प्रशांत भूषण से SC ने पूछा किस आधार पर दर्ज हो रही हैं जनहित याचिका

चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने सीपीआईएल के वकील प्रशांत भूषण से पूछा कि सीपीआईएल का सिद्धांत क्या है? क्या आप सिर्फ जनहित याचिका ही दाखिल करते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि सीपीआईएल के पास शिकायत कैसे आती है.

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प्रियंका झा

  • नई दिल्ली,
  • 12 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 7:19 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने गैर सरकारी संस्था सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल)की भूमिका पर सवाल किए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिकाओं को दायर करने का आधार पूछा है.

चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने सीपीआईएल के वकील प्रशांत भूषण से पूछा कि सीपीआईएल का सिद्धांत क्या है? क्या आप सिर्फ जनहित याचिका ही दाखिल करते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि सीपीआईएल के पास शिकायत कैसे आती है. क्या उन शिकायतों की कोई जांच होती है?

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पहले सुप्रीम कोर्ट को संतुष्ट करना होगा
सुप्रीम कोर्ट ने सीपीआईएल के वकील प्रशांत भूषण को दो टूक कहा कि आपको पहले सुप्रीम कोर्ट को इस बात पर संतुष्ट करना होगा कि ये याचिकाएं बिजनेस में विरोधियों के कहने पर तो दाखिल नहीं की जा रही हैं. या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि याचिका दायर करने के लिए सीपीआईएल को पैसा दिया जा रहा हो.

याचिका दायर करने से पहले करें जांच
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं की सच्चाई पर जोर देते हुए कहा कि क्या एक कमरे में बैठकर यह तय कर लिया जाता है कि किस मामले में याचिका दायर करनी है. अभी तक सीपीआईएल के पास ऐसा कोई मकैनिज्म नहीं है जिससे यह जांच की जा सके कि याचिका सही मकसद से दायर की जा रही है या नहीं. इसलिए किसी भी याचिका को दायर करने से पहले एक जांच और रिसर्च विंग बनाना चाहिए.

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जनता के हित में होती है याचिकाएं
सीपीआईएल के वकील प्रशांत भूषण ने हालांकि यह साफ किया कि ये मामले जनहित से ही जुड़े हैं. ये ऐसे मामले हैं जिनमें जनता के पैसों का गलत इस्तेमाल होता है. भले ही इसमें व्यवसायिक हित भी जुड़ा हो, लेकिन याचिका आम जनता के लिए दायर की जाती है.

सुप्रीम कोर्ट ने ये सवाल 4जी मामले की सुनवाई के दौरान उठाए। सीपीआईएल ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर कर रिलायंस को दिए 4जी लाइसेंस को रद्द करने की मांग की है. याचिका मे कहा गया है कि रिलायंस को सिर्फ डाटा सर्विस के लिए लाइसेंस दिया गया था लेकिन बाद में 40 हजार करोड़ रुपये की फीस की बजाए 16 सौ करोड़ रुपये में ही वॉयस सर्विस का लाइसेंस दे दिया गया जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ.

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