सूखे से जूझ रहे किसानों को राहत देने के लिए कृत्रिम बारिश कराएगी कर्नाटक सरकार

कर्नाटक इस साल भी भारी सूखे की चपेट में है और राज्य के 30 जिलों के 156 तालुकों को सूखाग्रस्त घोषित किया जा चुका है. इतना ही नहीं राज्य के 107 तहसील गहरे सूखे संकट से जूझ रहे हैं जबकि 49 तहसीलों में सूखे का असर थोड़ा कम है. कर्नाटक 2018-19 के खरीफ फसलों में भी सूखा का संकट झेल चुका है.

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कर्नाटक में सूखे से जूझ रहे किसान (फाइल फोटो) कर्नाटक में सूखे से जूझ रहे किसान (फाइल फोटो)

नागार्जुन

  • बेंगलुरू,
  • 16 मई 2019,
  • अपडेटेड 10:39 AM IST

कर्नाटक में सूखे की मार झेल रहे किसानों को राहत देने के लिए अब राज्य सरकार ने कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) कराने का फैसला किया है. इसके लिए कर्नाटक सरकार ने टेंडर भी जारी कर दिया है. कर्नाटक की कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार ने यह फैसला उस रिपोर्ट के आने के बाद लिया है जिसमें कहा गया है कि इस साल भी राज्य में मॉनसून में कम बारिश होगी. सरकार ने इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 88 करोड़ तय की है. यह ठेका दो सालों के लिए दिया जाएगा.

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बता दें कि कर्नाटक इस साल भी भारी सूखे की चपेट में है और राज्य के 30 जिलों के 156 तालुकों को सूखाग्रस्त घोषित किया जा चुका है. इतना ही नहीं राज्य के 107 तहसील गहरे सूखे संकट से जूझ रहे हैं जबकि 49 तहसीलों में सूखे का असर थोड़ा कम है. कर्नाटक 2018-19 के खरीफ फसलों में भी सूखा का संकट झेल चुका है.

कर्नाटक सरकार ने केंद्र से मांगी थी मदद

कर्नाटक में किसानों के सूखे की संकट को देखते हुए कुमारस्वामी की सरकार ने केंद्र सरकार से भी मदद मांगी है. मोदी सरकार को सौंपे एक ज्ञापन में कर्नाटक सरकार ने किसानों की मदद के लिए 2 हजार 64 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता मांगी है. राज्य सरकार की इस मांग पर केंद्र सरकार अभी विचार कर रही है.

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क्या होती है कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग)

कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) कराने के लिए सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ से पहले कृत्रिम बादल बनाए जाते हैं. इसके बाद जब सूरज की गर्मी से हवा गर्म होकर हल्की हो जाती है और ऊपर की तरफ उठने लगती है तो हवा का दबाव कम हो जाता है. यह हवा आसमान में एक ऊंचाई तक पहुंचने के बाद ठंडी हो जाती है जिसके बाद हवा में सघनता बढ़ जाती है. बूंदें इतनी बड़ी हो जाती हैं कि वो ज्यादा देर तक हवा में लटकी नहीं रह सकती जिसके बाद बारिश की बूंदों के रूप में नीचे गिरने लगती है. क्लाउड सीडिंग का पहला इस्तेमाल फरवरी 1947 में ऑस्ट्रेलिया में किया गया था.

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