मुंबई: स्वामीनाथन आयोग की क्या हैं सिफारिशें जिसके लिए सड़क पर उतरे किसान

किसान कर्ज माफी के साथ स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं. साथ ही आदिवासी किसान जमीन पर हक दिलाने की भी मांग कर रहे हैं.

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मुंबई कूच करते किसान मुंबई कूच करते किसान

वरुण शैलेश

  • नई दिल्ली,
  • 11 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 7:40 PM IST

महाराष्ट्र में किसान अपनी तमाम मांगों को लेकर सोमवार को राज्य विधानसभा का घेराव करेंगे. अखिल भारतीय किसान सभा के बैनर तले किसान नासिक से मुंबई के लिए 7 मार्च को निकले थे. बताया जा रहा है कि इस मार्च में 30 हजार से ज्यादा किसान हिस्सा ले रहे हैं.

क्यों आक्रोशित हैं किसान

मगर सवाल है कि ऐसा कौन सा संकट है जिसकी वजह से किसानों को सड़कों पर उतरना पड़ा. दरअसल कर्ज की समस्या के चलते महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या की खबरें आती रहती हैं. मार्च में शामिल किसानों की मांग है कि राज्य सरकार ने पिछले साल कर्ज माफी का जो वादा किया था, उसे पूरा नहीं किया.

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किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की भी मांग कर रहे हैं. वहीं आदिवासी किसान भूमि आवंटन संबंधी मामलों के निपटारे की भी मांग कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि इस मार्च में सबसे ज्यादा आदिवासी किसान ही हिस्सा ले रहे हैं. इस तरह देखा जाए तो किसानों की सरकार से कर्ज माफी से लेकर उचित समर्थन मूल्य और जमीन के मालिकाना हक जैसी कई और मांगें हैं.

किसानों का कहना है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए और गरीब, मझोले किसानों का ऋण माफ किया जाए. किसानों का आरोप है कि ऋण माफी को लेकर आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर बताया जा रहा है.

 केवल न्यूनतम समर्थन मूल्य काफी नहीं

किसानों की मांग है कि उन्हें स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक खेती में होने वाले खर्चे के साथ उसका 50 फीसदी और दाम समर्थन मूल्य के रूप में दिया जाना चाहिए. उचित समर्थन मूल्य मिलना चाहिए. केवल न्यूनतम समर्थन मूल्य दे देना काफी नहीं.

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इस किसान मार्च में हजारों की तादाद में आदिवासी भागीदारी कर रहे हैं. असल में, इसमें सबसे अधिक संख्या में आदिवासी ही शामिल हैं. आदिवासी किसानों का कहना है कि कई बार वन अधिकारी उनके खेत खोद देते हैं. वे जब चाहें तब ऐसा कर सकते हैं. आदिवासी अपनी भूमि पर अधिकार चाहते हैं. महाराष्ट्र के कई हिस्सों में किसान कीटनाशकों के प्रयोग से भी त्रस्त है. यह राहत पहुंचाने के बजाय उनकी फसलों को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं.

क्या हैं स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें

देश के किसी भी हिस्से में किसानों के विरोध प्रदर्शन के साथ स्वामीनाथन आयोग की चर्चा भी शुरू हो जाती है. दरअसल इस आयोग की रिपोर्ट आ गई लेकिन आज तक इसे लागू नहीं किया जा सका. कहा जाता है कि अगर स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू कर दिया जाए तो किसानों की तकदीर बदल जाएगी. अनाज की आपूर्ति को भरोसेमंद बनाने और किसानों की आर्थिक हालत को बेहतर करने के मकसद से 18 नवंबर 2004 को केंद्र सरकार ने एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया गया था. इस आयोग ने पांच रिपोर्ट सौंपी थी.  

स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट में भूमि सुधारों को बढ़ाने पर जोर दिया गया है. अतिरिक्त और बेकार जमीन को भूमिहीनों में बांटना, आदिवासी क्षेत्रों में पशु चराने के हक यकीनी बनाना और राष्ट्रीय भूमि उपयोग सलाह सेवा सुधारों के विशेष अंग हैं.

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आयोग की सिफारिशों में किसान आत्महत्या की समस्या के समाधान, राज्य स्तरीय किसान कमीशन बनाने, सेहत सुविधाएं बढ़ाने व वित्त-बीमा की स्थिति पुख्ता बनाने पर भी विशेष जोर दिया गया है. न्यूतम समर्थन मूल्य (MSP)औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा रखने की सिफारिश भी की गई है ताकि छोटे किसान भी मुकाबले में आएं, यही इसका मकसद है. किसानों की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य कुछेक नकदी फसलों तक सीमित न रहें, इस लक्ष्य से ग्रामीण ज्ञान केंद्र व बाजार का दखल स्कीम भी लांच करने की सिफारिश की गई है.

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