अनुच्छेद 370: जानें, जम्मू-कश्मीर की सबसे बड़ी मजबूती कैसे बनी उसकी कमजोरी?

जम्मू-कश्मीर की जो सबसे बड़ी मजबूती थी, वही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई. अगर जम्मू-कश्मीर को मिले विशेषाधिकारों से अलगाववाद को बढ़ावा मिलने के आरोप न लगते और इन्हें हटाने की मांग न उठती तो शायद राज्य बंटवारे की मोड़ पर न खड़ा होता.

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जम्मू-कश्मीर में तैनात सुरक्षा बल.(फाइल फोटो) जम्मू-कश्मीर में तैनात सुरक्षा बल.(फाइल फोटो)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 05 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 5:36 PM IST

जम्मू-कश्मीर की जो सबसे बड़ी मजबूती थी, वही सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई. लंबे समय से विशेषाधिकारों के दम पर देश के अन्य राज्यों से कहीं ज्यादा संवैधानिक रूप से ताकतवर रहे इस राज्य को अब इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी है. समय-समय पर चुनी गई राज्य सरकारों की ओर से घाटी की तुलना में लद्दाख की उपेक्षा ने केंद्र सरकार को राज्य के बंटवारे के लिए सोचने को मजबूर कर दिया.

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अनुच्छेत 370 और 35 ए के तहत जम्मू-कश्मीर को देश के अन्य राज्यों से कहीं ज्यादा विशेषाधिकार मिले हुए थे. संसद से पारित सिर्फ रक्षा, विदेश और संचार मामलों को छोड़कर अन्य कोई कानून सीधे नहीं लागू होते थे. इसी तरह अनुच्छेद 35 ए के तहत राज्य सरकार को स्थानीय निवासियों को तय करने का अधिकार दिया गया था. जिससे जम्मू-कश्मीर में कई पीढ़ियों से रहने वालों को भी स्थानीय नागरिक का दर्जा नहीं मिल पाता था.

धारा 370 और 35 ए के प्रावधानों से जम्मू-कश्मीर में गहराती अलगाववाद की समस्या ने आखिरकार मोदी सरकार को जहां धारा 370 को पंगु करने जैसा कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया, वहीं बेहतर शासन-प्रशासन के लिए दो केंद्र शासित प्रदेशों के गठन का भी फैसला लेने का निर्णय हुआ.

तो नहीं बंटता राज्य

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सूत्र बता रहे हैं कि अगर विशेषाधिकारों से जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद की समस्या नहीं गहराती, लद्दाख और जम्मू क्षेत्र के साथ राज्य सरकारें भेदभाव नहीं करतीं तो शायद ही मोदी सरकार बंटवारे का फैसला करती. जम्मू और लद्दाख की जनता लंबे समय से अलग राज्य बनाने की मांग उठाती रही है. राज्य की सियासत में घाटी के नेता हावी थे. उन पर आरोप लगते थे कि केंद्र से भेजी जाने वाली धनराशि का अधिक हिस्सा अपने यहां खर्च करते थे, जबकि जम्मू और लद्दाख को उपेक्षित कर दिया जाता था.

स्थानीय नेताओं की ओर से अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए को आधार बनाकर अगर यहां कई पीढ़ियों से गुजर-बसर करने वाले लोगों के साथ भेदभाव नहीं किया जाता. अनुच्छेद 35-A से जम्मू कश्मीर राज्य के लिए स्थायी नागरिकता के नियम और नागरिकों के अधिकार तय होते रहे. इसके तहत जम्मू कश्मीर सरकार उन लोगों को स्थाई निवासी मानती है जो 14 मई 1954 के पहले कश्मीर में बस गए थे.  ऐसे स्थाई निवासियों को ही राज्य में जमीन खरीदने, रोजगार हासिल करने और सरकारी योजनाओं में लाभ के लिए अधिकार मिले हैं. इससे 40 से 50 साल से कश्मीर में रहने वालों को नौकरी आदि सुविधाएं नहीं मिल पाती थी. यही नहीं दलित परिवारों को कश्मीर में सिर्फ सफाईकर्मी की नौकरी मिल सकती है.

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इसी तरह महिलाओं के मामले में भी अनुच्छेद 35 ए भेदभाव को जन्म देता है. मसलन अगर कोई महिला गैर कश्मीरी से शादी करती है तो फिर वह या उसके बच्चे घाटी की जायदाद के न तो मालिक बन सकते हैं और न ही यहां जमीन खरीद सकते हैं. मगर यदि कश्मीर का कोई पुरुष बाहर की लड़की से शादी करता है तो उस पर यह नियम नहीं लागू होते. अगर जम्मू-कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उसके अधिकार छीन जाते हैं, हालांकि पुरुषों के मामले में ये नियम अलग है

उदाहरण के लिए जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला राज्य से बाहर के व्यक्ति से विवाह करने के बाद संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दी गई थीं जबकि उमर अब्दुल्ला की शादी भी राज्य से बाहर की महिला से हुई, लेकिन उनके बच्चों को राज्य के सारे अधिकार हासिल हैं. याचिका में इस तरह के भेदभावपूर्ण नियम को खत्म करने और पूरे देश में एक जैसे कानून को लागू करने की मांग की गई थी. सूत्रों का कहना है कि अगर ये विशेषाधिकार जम्मू-कश्मीर में नहीं लागू होते तो न तो सरकार इसके प्रावधानों को हटाने जैसी व्यवस्था करती और न ही संतुलन के लिए अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाती.

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