दुनिया भर के देशों के राजनयिक दिल्ली में देश के बड़े नेताओं से मिलते रहते है. विपक्ष के नेताओं से भी और सत्ता पक्ष के नेताओं से भी. लेकिन जिस तरह से हड़बड़ी में कांग्रेस ने राहुल और चीनी राजदूत की मुलाकात को खारिज़ किया, वो बहुत ही हैरतअंगेज़ था, क्योंकि, खुद चीन की एम्बेसी ने इस मुलाकात का खुलासा अपनी वेबसाइट पर किया था.
चीन के राजदूत ने राहुल गांधी से मुलाकात की, सोमवार सुबह इस खबर के आते ही कांग्रेस उपाध्यक्ष के दफ्तर ने पूरी ताकत से खबर को खारिज़ किया. कांग्रेस के मीडिया विभाग ने भी पत्रकारों से मुलाकात की बात का खंडन किया. दोपहर आते-आते कांग्रेस की सोशल मीडिया प्रभारी दिव्या ने इशारा किया कि, अगर मिले भी तो क्या गलत किया. फिर की शाम की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पार्टी ने स्वीकार कर लिया कि, राहुल चीन के राजदूत से 8 जुलाई को मिले थे. लेकिन सुबह क्यों इनकार किया था, कई बार पूछने पर भी इसका पार्टी प्रवक्ता मनीष तिवारी के पास कोई जवाब नहीं था.
दरअसल, कांग्रेस के रणनीतिकारों की राजनीतिक समझ का आलम ये था कि, खबर आते ही उन्हें लगा कि, भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव के माहौल में ये खबर राहुल गांधी को नकारात्मक रूप में पेश करेगी और मीडिया राहुल को मोदी के खिलाफ चीन से मिलने को मुद्दा बनाएगा. फिर क्या था, चीन की एम्बेसी से जांचने से पहले ही राहुल के दफ्तर और मीडिया विभाग के चेयरमैन रणदीप सुरजेवाला ने खबर का खंडन कर दिया. यही नहीं, बल्कि राहुल के दफ्तर ने तो इस खबर को 'मूर्खतापूर्ण और बकवास बता दिया.'
इससे पहले भी कांग्रेस उपाध्यक्ष के दफ्तर और मीडिया विभाग में तालमेल कमी दिखती रही है. इसीलिए हाल में मीडिया और पार्टी में अच्छे तालमेल के लिए 6 समन्वयक बनाये गए हैं. वैसे सच ये भी है कि राहुल गांधी के दफ्तर से कांग्रेस के मीडिया विभाग तक सूचनाओं का बहाव एकतरफा होता है. तो ये हो सकता है कि, मीडिया विभाग को उनकी मुलाकात का पता बाद में चला हो और तब तक शायद बहुत देर हो चुकी थी. लेकिन राहुल के दफ्तर का इनकार तो राजनैतिक समझ की कमी ही बताता है.
इतना सब होने के बाद शाम को राहुल ने मोदी की चीन के राष्ट्रपति के साथ झूला झूलते हुए फ़ोटो को टैग करके ट्वीट किया. इसमें राहुल ने लिखा कि, सरकार मेरे बारे में क्यों चिंतित है, वो बताए कि, उसके तीन मंत्री चीन की मेहमाननवाज़ी ले रहे हैं.
कुमार विक्रांत