मसूद को बचाने के पीछे है चीन की बड़ी चाल, PAK प्रेम दिखाकर साध रहा कई निशाने

मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित न होने देने के पीछे चीन के कई बड़े हित छुपे हुए हैं. चीन ये भी जानता है कि हाफिज सईद के बाद अगर भारत मसूद अजहर को भी संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित आतंकियों की सूची में शामिल करवाने में सफल हो गया तो वो पाकिस्तान को आतंकवाद प्रायोजित राष्ट्र घोषित कराने के काफी करीब पहुंच जाएगा.

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आतंकी मसूद अजहर को चीन ने एक बार फिर बचाया है. आतंकी मसूद अजहर को चीन ने एक बार फिर बचाया है.

राहुल विश्वकर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 14 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 9:29 AM IST

चीन ने आखिरकार अपना रंग दिखा दिया. लगातार चौथी बार चीन जैश सरगना मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित कराने में रोड़ा बन गया. 'ड्रैगन' का 'मसूद प्रेम' यूं ही नहीं है. दरअसल, इसके पीछे चीन के ऐसे कई हित हैं जो मसूद अजहर का बचाव करने से साधे जा रहे हैं.

कूटनीतिक संबंधों में जोखिम नहीं लेना चाहता चीन

कूटनीतिक मामलों के जानकार मानते हैं कि कोई भी राष्ट्र किसी दूसरे के सहयोग में तब तक खड़ा नहीं होता जब तक कि उसमें उसके राष्ट्रीय हित शामिल न हों. चीन जैसा देश तो बिना बड़ी वजह के ऐसा कभी नहीं कर सकता, क्योंकि वो अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीतिक संबंधों के मामले में कोई जोखिम नहीं लेता.

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...तो पाकिस्तान आतंकवाद प्रायोजित राष्ट्र घोषित हो जाएगा

ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित न होने देने के पीछे चीन के कई बड़े हित छुपे हुए हैं. चीन ये भी जानता है कि हाफिज सईद के बाद अगर भारत मसूद अजहर को भी संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित आतंकियों की सूची में शामिल करवाने में सफल हो गया तो वो पाकिस्तान को आतंकवाद प्रायोजित राष्ट्र घोषित कराने के काफी करीब पहुंच जाएगा. ऐसी स्थिति में अमेरिका समेत पश्चिमी देश पाकिस्तान पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगा देंगे, जिससे पाकिस्तान के लिए राजनीतिक और आर्थिक मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. साथ ही इनसे चीन पर भी खास असर पड़ेगा.

चार साल में चीन 50 अरब डॉलर लगा चुका है पाकिस्तान में

मसूद अजहर को बचाने के अलावा भी चीन हर तरह से इस इस कोशिश में लगा है कि पाकिस्तान अलग-थलग न पड़े. इतना ही नहीं चीन, रूस को भी पाकिस्तान के करीब लाने की कोशिश कर रहा है. पिछले चार सालों में चीन ने पाकिस्तान में बड़ा निवेश किया है. इसमें 50 अरब डॉलर से बनाया जा रहा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा यानी सीपीईसी भी शामिल है. बताते हैं कि चीन को डर है कि अगर उसने मसूद का समर्थन नहीं किया या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की पैरवी नहीं की तो उसका इतना बड़ा निवेश कहीं डूब न जाए.

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मसूद के विरोध का मतलब पाकिस्तान का सहयोग न मिलना

चीन को लगता है कि ऐसा न करने पर जैश-ए-मुहम्मद जैसे गुट उसके और पाकिस्तान सरकार के ही खिलाफ हो सकते हैं. जैश-ए-मोहम्मद को लेकर इतिहास भी कुछ ऐसा ही कहता है. 2002 में जब पाकिस्तान सरकार ने जैश को बैन किया था तो उसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति मुशर्रफ तक पर कई हमले हुए थे और देश में स्थिति संभालनी मुश्किल हो गई थी. ऐसे हालत में अगर चीन मसूद अजहर के खिलाफ होने वाली अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई का साथ देता है तो पाकिस्तान के लिए चीन का सहयोग लेना या उसे सहयोग देना काफी मुश्किल हो जाएगा.

मसूद पर बैन लग जाता तो अलग-थलग पड़ जाता पाकिस्तान

अगर चीन की हां के बाद मसूद अज़हर ग्लोबल आतंकी घोषित हो जाता, तो पाकिस्तान को मसूद के खिलाफ़ और उससे जुड़े संगठनों पर कड़ी कार्रवाई करनी पड़ती. मसूद अज़हर और उसके संगठन को पूरी तरह अलग-थलग करना पड़ता. मसूद अज़हर के टेरर कैंप और उसके मदरसों को बंद करना पाकिस्तान की मजबूरी बन जाता.

कौन है मसूद अजहर

पाकिस्तान पंजाब के बहावलपुर में एक हेडमास्टर के घर मसूद अजहर का जन्म 10 जुलाई 1968 को हुआ था. मसूद अपने ग्यारह भाई बहनों में तीसरे नंबर पर था. पढ़ने-लिखने में जहीन था. जब वो आठवीं जमात में पढ़ता था तभी उसके वालिद के एक दोस्त उसे कराची के जामिया उलूम उल इस्लामिया में पढ़ाने के लिए ले गए. वहां वो ऊंची तालीम हासिल करने की जगह आतंक की किताब पढ़ने लगा.

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1994 में हो गया था गिरफ्तार

मसूद अपनी ज़हरीली तकरीर से आतंक और नफरत बढ़ाने का मास्टर बन चुका है. मसूद कोई साधारण आतंकवादी नहीं है. पाकिस्तानी सरकार की शह, पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से मसूद अज़हर ने हिंदुस्तान में आतंक फैलाने की साज़िश शुरू की. 1994 में वो कश्मीर में सुरक्षाबलों के हत्थे चढ़ गया, लेकिन कांधार कांड के बाद वो फिर पाकिस्तान पहुंच गया और वहीं से भारत के खिलाफ साजिशें बनाने लगा.

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