अपने ही देश में निर्वासित जीवन जी रहे कश्मीरी पंडित, कब मिलेगी इन्हें अपनी धरती

1989-90 के दशक की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर की घाटी में आतंकवाद की घटनाएं शुरू हुई और आतंकी गतिविधियों का शिकार ज्यादातर कश्मीरी पंडित हुए. इस डर के माहौल में 1 से 2 लाख कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी और देश के अन्य हिस्सों में वे विस्थापित जीवन जीने को मजबूर हैं.

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पुनर्वास का आज भी है इंतजार (फाइल-REUTERS) पुनर्वास का आज भी है इंतजार (फाइल-REUTERS)

सुरेंद्र कुमार वर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 20 जून 2019,
  • अपडेटेड 8:16 AM IST

भारत भी दुनिया के कई अन्य देशों की तरह शरणार्थियों की समस्या से ग्रस्त है. इस समय देश में करीब 2 लाख शरणार्थी रहते हैं जिसमें तिब्बती, रोहिंग्या, अफगानी समुदाय के लोग यहां पर निर्वासित जीवन जी रहे हैं. इन विदेशी शरणार्थियों के अलावा भारत अपने ही कश्मीरी पंडितों के निर्वासित जीवन का पुनर्वास नहीं कर सका है और ढेरों वादों के बीच यह समस्या अभी भी अनसुलझी है.

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1989-90 के दशक की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर की घाटी में आतंकवाद की घटनाएं शुरू हुई और आतंकी गतिविधियों का शिकार ज्यादातर कश्मीरी पंडित हुए. इस डर के माहौल में 1 से 2 लाख कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी और देश के अन्य हिस्सों में वे विस्थापित जीवन जीने को मजबूर हैं.

वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार 7 करोड़ से ज्यादा शरणार्थी 3 अलग-अलग ग्रुप में रखे गए हैं. इन शरणार्थियों में एक ग्रुप उन लोगों का है जो अपने ही देश में विस्थापितों का जीवन जी रहे हैं और उनकी संख्या 4 करोड़ 13 लाख है. इस वर्ग के लोगों को इंटरनली डिसप्लेस्ड पीपुल (आईडीपी) भी कहा जाता है. कश्मीरी पंडित इन्हीं श्रेणी में आते हैं.

यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज (यूएनएचसीआर) की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार 2019 में भारत में 1,97,146 शरणार्थी हैं जबकि 10,519 शरणार्थियों ने शरण ले रखी है.

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219 कश्मीरी पंडितों की हत्या

माना जाता है कि भारत में 1 से 2 लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडित विस्थापित हैं. हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स दावा करती हैं कि यह संख्या करीब 7 लाख की है. जम्मू-कश्मीर सरकार का कहना है कि 1989 से 2004 के बीच क्षेत्र में 219 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई.

केंद्र और राज्य सरकारों ने कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को लेकर ढेरों वादे किए, लेकिन पलायन के 30 साल बीत जाने के बाद अभी तक कोई ठोस परिणाम नहीं निकला. आज भी लाखों कश्मीरी पंडित इस आस में हैं कि वो अपनी जन्मभूमि लौटेंगे और अंतिम सांस वहीं लेंगे.

कांग्रेस में 7 लाख का वादा

घाटी में वापसी और पुर्नवास को लेकर कश्मीरी पंडितों में असुरक्षा का माहौल है और उनका कहना है कि केंद्र सरकार उनके पुर्नवास कार्यक्रम को सही तरीके से पूरा करने में नाकाम रही है. 2008 में कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए सरकार ने कश्मीरी पंडितों की वापसी और पुर्नवास योजना का ऐलान करते हुए हर कश्मीरी को फिर से घाटी में बसने के लिए मकान निर्माण के वास्ते 7 लाख रुपए देने की बात कही.

लेकिन केंद्र सरकार की इस योजना पर राज्य की तत्कालीन उमर अब्दुल्ला सरकार ने पीड़ित परिवारों से फीडबैक लेने के बाद पुर्नवास को लेकर प्रति परिवार 20 लाख रुपए देने की मांग की, लेकिन इसके बाद इस योजना पर कोई काम नहीं हुआ और पुर्नवास की योजना ठंडे बस्ते में चली गई.

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मोदी राज में घर बनाने का वादा

2014 में केंद्र में सरकार बदली और नरेंद्र मोदी की सरकार अस्तित्व में आई. बीजेपी ने 2014 के घोषणा पत्र में उनकी सुरक्षित वापसी का वादा किया था. हालांकि इंडिया टुडे की ओर से दाखिल किए गए 2 आरटीआई के जरिए सरकार की ओर से मिले जवाब के अनुसार घाटी से कितने कश्मीरी पंडित निर्वासित हुए इसकी पूर्ण जानकारी नहीं है, साथ ही कितने कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई, इसकी भी जानकारी नहीं है.

सितंबर 2017 में तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने श्रीनगर में ऐलान किया कि कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए घाटी में 6 हजार घर बनवाएगी. लेकिन 3 जगहों पर बनने वाले आवासीय योजना पर क्षेत्रीय दलों और अलगाववादियों के विरोध का सामना करना पड़ा. केंद्र सरकार पिछले 10 सालों में कश्मीरी पंडितों के लिए 3 योजनाएं लेकर आई, जिसमें 2 तो नरेंद्र मोदी सरकार के दौर में ही आई. हालांकि अभी भी कश्मीरी पंडितों को उस दिन का इंतजार है जब उन्हें अपनी धरती नसीब होगी.

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