स्वराज अभियान के संस्थापक सदस्य और आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता योगेंद्र यादव की ओर से एक पेंटिंग को ट्वीट किए जाने से विवाद छिड़ गया है. यादव ने ईद पर हिन्दू-मुस्लिम एकता को दिखाने के लिए संभवत: इस पेंटिंग को ट्वीट किया.
अब, शशि थरूर, खुद यादव, उदय भास्कर और विलियम डालरिम्पल जैसे नामचीन लोगों में इसको लेकर ट्विटर पर तकरार छिड़ गई है. इस पेंटिंग को ट्विटर पर शेयर करने का मकसद यही था कि सांप्रदायिक एकता और भारतीय संस्कृति के समावेशी चेहरे को हाइलाइट किया जाए. लेकिन नतीजा ट्विटर यूजर्स में गर्मागर्म बहस के तौर पर सामने आया.
पेंटिंग में श्याम वर्ण के भगवान कृष्ण को आकाश की ओर इंगित करते देखा जा सकता है. उनके आगे बलराम खड़े हैं. साथ ही कुछ पुरुष और महिलाएं भी उनके पीछे हैं. कृष्ण के साथ एक दाढ़ी वाले बुजुर्ग को भी देखा जा सकता है जिसने पगड़ी और चोगा पहना रखा है. पेंटिंग में चांद भी देखा जा सकता है.
यादव ने जो ट्वीट में लिखा, उसका आशय यही निकलता है कि भगवान कृष्ण ईद का चांद देखने के बाद उसे इंगित करते हुए मुस्लिम पुरुषों और महिलाओं को दिखा रहे हैं. कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी इसी दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए ईद की मुबारकबाद के साथ पेंटिंग की तस्वीर को ट्विटर पर शेयर किया.
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यादव और थरूर की ओर से पेंटिंग को ट्वीट करते ही ट्विटर यूजर्स ने उनसे जानकारी के स्रोत के बारे में पूछना शुरू कर दिया. कई लोगों ने दावा किया कि पेंटिंग के साथ दोनों ने जो जानकारी दी, वो गलत है. उनका कहना था कि पेंटिंग का ईद से किसी तरह का जुड़ाव नहीं है और पेंटिंग में चोगा पहने जो बुजुर्ग शख्स दिख रहा है वो मुस्लिम नहीं है.
प्रसिद्ध लेखक डालरिम्पल ने एक लेख का हवाला देते हुए थरूर और यादव के कथन को गलत बताते हुए रिट्वीट किया. डालरिम्पल 'व्हाइट मुगल्स' किताब के लेखक हैं.
जब कई तरफ से सवालों की बौछार होने लगी तो यादव ने डॉ दीपांकर देब का हवाला दिया, जिन्होंने 2015 में अपनी किताब 'मुस्लिम डिवोटिज ऑफ कृष्णा' में इस पेंटिंग को ईद से जोड़ते हुए उद्धृत किया था. देब इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फ्रास्ट्रक्चर टेक्नोलॉजी रिसर्च एंड मैनेजमेंट (IITRAM) में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, साथ ही स्वघोषित वैष्णवी हैं. इतिहास में उनकी नगण्य पृष्ठभूमि है.
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इंडिया टुडे ने अपनी पड़ताल से पता लगाया कि देब की किताब प्रकाशित होने के बाद, शबाना आजमी जैसे कुछ और लोगों ने भी इस तस्वीर को उठाया और ईद के साथ उसे जोड़ा. शबाना आजमी ने इसी तरह के संदेश के इस तस्वीर को पिछले साल ट्वीट किया था.
हालांकि देब से जब पेंटिंग को लेकर उनके दावे के बारे में पूछा गया तो वो इसके लिए कोई पुख्ता प्रमाण देने में नाकाम रहे. देब ने माना कि उन्होंने मूल कलाकृति को कभी नहीं देखा और ना ही उन्हें ये पता है कि वो कहां मौजूद है.
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'पेंटिंग का ईद से कोई संबंध नहीं'
कला-इतिहासकारों में जाने माने नाम और पद्मश्री बी एन गोस्वामी का भी कहना है कि उपरोक्त पेंटिंग का ईद से कुछ लेना-देना नहीं है. गोस्वामी का ही हवाला डालरिम्पल ने यादव और थरूर के दावों की काट करते वक्त दिया था. दिलचस्प ये है कि यादव भी गोस्वामी को 'मिनिएचर पेंटिंग में ग्लोबल अथॉरिटी' मानते हैं. साथ ही उन्हें 'ऐसा स्कॉलर मानते हैं जिनका कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है.'
गोस्वामी के मुताबिक पेंटिंग में जो चोगा पहने बुजुर्ग दिख रहे हैं वे कृष्ण के पालक पिता नंद हैं. इस पोशाक की सबसे खास बात है कि ये बाईं बगल में बंधी है जो इसके हिन्दू पोशाक होने की बानगी है. वहीं मुगल काल में मुस्लिम पोशाक को हमेंशा दाईं बगल के नीचे बांधते थे.
पहले इस तरह की पेंटिंग्स का संग्रह सिर्फ टिहरी शासकों के पास ही होता था. लेकिन धीरे-धीरे ये संग्रह बिखर गया. कई पेंटिंग्स गुम हो गई. प्रोफेसर गोस्वामी बताते हैं कि भागवतपुराण के थीम पर आधारित इसी सीरीज की अन्य पेंटिंग्स उपलब्ध हैं. इनमें कृष्ण भगवान को समान पहनावे में देखा जा सकता है. हमने खोज की तो हमारे हाथ इसी सीरीज की कुछ पेंटिंग्स हाथ लगीं.
इंडिया टुडे ने इस संबंध में जब हरबंस मुखिया से संपर्क किया तो उन्होंने इस विवाद में खुद को ना लाने के लिए कहा. हालांकि उनके पुत्र सुदीप ने स्पष्टीकरण दिया कि उन्होंने इस तस्वीर के साथ ईद के संदेश और पिता के नाम को ट्वीट किया था, वैसा का वैसा जैसा किसी ने उन्हें फ़ॉरवर्ड किया था. सुदीप ने ये स्वीकार किया कि उन्होंने पेंटिंग को लेकर पिता से पुष्टि नहीं की थी और उनका मेरे ट्वीट से किसी तरह का जुड़ाव नहीं है.
बालकृष्ण