संसद में गांधीजी पर स्वामी ने पूछे तीन सवाल...जवाब यहां पढ़िए

अंग्रेजी में द लास्ट फेज और हिंदी में पूर्णाहुति नाम से लिखी इस पुस्तक में गांधी जी के अंतिम वर्षों का पूरा लेखा-जोखा है. इस पुस्तक की भूमिका डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने लिखी है.

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स्वामी ने राज्यसभा में उठाया मुद्दा स्वामी ने राज्यसभा में उठाया मुद्दा

लव रघुवंशी / पीयूष बबेले

  • नई दिल्ली,
  • 26 जुलाई 2016,
  • अपडेटेड 9:38 AM IST

भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने मंगलवार को संसद में महात्मा गांधी की हत्या से जुड़े कुछ सवाल दागे. इन सवालों के बहाने वह कांग्रेस पर हमला करना चाहते थे, लेकिन ऐसा करते समय वह यह भी भूल गए कि राष्ट्रीय सवयं सेवक संघ को बचाने के चक्कर में वे पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे महान नेताओं की मानहानि कर रहे हैं. गांधीजी की हत्या से ठीक पहले जो उनके पास एक घंटे तक बैठकर गए थे वे कोई और नहीं सरदार पटेल और उनकी सुपुत्री थीं.

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बहरहाल महात्मा गांधी की हत्या की घटना का वर्णन अलग-अलग जगह पूरी प्रामाणिकता के साथ दर्ज है. इनमें से सबसे ज्यादा विश्वसनीय पुस्तक महात्मा गांधी के निजी सचिव प्यारेलाल ने लिखी है. अंग्रेजी में द लास्ट फेज और हिंदी में पूर्णाहुति नाम से लिखी इस पुस्तक में गांधी जी के अंतिम वर्षों का पूरा लेखा-जोखा है. इस पुस्तक की भूमिका डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने लिखी है.

गांधीजी को लगीं तीन गोलियां
स्वामी का पहला सवाल है कि गांधीजी को कितनी गोलियां लगीं? इसका पूरा वर्णन प्यारेलाल इस तरह देते हैं, ‘भीड़ ने हटकर गांधीजी के जाने और मंच तक पहुंचने के लिए रास्ता दे दिया. जब गांधी जी ने भीड़ के अभिवादन का उत्तर देने के लिए दोनों लड़कियों के कंधे पर से हाथ हटाए, उसी समय कोई आदमी दाहिनी ओर से भीड़ को चीरता हुआ आगे आया. मनु ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोकना चाहा, परंतु उसने मनु को जोर से झटक दिया और प्रणाम की मुद्रा में हाथ जोड़कर गांधी जी के सामने झुकते हुए अपने सात कारतूस वाले पिस्तौल से एक के बाद एक तीन गोलियां चलाईं. उसने वार इतने निकट से किया था कि चलाई हुई गोलियों में से एक बाद में गांधी जी के कपड़ों की तहों में पाई गई. पहली गोली पेट में दांयीं तरफ नाभि के ढाई इंच ऊपर और मध्य रेखा की दाहिनी ओर साढ़े तीन इंच पर लगी. दूसरी गोली मध्यरेखा से एक इंच दांयीं ओर सातवीं पसली के नीचे लगी और तीसरी गोली स्तनाग्र से एक इंच ऊपर और मध्य रेखा से चार इंच दूर वक्ष की बायीं ओर लगी. पहली और दूसरी गोलियां पीठ को पार करके बाहर निकल गईं. तीसरी फेफड़े में जाकर बैठ गई. पहली गोली लगने पर गांधी जी का जो पैर उठ रहा था. वह नीचे हो गया. दूसरी और तीसरी गोलियां चली तब तक गांधीजी पैरों पर खड़े ही थे. इसके बाद वे जमीन पर लुढक़ गए. उनके मुंह से निकले अंतिम शब्द थे: राम। राम।’

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अस्पताल ले जाने का सवाल नहीं था
दूसरा सवाल स्वामी ने उठाया कि महात्मा गांधी को गोली लगने के बाद अस्पताल क्यों नहीं ले जाया गया और उनका पोस्टमार्टम क्यों नहीं किया गया. वकील बुद्धि से उपजे यह सवाल अतिकलप्नाशीलता में बुनियादी तथ्यों से ध्यान भटकाने वाले लगते हैं. पहली बात तो यह कि देश के सर्वश्रेष्ठ डॉक्टर अंतिम उपवास के कुछ पहले से ही लगातार बापू के साथ बने रहते थे. और जब उन्ही डॉक्टरों ने बापू को मृत घोषित कर दिया तो उनके शव को अस्पताल ले जाने का सवाल कहां से उठता.

प्यारेलाल, जो खुद हत्या के समय बिरला भवन में मौजूद थे, ने इसका विवरण लिखा, ‘गांधीजी के साथियों में सबसे पहले बिड़ला भवन पहुंचने वाले सरदार पटेल थे. वे उनके पास बैठ गए, नाड़ी देखी और माना की अब भी धीमी-धीमी चल रही है. डॉ. भार्गव ने नाड़ी देखी, बाद में आंखों के कोयों की परीक्षा की और धीरे से बोले- मरे हुए दस मिनट हो गए हैं. डॉ. जीवराज मेहता डॉ. भार्गव के चेहरे पर टकटकी लगाए सामने ही खड़े थे. उन्होंने वेदना से सिर हिला दिया. आभा और मनु फूट-फूट कर रोने लगीं.’

गांधीजी नहीं चाहते थे कि हो शव की चीरफाड़
इसी सवाल के अगले हिस्से में स्वामी ने पूछा है कि बापू का पोस्टमार्टम क्यों नहीं कराया गया? शायद स्वामी को याद होगा कि अंतिम उपवास के दौरान जब बापू के गुर्दे तकरीबन काम करना बंद कर चुके थे, तब किसी तरह का इंजेक्शन लेना तो दूर बापू ने किसी भी तरह की दवाई लेने से मना कर दिया था. जो आदमी खुद को ईश्वर को इस तरह समर्पित कर चुका था कि दवा या सर्जरी की जगह भजन सुनना बेहतर समझता हो उसकी पार्थिव देह की चीरफाड़ की बात भी गृह मंत्री होने के नाते सरदार पटेल कैसे सोच सकते थे? वैसे खुद गांधीजी भी इस बारे में मरने से पहले निर्देश दे चुके थे कि मरने के बाद उनके शरीर से कोई छेड़छाड़ न की जाए.

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शरीर पूजा के विरोधी थे गांधीजी
प्यारेलाल जी आगे लिखते हैं, ‘एक सुझाव यह दिया गया कि गांधीजी के शरीर को मसाले में रखकर कम से कम कुछ दिन तक दर्शन के लिए रखा जाए. लेकिन मैं जानता था कि मृत्यु के बाद गांधीजी शरीर की पूजा करने के कट्टर विरोधी थे. इसलिए मैंने हस्तक्षेप करना अपना पवित्र कर्तव्य समझा. मैंने डॉ. जीवराज मेहता के कान में कहा, ‘लेकिन यह तो बापू की इच्छा के विरुद्ध होगा.’ डॉ. मेहता ने मुझसे कहा कि तब तो यह बात आपको इन लोगों को बतानी चाहिए. यह कहकर उन्होंने मुझे आगे धकेल दिया. मैंने लॉर्ड माउंटबेटन को संबोधन करके कहा, ‘मान्यवर, आपको यह बता देना मेरा कर्तव्य है कि शव मसाले में रखने का रिवाज गांधीजी को बहुत नापंसद था और उन्होंने मुझे खास तौर पर यह स्थायी आदेश दे रखा था कि उनका शरीर वहीं जला दिया जाए जहां उनकी मृत्यु हो.’ डॉ जीवराज मेहता और जयरामदास दौलतराम ने मेरा समर्थन किया.’

माउंटबेटन ने आगे कहा, ‘अगर गांधीजी पूरी आयु जीकर सम्मान के साथ साधारण मृत्यु पाते तो यह बात बिलकुल ठीक होती. परंतु विशेष परिस्थिति देखते हुए क्या आप नहीं मानते...? इतना कहकर वे रुक गए और हाथ फैलाकर प्रश्न का संकेत किया.’ मैंने उत्तर दिया, ‘गांधीजी ने मुझसे कहा था कि मरने पर भी मैं तुम्हें उलाहना दूंगा, यदि इस मामले में तुम अपने कर्तव्य से चूके.’ प्यारेलाल जी को तो गांधी जी की ताकीद याद रही और वे ऐन मौके पर अपना कर्तव्य करने से नहीं चूके. इस तरह शायद वे बापू के उलाहने से बच गए हों, लेकिन उन्हें क्या पता था कि आगे चलकर स्वामीजी उन्हें उलाहना देंगे.

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पटेल ने RSS पर सवाल खड़े किए
संसद में एक अन्य बात स्वामी ने यह उठाई कि नेहरूजी को लिखे पत्र में सरदार पटेल ने आरएसएस को गांधीजी की हत्या के दोष से मुक्त बताया था. लेकिन स्वामी ने यह नहीं बताया कि इसी पत्र में पटेल ने कहा था कि आरएसएस को निश्चित तौर पर अपने बाकी पापों के लिए कठघरे में खड़ा किया जाएगा. और स्वामी जानबूझकर इसके पहले और बाद लिखे गए पटेल के वे पत्र भूल गए जिसमें गांधी जी की हत्या के लिए आरएसएस को दोषी बताया गया. स्वामी पन्ने पलटें तो उन्हें 18 जुलाई 1948 को श्यामाप्रसाद मुखर्जी का लिखा सरदार का पत्र मिलेगा, जिसमें सरदार ने साफ तौर पर आरएसएस को ऐसे हालात पैदा करने का दोषी बताया जिससे बापू की हत्या हो सकी.

पटेल ने वीर सावरकर को गांधीजी की हत्या का षड्यंत्रकारी माना
स्वामी ने नेहरू जी को लिखे जिस पत्र का हवाला दिया उसके बाद मुखर्जी और नेहरू को लिखे अन्य पत्रों में पटेल ने बार-बार वीर सावरकर को गांधीजी की हत्या का षडयंत्रकारी माना और मुखर्जी और गोलवलकर से सावरकर से दूर रहने को कहा. लेकिन स्वामीजी उसी पार्टी के सदस्य हैं, जहां लोग आरएसएस से ट्रेंड होकर आते हैं और वीर सावरकर की पूजा करते हैं. यह स्वामी ही बताएं कि सावरकर के एक चेले गोडसे ने गांधी की हत्या की थी और सावरकर के वर्तमान चेले संघ को हत्याकांड से क्लीनचिट देने की दलील दे रहे हैं. न्यायशास्त्र में क्या अब ऐसे बदलाव कर दिए गए हैं, जहां आरोपी खुद ही जज बनकर खुद को बेगुनाह साबित कर देंगे.

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