला राम ने जीत हासिल की. इसके बाद 1957 में सोशलिस्ट पार्टी के अर्जुन सिंह भदौरिया ने और 1962 में कांग्रेस के जीएन दीक्षित चुनाव जीते, लेकिन 1967 में अर्जुन सिंह भदौरिया संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीतने में कामयाब रहे. 1971 में कांग्रेस ने वापसी की और शंकर तिवारी सांसद बने.
बीजेपी ने दी पहली महिला सांसद
1977 में अर्जुन सिंह ने इस बार भारतीय लोकदल के टिकट पर जीत हासिल की, लेकिन 1980 में जनता पार्टी से राम सिंह शाक्य ने जीत का परचम फहराया. 1984 में रघुराज सिंह चौधरी कांग्रेस से जीते, पर 1989 में राम सिंह शाक्य जनता दल से उतरे और जीत हासिल की और 1991 में बसपा से कांशीराम ने विजय दर्ज की. 1996 में राम सिंह शाक्य से सपा उतरे और एक बार फिर जीतने में कामयाब रहे. 1998 में पहली बार बीजेपी इटावा सीट पर कमल खिलाया और सुखदा मिश्र के रूप में पहली बार यहां से कोई महिला सांसद बनीं.
1999 और 2004 में रघुराज सिंह शाक्य सपा के टिकट पर जीते. इसके बाद 2009 में परिसीमन के बाद इटावा लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हो गई और यहां से सपा के प्रेमदास कठेरिया ने जीत दर्ज की, लेकिन 2014 में मोदी लहर के सहारे अशोक कुमार दोहरे बीजेपी का कमल खिलाने में कामयाब रहे, लेकिन इस बार उनका टिकट कट गया और वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
27 फीसदी अनुसूचित जाति
2011 के जनगणना के मुताबिक इटावा की कुल जनसंख्या 23,74,473 है जिसमें 76.36 फीसदी ग्रामीण और 23.64 फीसदी शहरी आबादी है. यहां पर अनुसूचित जाति की आबादी 26.79 फीसदी है. इस संसदीय सीट पर ओबीसी समुदाय में यादव और शाक्य मतदाताओं के साथ-साथ राजपूत मतदाता काफी निर्णायक भूमिका में हैं. जबकि 7 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं.
इटावा लोकसभा सीट के अंतर्गत कुल पांच विधानसभा सीटें इटावा, भरथना, दिबियापुर, औरैया और सिकंदरा विधानसभा सीटें आती हैं. भरथना सीट पर सपा बाकी चार सीटों पर बीजेपी का कब्जा है.
2014 के लोकसभा चुनाव में इटावा संसदीय सीट पर 55.04 फीसदी मतदान हुए थे. इस सीट पर बीजेपी के अशोक कुमार दोहरे ने सपा के प्रेमदास कठेरिया को एक लाख 72 हजार 946 वोटों से मात देकर जीत हासिल की थी. अशोक कुमार दोहरे को 4,39,646 वोट मिले जबकि प्रेमदास कठेरिया को 2,66,700 वोट मिले. बसपा के अजय पाल सिंह जाटव को 1,92,804 वोट हासिल हुए थे.
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सुरेंद्र कुमार वर्मा