शीतकालीन सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक खत्म, ओवैसी और शिवसेना नेता भी हुए शामिल

संसद का शीतकालीन सत्र 18 नवंबर से शुरू हो रहा है. इस सत्र को सफल बनाने और अन्य अहम मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिहाज से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने विभिन्न दलों के नेताओं की सर्वदलीय बैठक की.

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सर्वदलीय बैठक में जुटे नेता सर्वदलीय बैठक में जुटे नेता

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 16 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 9:49 PM IST

संसद का शीतकालीन सत्र 18 नवंबर से शुरू हो रहा है. इस सत्र को सफल बनाने और अन्य अहम मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिहाज से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने विभिन्न दलों के नेताओं की सर्वदलीय बैठक की.

इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई अन्य पार्टियों के सांसद शामिल हुए. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी शामिल हुए. वहीं, एनडीए से हाल में नाता तोड़ चुकी शिवसेना की ओर से विनायक राउत बैठक में शामिल होने पहुंचे.

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इस बैठक में अर्जुन राम मेघवाल, टीआर बालू, सुदीप बंदोपाध्याय, दानिश अली, मिधुन रेड्डी, चिराग पासवान, अधीर रंजन चौधरी, प्रहलाद जोशी, लल्लन सिंह और अनुप्रिया पटेल भी शामिल हुए.

टीएमसी सांसद सुदीप बंदोपाध्याय ने बैठक से बाहर निकलकर कहा कि पश्चिम बंगाल में राज्यपाल एक समानांतर प्रशासन चला रहे हैं, जबकि उन्हें कार्य करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए. राज्यपाल रोज सरकार को बिना बताए अधिकारियों को एक जिले से दूसरे जिले में ट्रांसफर कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, 'सत्र में बेरोजगारी, आर्थिक स्थिति और उसके मुद्दों पर चर्चा की जानी चाहिए. इस चर्चा में विपक्ष को जगह दी जानी चाहिए. हमने स्पीकर को सदन चलाने का आश्वासन दिया.'

गौरतलब है कि 17वीं लोकसभा का पहला शीतकालीन सत्र 18 नवंबर से 13 दिसंबर तक है. बहरहाल, सरकार सोमवार से शुरू हो रहे सत्र में नागरिक संशोधन विधेयक को पास कराने की कोशिश करेगी जबकि विपक्ष इस विधेयक का विरोध कर रहा है कि सरकार धार्मिक आधार पर यह विधेयक ला रही है. विधेयक में पड़ोसी देशों से आने वाले गैर-मुस्लिम प्रवासियों को राष्ट्रीयता प्रदान करने का प्रावधान है.

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जानकारी के मुताबिक सरकार ने इस सत्र के कामकाज में इस विधेयक को सूचीबद्ध किया है. एनडीए सरकार ने पिछले कार्यकाल में भी इस विधेयक को पेश किया था लेकिन विपक्षी दलों के कड़े विरोध के कारण इसे पारित नहीं करा सकी.

विपक्षी दलों ने विधेयक को धार्मिक आधार पर भेदभावपूर्ण बताया था. पिछली लोकसभा के भंग होने के बाद विधेयक निष्प्रभावी हो गया था. विधेयक में धार्मिक उत्पीड़न के कारण बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आये हिंदुओं, जैनों, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों तथा पारसियों को भारतीयों को नागरिकता देने का प्रावधान है.

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