नेहरू काल का वो कानून, जिसने धर्म का बंधन तोड़कर दिया शादी का हक

आजादी के बाद 1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक ऐसा कानून बनाया, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के नाम से जाना जाता है. इसके तहत अलग-अलग धर्म के मानने वालों को आपस में शादी करने की इजाजत दी गई.

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सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर

aajtak.in / राम कृष्ण

  • नई दिल्ली,
  • 09 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 11:07 AM IST

देश की आजादी के बाद 1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक ऐसा कानून बनाया, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के नाम से जाना जाता है. इसके तहत अलग-अलग धर्म के मानने वालों को आपस में शादी करने की इजाजत दी गई.

इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई लड़का हिंदू है, तो वह किसी दूसरे धर्म यानी मुस्लिम या इसाई लड़की से शादी कर सकता है. इसी तरह कोई हिंदू लड़की किसी दूसरे धर्म यानी मुस्लिम या इसाई लड़के से शादी कर सकती है. जब जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय संसद से इस कानून को पारित कराया तो उनको रूढ़िवादियों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था.

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स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होने वाली शादी पर भी महिला और पुरुष को उतना ही अधिकार मिलता है, जितना दूसरे मैरिज होने वाली शादी के बाद मिलता है. जहां तक उत्तराधिकार का सवाल है, तो हिंदू मैरिज एक्ट के तहत शादी करने पर हिंदू  उत्तराधिकार एक्ट के तहत उत्तराधिकार मिलता है जबकि मुस्लिम लॉ के तहत शादी करने पर शरीयत कानून के तहत उत्तराधिकार हासिल होता है.

यहां पर स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने पर भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत उत्तराधिकार मिलता है. स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत भारतीय नागरिक विदेशी से भी शादी कर सकते हैं और ऐसी शादी को पूरी तरह से कानूनी माना जाता है. स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने के लिए किसी पंडित, पादरी, मौलवी या ग्रंथी की जरूरत नहीं है.

स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कैसे होती है शादी

स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने के लिए ADM ऑफिस में अर्जी देनी होती है. उम्र का प्रमाण पत्र और इस बात का हलफनामा देना होता है कि दोनों बिना किसी दबाव के शादी कर रहे हैं.

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इसके बाद दोनों का फिजिकल वेरीफिकेशन होता है और फिर दोनों को 30 दिन बाद बुलाया जाता है. इस दौरान इसकी सूचना नोटिस बोर्ड में चस्पा दी जाती है. इस बीच अगर किसी को कोई आपत्ति होती है, तो वो आकर बता सकता है. वहीं, एक महीने बाद शादी करने वाले दोनों लड़की और लड़के को एडीएम के सामने पेश होना होता है.  इसके बाद मैरिज रजिस्टार गवाहों के सामने दोनों को शपथ दिलाते हैं और फिर शादी रजिस्टर कर लेते है. साथ ही मैरिज सर्टिफिकेट जारी कर देते हैं. इस शादी के लिए किसी मौलवी, पादरी पुरोहित की जरूरत नहीं होती है. इसमें सिर्फ तीन गवाह की जरूरत पड़ती है.

शादी के लिए आवश्यक शर्तें

स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 की धारा 4 के तहत शादी की शर्तों का उल्लेख किया गया है जो इस प्रकार है

1. लड़की की उम्र 18 साल और लड़की की उम्र 21 साल पूरी हो चुकी हो.

2. दोनों की मेंटल कंडीशन अच्छी हो ताकि वो कानूनी तौर पर अपनी शादी की सहमति दे सकें.

3. दोनों में से कोई दांपत्य जीवन में नहीं होना चाहिए यानी अगर उनकी पहले से शादी हो चुकी है तो उनका जीवित जीवनसाथी न हो या फिर तलाक हो गया हो.

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4. दोनों करीबी रिश्तेदार ना हो. इसका मतलब यह हुआ कि दोनों के बीच भाई, बहन, मौसी, मौसिया, बुआ, फूफा या चाचा, चाची जैसा कोई करीबी रिश्ता ना हो.

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