'ऑपरेशन विजय' की 20 साल की कहानी, करगिल के दो हीरो की जुबानी

करगिल युद्ध के बाद पाकिस्तान के 600 से ज्यादा सैनिक मारे गए और जबकि 1500 से अधिक घायल हुए. भारतीय सेना के 562 जवान शहीद हुए और 1363 घायल हुए. विश्व के इतिहास में कारगिल युद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे क्षेत्रों में लड़ी गई जंग की घटनाओं में शामिल है. आजतक ने करगिल के दो वीरों से बातचीत की.

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भारतीय सेना का 'ऑपरेशन विजय' (फाइल फोटो) भारतीय सेना का 'ऑपरेशन विजय' (फाइल फोटो)

मनजीत सहगल

  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 6:49 PM IST

करगिल युद्ध के दौरान 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन विजय' को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था. करगिल युद्ध के 20 साल बाद अब लाईन ऑफ कंट्रोल (LoC) पर भारतीय सेना की तैयारियां काफी बदल चुकी हैं. करगिल एक ऐसी लड़ाई ऐसी थी जिसमें भारत को पता ही नहीं चला कि दुश्मन कब सिर पर आ बैठा. लेकिन आज 20 साल बाद कहानी बिल्कुल अलग है.

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अब लाईन ऑफ कंट्रोल पर जगह-जगह पर सेना के कैंप मौजूद हैं. करगिल युद्ध के 20 साल बाद लाइन ऑफ कंट्रोल पर भारतीय सेना की तैयारियों का जायजा लेने के लिए आजतक ग्राउंड जीरो पहुंचा. वो जगह जहां बतरा टॉप, टाइगर हिल, तोलोलिंग टॉप पर करगिल युद्ध के दौरान की ऊंची बर्फीली चोटियों पर छुपकर बैठे दुश्मन को भारतीय सेना के वीर जवानों ने अपनी जान पर खेलकर मार भगाया था. साथ ही करगिल युद्ध लड़ने वाले दो वीरों से आजतक ने बातचीत की.

जान पर खेलकर करगिल जंग लड़े थे सूबेदार मेजर योगेन्द्र सिंह

सूबेदार मेजर योगेन्द्र सिंह करगिल जंग के ऐसे ही वीर हैं जिन्होंने बीस साल पहले टाइगर हिल पर अपनी जान पर खेलकर इसे दुश्मनों से आजाद कराया था. सूबेदार मेजर योगेन्द्र सिंह जो आज भी सेना में रहकर देश की सेवा कर रहे हैं. करगिल जंग में जंग लड़ने वाले 18 ग्रेनेडियर्स के सूबेदार मेजर योगेन्द्र सिंह का कहना है कि उन्होंने कई गोलियां खाने के बाद भी टाइगर हिल पर जीत दर्ज की थी.

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सूबेदार मेजर योगेन्द्र सिंह का कहना है कि टाइगर हिल की ऊंचाई 17,000 फीट से ज्यादा है. जिस समय करगिल जंग की शुरुआत हुई तो यह रेंज द्रास की सबसे ऊंची रेंज में से ही एक थी. बर्फ और ऊंचाई की आड़ में पाकिस्तानी आतंकियों ने अपने बंकर तैयार कर रखे थे जिससे छिपकर वह हमारे सैनिकों को निशाना बना रहे थे और उनकी लोकेशन का अंदाजा भी नहीं लग पा रहा था.

सूबेदार मेजर योगेन्द्र सिंह ने बताया कि करगिल जंग के दौरान शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा इन्हीं पहाड़ियों में शहीद हुए थे. अब इस चोटी पर शहीद कैप्टन बिक्रम बत्रा प्वांइट नाम दिया गया है. मस्कोह घाटी को कब्जा करने के मकसद से चोटी 4875 जीतनी अहम थी. विक्रम बतरा ने पाकिस्तानी सैनिकों ने लोहा लेते हुए इस पीक को खाली कराया मगर इस जंग में विक्रम बतरा शहीद हो गए. उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया गया.

करगिल युद्ध के दूसरे योद्धा ब्रिगेडियर कुशाल

करगिल युद्ध में तोलोलिंग के योद्धा ब्रिगेडियर कुशाल ठाकुर ने सरहद पर सेना की तैयारियों के बारे में आजतक को बताया, 'करगिल युद्ध के बाद पिछले 20 सालों में कई बार करगिल जाने पर मुझे इस बात का आभास हुआ कि हमारी सेना के जवानों और युवा अधिकारियों के जोश में कोई कमी नहीं है.  इसी जोश ने करगिल में जीत दिलाई थी.  

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आगे  ब्रिगेडियर कुशाल ठाकुर ने कहा, 'आज सरहद पर सेना ने रक्षा तैयारी कई गुना बढ़ाई है. पहली अहम बात करगिल युद्ध से सबक लेते हुए पिछले 20 सालों में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से लगने वाली लाइन ऑफ कंट्रोल पर अपनी तैयारियों को कई गुना बढ़ा दिया है.

ब्रिगेडियर कुशाल ने दूसरी अहम बात बताते हुए कहा कि करगिल युद्ध दौरान भारतीय सेना को सबसे ज्यादा नुक्सान पहाड़ की ऊंची छोटी पर बैठे दुश्मन के हमले से उठाना पड़ा था ऐसे में अब सेना ने ज्यादातर ऊंची चोटियों तक पहुंचने के लिए रास्ते और सड़क बना ली हैं. टाइगर हिल, तोलोलिंग जैसी ऊंची चोटियों पर सेना ने दर्जनों मजबूत पोस्ट कायम कर ली हैं.

करगिल की लड़ाई का गेम चेंजर

जानकारी के मुताबिक, करगिल की लड़ाई में बोफोर्स तोप एक ऐसा ब्रह्मास्त्र साबित हुआ जिसने गेम चेंजर का काम किया. अब हम आपको बोफोर्स की मारक क्षमता से रूबरू कराते हैं. बोफोर्स अब इन ऊंचे पहाड़ों पर सेना की मुख्य ताकत बन चुकी है. बोफोर्स की 40 किलोमीटर की मारक को देखते हुए दुश्मन इसके आसपास भी नहीं फटक सकता. 15 साल पहले बोफोर्स तोप को रात के वक्त दुश्मन से छुपाकर लाया गया था लेकिन आज ये तोप द्रास-करगिल की हर पहाड़ी से परिचित हो गयी है.

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इन सब के बीच द्रास में तोलोलिंग पहाड़ी के नीचे बने करगिल युद्ध स्मारक पर हर साल की तरह शहीदों को याद किया जाता है. युद्ध में शहीद 562 सैनिकों की याद में करगिल वार मेमोरियल में  562 लैम्प जलाये जाते है. सेना के बैंड शहीदों की याद में खास धुन भी बजाते हैं. भारत ने इस ऑपरेशन विजय का जिम्मा प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से करीब दो लाख सैनिकों को सौंपा था. जंग के मुख्य क्षेत्र कारगिल-द्रास सेक्टर में करीब तीस हजार सैनिक मौजूद थे.

करगिल युद्ध के बाद पाकिस्तान के 600 से ज्यादा सैनिक मारे गए और जबकि 1500 से अधिक घायल हुए. भारतीय सेना के 562 जवान शहीद हुए और 1363 अन्य घायल हुए. विश्व के इतिहास में करगिल युद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे क्षेत्रों में लड़ी गई जंग की घटनाओं में शामिल है. दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को मार भगाया था. आखिरकार 26 जुलाई को आखिरी चोटी पर भी जीत मिली और ये दिन करगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.

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