44 सालों में कम हो गई जानवरों की 60 फीसदी आबादी, रोजाना मारे जाते हैं 100 हाथी

इंसानी जरूरतों को पूरा करने के चक्कर में जंगल छोटे होते जा रहे हैं और इस कारण जंगली जानवरों की संख्या लगातार कम होती जा रही है. हर दिन 5,760 एकड़ यानी हर घंटे 240 एकड़ जंगल खत्म हो रहे हैं. 1970 से 2010 के बीच 40 सालों में 52 फीसदी जानवरों की संख्या में कमी आई है.

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खत्म होते जंगलों का सबसे बुरा असर जानवरों पर पड़ा है (सांकेतिक- IANS) खत्म होते जंगलों का सबसे बुरा असर जानवरों पर पड़ा है (सांकेतिक- IANS)

सुरेंद्र कुमार वर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 8:29 AM IST

धरती पर इंसानों की संख्या करीब 7.7 बिलियन है और जानवरों के लिहाज से देखा जाए तो 87 लाख जीव-जन्तुओं की प्रजाति मौजूद है. यदि इनकी संख्या का अनुमान लगाया जाए तो इंसानों की संख्या से कई हजार गुना ज्यादा इनकी संख्या हो जाएगी. क्योंकि दुनिया में अभी भी करीब 90 फीसदी जीव-जन्तुओं की पहचान और संख्या की गणना किया जाना बाकी है, लेकिन इंसानों का बेजुबानों पर कहर इस कदर है कि हर साल बड़ी संख्या में जानवर मार दिए जाते हैं.

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इंसानी जरूरतों को पूरा करने के चक्कर में जंगल छोटे होते जा रहे हैं और इस कारण जंगली जानवरों के लिए जंगल में लगातार कमी आती जा रही है. हर दिन 5,760 एकड़ यानि हर घंटे 240 एकड़ जंगल खत्म हो रहे हैं. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूफंड) के अनुसार 1970 से 2010 के बीच 40 सालों में 52 फीसदी जानवरों की संख्या में कमी आई है. जबकि इस दौरान धरती पर इंसानों की आबादी दोगुनी हो गई है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार, हर 3 घंटे में 30 हजार जीव-जन्तुओं की प्रजाति विलुप्त होती जा रही है.

'ट्रॉफी हंटिंग' के नाम मारे गए 12 लाख जानवर

महज ट्रॉफी हंटिंग के नाम पर दुनियाभर में अब तक 12 लाख जंगली जानवरों को मारा जा चुका है. औसतन हर साल 70 हजार जानवर मारे जाते हैं. वैश्विक स्तर पर शेर, हाथी, लेपर्ड, गैंडा (काले और सफेद दोनों ही) और केप बफैलो 'ट्रॉफी हंटिंग' के नाम पर सबसे ज्यादा मारे जाते हैं.

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कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया, मैक्सिको और जिम्बाब्वे समेत कई देश 'ट्रॉफी हंटिंग' के लिए बदनाम हैं. वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा ट्रॉफी हंटिंग दक्षिण अफ्रीका में ही होती है. अफ्रीका के कई देशों में 'ट्रॉफी हंटिंग' वैध है, लेकिन इसके लिए नियम कड़े हैं.

रोजाना 100 हाथियों का कत्ल

दुनिया में 4 फीसदी स्तनधारी जानवर जंगली जानवर हैं. वाइल्डलाइफ कनवरजेशन सोसाइटी के अनुसार हर दिन औसतन 100 हाथी मारे जाते हैं. हाथियों की मौत की वजह उनकी कीमती सींग, मीट और बॉडी पार्ट्स की बढ़ती मांग है.

वर्तमान समय में 4 लाख हाथी ही बचे हैं. 2018 में जितने हाथी जन्म लेते हैं उससे कहीं ज्यादा वो मारे जाते हैं. इन मौतों में 60 फीसदी मौत शिकारियों द्वारा की जाती है. जहां तक भारत की बात है तो 1987 से लेकर 2017 तक ढाई सौ से ज्यादा हाथी ट्रेन हादसों का शिकार हो गए.

घटते जंगल के कारण हाथी शहर में आने को बेबस हैं और इस कारण कई आम इंसान मारे जा रहे हैं, लेकिन इसके उलट हाथियों की संख्या में भी बड़ी गिरावट आई है. पिछले 1 दशक में 62 फीसदी हाथी खत्म हो गए.

हर दिन 3 गैंडों का शिकार

गैंडा की बात करें तो हर दिन औसतन 3 गैंडा शिकारियों द्वारा मारे जाते हैं. एक समय गैंडों की करीब दर्जनभर प्रजाति मौजूद थी, लेकिन आज की तारीख में महज 5 प्रजाति (एशिया में 3 और अफ्रीका में 2) रह गई है. दुनिया में कुल 29 हजार गैंडों (काले गैंडे 5 हजार से ज्यादा और सफेद गैंडे 18 हजार से ज्यादा) की आबादी का 80 फीसदी गैंडा दक्षिण अफ्रीका में रहते हैं. इसके अलावा भारत में एक सींग वाले गैंडा पाए जाते हैं और उनके संरक्षण को लेकर लगातार अभियान के कारण यहां पर 3500 से ज्यादा गैंडे हो गए हैं.

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विलुप्ति की कगार पर खड़े गैंडों का दक्षिण अफ्रीका में लगातार शिकार किया जाता है. 2017 में 1,028 गैंडा मारे गए. पिछले 3 सालों में इसमें गिरावट आई है. 2014 में 1,215 गैंडों का शिकार हुआ था.

90 फीसदी शेर खत्म

अफ्रीकी शेरों की आबादी में पिछले 2 दशकों में 42 फीसदी की कमी आई है. पैंथेरा डॉट ओआरजी के मुताबिक 100 साल पहले 2 लाख से ज्यादा शेर हुआ करते थे, लेकिन अब 90 फीसदी शेर लुप्त हो चुके हैं और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन नेचर (आईयूसीएन) के अनुसार अब उनकी संख्या महज 20 हजार से 39 हजार के बीच ही रह गई है. आईयूसीएन ने इस शानदार विलुप्त होते जानवर को रेड लिस्ट में शामिल किया है.

टाइगर्स की 97 फीसदी आबादी खत्म

पिछले 100 सालों में टाइगर्स की 97 फीसदी आबादी दुनिया से खत्म हो चुकी है. ब्रिटिश दौर में शिकार के प्रचलन के कारण लगातार शिकार के कारण 1947 में बंगाल टाइगर्स की आबादी 40 हजार से घटकर 3200 तक आ गई थी. हालांकि WWF के अनुसार संरक्षण के कई कार्यक्रम चलाने के बाद टाइगर्स की आबादी बढ़कर अब 3,890 तक हो गई है.

भारत में जंगली भैंसों की आबादी 3 हजार से 4 हजार के बीच है और यह दुनिया की कुल आबादी का 92 फीसदी है. जंगली भैंस भी खत्म होने की कगार पर हैं और इन्हें बचाने की मुहिम चलाई जा रही है.

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जंगली कुत्तों की संख्या में भी तेजी से गिरावट आई है. 100 साल पहले अफ्रीका के जंगलों में जहां कुत्तों के झुंड में औसतन 100 सदस्य होते थे अब घटकर 10 हो गई है. वहीं भारत में कई जगहों की फसल बर्बाद करने वाली नीलगाय की आबादी देश में 10 हजार है जबकि अमेरिकी राज्य टेक्सास में 15 हजार नीलगाय पाई जाती हैं.

रोजाना 15 करोड़ जानवर बने निवाला

इंसान न सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध इस्तेमाल कर उसे बर्बाद कर रहा है बल्कि जानवरों के साथ उसकी बर्बरता कम होने का नाम नहीं ले रही. हम रोजाना 15 करोड़ जानवरों को अपना निवाला बना रहे हैं.

वैज्ञानिकों की ओर से कुछ साल पहले किए गए अध्ययन के मुताबिक दुनियाभर में 87 लाख जीव-जन्तुओं की प्रजाति मौजूद है. माना जाता है कि इसमें 10 से 20 लाख जानवर शामिल हैं. इसी अध्ययन में यह बात सामने आई कि धरती पर मौजूद जीवों की प्रजातियों में 86 फीसदी ऐसी प्रजाति हैं जिनकी खोज और उनके बारे में जानकारी हासिल किया जाना है. इसी तरह 90 फीसदी समुद्री जन्तुओं के बारे में दुनिया को कोई जानकारी नहीं है.

मच्छर इंसानों के सबसे बड़े दुश्मन

दूसरी ओर, जीव-जन्तुओं की ओर से किए गए हमलों से इंसानों पर सबसे ज्यादा मौत मच्छर के काटने से होती है. सालभर में मच्छर के काटने से दुनियाभर में औसतन 7 लाख 25 हजार लोगों की मौत हो जाती है.

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मच्छरों के बाद सबसे ज्यादा इंसानी मौत सांप के काटने से होती है. सांप के काटने से हर साल औसतन 50 हजार इंसान मारे जाते हैं. जानवरों में कुत्ते सबसे ज्यादा हिंसक होते हैं और इनके कांटने से 25 हजार इंसानों की मौत हो जाती है. जबकि हाथियों और शेर के शिकार औसतन 100-100 लोग सालाना बनते हैं.

तो लगेंगे 50 लाख से 70 लाख साल

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इन्सेक्ट वर्ल्ड में सिर्फ चींटी की ही बात की जाए तो एक समय में धरती पर 10 हजार ट्रिलियन चींटी दुनियाभर में हैं. कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इन्सेक्ट्स की संख्या अकेले 10 क्विटिलियन (18 जीरो) है जबकि धरती पर मौजूद जानवरों की संख्या 20 क्विटिलियन (18 जीरो) है.

कुछ साल पहले डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और 59 वैज्ञानिकों की ओर से किए गए सर्वे के मुताबिक इंसानों ने 1970 से 2014 तक जानवरों की 60 फीसदी आबादी खत्म कर दी है. सबसे ज्यादा नुकसान दक्षिण और मध्य अमेरिका में दर्ज की गई क्योंकि वहां पर इस दौरान जीव-जन्तुओं की आबादी में 89 फीसदी की कमी आई. इंसानों ने अपनी बेपरवाह जिंदगी जीने के लिए जिस तरह से जीव-जन्तुओं को खासा नुकसान पहुंचाया और लाखों की प्रजाति हमेशा के लिए विलुप्त हो गई और लाखों पर संकट मंडरा भी रहा है. अगर इसे फिर से बहाल करने की कोशिश की जाए तो पुरानी जैसी प्राकृतिक दुनिया बनने में 50 से 70 लाख साल लग जाएंगे.

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