जानिए क्या है जमात-ए-इस्लामी कश्मीर, जिस पर लगा 5 साल का बैन

केंद्र सरकार ने जमात-ए-इस्लामी पर 5 साल तक के लिए प्रतिबंध लगा दिया है. जानते क्या है आखिर जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) क्या है और इस संगठन की ओर से ऐसा क्या काम किया जाता है कि सरकार को इस पर बैन लगाना पड़ा.

Advertisement
प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो

मोहित पारीक

  • नई दिल्ली,
  • 02 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 11:53 AM IST

पुलवामा हमले के बाद केंद्र सरकार आतंकवाद पर नकेल कसने के लिए लगातार प्रयास कर रही है और एक के बाद एक अहम कदम उठाए जा रहे हैं. इसी क्रम में सरकार ने जम्मू-कश्मीर में काम कर रहे संगठन जमात-ए-इस्लामी पर 5 साल तक के लिए प्रतिबंध लगा दिया है. गृह मंत्रालय ने कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी के बाद यह फैसला लिया है. ऐसे में आपके लिए यह जानना दिलचस्प है कि आखिर जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) क्या है और इस संगठन की ओर से ऐसा क्या काम किया जाता है कि सरकार को इस पर बैन लगाना पड़ा...

Advertisement

जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) के बारे में बताने से पहले आपको बताते हैं कि आखिर इसकी नींव कहां पड़ी. बता दें कि आजादी से पहले साल 1941 में एक संगठन का गठन किया गया, जिसका नाम जमात-ए-इस्लामी था. जमात-ए-इस्लामी का गठन इस्लामी धर्मशास्त्री मौलाना अबुल अला मौदुदी ने किया था और यह इस्लाम की विचारधारा को लेकर काम करता था.

हालांकि आजादी के बाद यह कई अलग-अलग संगठनों में बंट गया, जिसमें जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान और जमात-ए-इस्लामी हिंद शामिल है. हालांकि जमात-ए-इस्लामी से प्रभावित होकर कई और संगठन भी बने, जिसमें जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश, कश्मीर, ब्रिटेन और अफगानिस्तान आदि प्रमुख हैं. जमात-ए-इस्लामी पार्टियां अन्य मुस्लिम समूहों के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संबंध बनाए रखती हैं.

क्या है जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर)

जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) की घाटी की राजनीति अहम भूमिका है और साल 1971 से इसने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया. पहले चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं करने के बाद आगे के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया और जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अहम जगह बनाई. हालांकि अब इसे जम्मू कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा और आतंकवादी मानसिकता के प्रसार के लिए प्रमुख जिम्मेदार संगठन माना जाता है.

Advertisement

माना जाता है कि यह आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का दाहिना हाथ है और हिजबुल मुजाहिदीन को जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर ने ही खड़ा किया है. हिज्बुल मुजाहिदीन को इस संगठन ने हर तरह की सहायता की. बता दें कि इससे पहले भी दो बार इस संगठन को बैन किया जा चुका है. पहली बार जम्मू कश्मीर सरकार ने इस संगठन को 1975 में 2 साल के लिए बैन किया था, जबकि दूसरी बार केंद्र सरकार ने 1990 में इसे बैन किया था. वो बैन दिसंबर 1993 तक जारी रहा था.

जमात-ए-इस्लामी हिंद से अलग है यह संगठन

यह जमात-ए-इस्लामी हिंद से बिल्कुल अलग संगठन है. इसका उस संगठन से कोई लेना देना नहीं है. साल 1953 में जमात-ए-इस्लामी ने अपना अलग संविधान भी बना लिया था. जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) घाटी में चुनाव लड़ता है, लेकिन जमात-ए-इस्लामी हिंद ऐसा संगठन है जो वेलफेयर के लिए काम करता है. जमात-ए-इस्लामी हिंद के देश में स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़े भी कई कार्य करता रहा है.

क्यों लगा बैन?

जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा एवं आतंकवादी मानसिकता के प्रसार के लिए प्रमुख जिम्मेदार संगठन है. गृह मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक जमात-ए-इस्लामी आतंकियों को ट्रेंड करना, उन्हें फंड करना, शरण देना, लॉजिस्टिक मुहैया करना आदि काम कर रहा था. इसे जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर का मिलिटेंट विंग माना जाता है. वहीं इसे आतंकवादी घटनाओं के लिए जिम्मेदार माना जाता है.

Advertisement

अपनी अलगाववादी विचारधारा और पाकिस्तानी एजेंडे के तहत कश्मीर घाटी में काम करता है. ये संगठन अलगाववादी, आतंकवादी तत्वों का वैचारिक समर्थन करता है. उनकी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में भी भरपूर मदद देता रहा है. यह भी जानकारी मिली है कि वो भारत से अलग धर्म पर आधारित एक स्वतंत्र इस्लामिक राज्य की स्थापना के लिए प्रयास कर रहा है. जमात-ए-इस्लामी की इन हरकतों की वजहों से ही उसपर बैन लगाने का कदम उठाया गया है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement