साहित्य आजतक: सबसे हसीन दौर से गुजर रही है उर्दू - नासिरा शर्मा

साहित्य आजतक 2018 के दूसरे दिन हल्ला बोल के अहम सत्र 'उर्दू जिसे कहते हैं' में लेखक, कहानीकार,  नासिरा शर्मा और अब्दुल विस्मिल्ला ने शिरकत की.

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साहित्य आजतक में नासिरा शर्मा और अब्दुल विस्मिल्ला साहित्य आजतक में नासिरा शर्मा और अब्दुल विस्मिल्ला

अमित राय

  • नई दिल्ली,
  • 17 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 7:39 PM IST

उर्दू को धर्म के आधार पर नहीं बांटा जा सकता. आज उर्दू सबसे हसीन दौर से गुजर रही है. रचनाएं प्रकाशित हो रही हैं, जो मैगजीन कभी बंद हो चुकी थीं उनका भी प्रकाशन होने लगा है. अखबार निकल रहे हैं और अच्छा निकल रहे हैं. उर्दू अकादमी बेहतरीन काम कर रही है. यह कहना है साहित्य आजतक में पहुंचीं सुप्रसिद्ध लेखिका, उपन्यासकार नासिरा शर्मा का. उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि उर्दू अकादमी हर साल कुछ लेखकों का सम्मान करती है और यह खुशी की बात है कि इसमें 4-5 हिंदू होते हैं जो उर्दू में लिखते हैं. नासिरा ने कहा कि रेख्ता के लोग इसे आगे ले जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि नवलकिशोर जैसे संपादक कुरान छापते थे तो पूरा प्रेस गंगाजल से धोया जाता था.

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उर्दू के दौर पर अब्दुल विस्मिल्ला ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि उर्दू का सुनहरा दौर है. आज किताब छपवाने के लिए पब्लिशर पैसे मांग रहा है यह हिंदी और उर्दू दोनों के साथ हो रहा है क्योंकि पब्लिशर नाम बेचता है किताब नहीं. आज सवाल है कि उर्दू पढ़ने वाले कितने हैं. हम अपने बच्चों को हिंदी और उर्दू नहीं अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं.  

शम्सताहिर खान ने एक सवाल पूछा कि क्या उर्दू की किताबें कम लिखी जा रही हैं, क्या इसमें कमी आई है. इसके जवाब में नासिरा शर्मा ने कहा कि सबका कोई न कोई दुश्मन होता है, उर्दू के प्रोफेसर, पब्लिशर, संपादक उर्दू के दुश्मन हैं. अगर आप उर्दू में कोई रचना छपवाना चाहते हैं तो आपसे कहा जाएगा कि इसको आपके पैसे से छापा जाएगा और आप ही इसे बेचिएगा. मैगजीन के लिए कहानी भेजो तो कहा जाता है कि कुछ मदद भी भेजिएगा.

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उर्दू को धर्म से जोड़ने के सवाल पर साहित्य आजतक में पहुंचे अब्दुल विस्मिल्ला ने बताया कि यह बहुत ही गलत धारणा और दुष्प्रचार है. इसे अंग्रेजों ने फैलाया. एक दौर था जब दिल्ली के आसपास एक नई भाषा बन रही थी, बादशाह सेंट्रल एशिया से आए थे, बाबर उजबेकिस्तान से आया था. ये लोग तुर्की और फारसी दोनों जानते थे. लेकिन यहां के लोगों से उन्हें बात करनी थीं, फौज में भारतीय थे, नौकरानियां-नौकर भारतीय थे, बाजार में सभी आते थे. एक नई भाषा बन रही थी, उसका उस समय कोई नाम नहीं था. दिल्ली के आसपास का होने की वजह से पहले इसे देहलवी फिर हिंदवी कहा गया. खुद मीर नहीं जानते थे कि वो उर्दू के शायर थे, गालिब का भी यही हाल था. उर्दू का अर्थ है छावनी और अंग्रेजों ने कह दिया कि हिंदुओं की भाषा हिंदी और मुसलमानों की भाषा उर्दू है. जबकि सारे साहित्यकार उर्दू जानते थे, भाषा का धर्म से अलग संबंध है.

जनगणना वालों ने किया नुकसान

विस्मिल्ला ने कहा कि जनगणना करने वाले मुसलमानों की भाषा के कॉलम में लिख देते हैं कि इनकी भाषा उर्दू है हिंदू की हिंदी लेकिन ऐसा नहीं है. कई ऐसे मुसलमान हैं जिन्हें उर्दू बोलना लिखना, पढ़ना नहीं आता. उन्होंने कहा कि एक आवाज उठ रही है कि उर्दू शब्दों को निकाल दिया जाए लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं है.

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