दिल्ली ट्रैफिक पुलिस बताएगी पेट्रोल बचत के उपाय

दिल्ली ट्रैफिक पुलिस साउथ के डीसीपी ईश सिंघल ने कहा कि हर वर्किंग डे पर 3 से 4 जगहों पर स्विच ऑफ बिहेवियर को लागू करने में दिल्ली ट्रैफिक पुलिस सहयोग करेगी.

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100 चौराहों पर शुरू होगी मुहिम 100 चौराहों पर शुरू होगी मुहिम

मोनिका गुप्ता / राम किंकर सिंह

  • नई दिल्ली,
  • 20 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 12:04 AM IST

सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट ने भीकाजी कामा प्लेस स्टडी में पाया कि ट्रैफिक सिग्नल पर सीसीटीवी फीड और सर्वे से सिग्नल का काउंटडाउन कम करने की कवायद की जा रही है. सर्वे में बाइकर और ऑटो ड्राइवर से पूछा जा रहा है कि उन्हें किन-किन चौराहों पर ज्यादा गाड़ी रोकनी पड़ती है.

स्टडी से पता लगा कि कैंपेन से पहले करीब 20 फीसदी लोग इंजन बंद करते थे जो अब बढ़कर 52 फीसदी हो गया. यही वजह है कि Petroleum Conservation & Research Association (PCRA) और सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट ने मिलकर भीकाजी कामा प्लेस की इस स्टडी को 100 इंटरसेक्शन्स पर दोहराने की ठानी है.

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पिछले साल सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट ने भीकाजी कामा प्लेस चौराहे की स्टडी में पाया कि 20 सेकंड से कम रेड लाइट पर अगर आप इंजन बंद करते हैं तो फ्यूल की बचत नहीं होती है. अगर 20 सेकंड से ज्यादा की लाइट होने पर इंजन चालू रखने पर फ्यूल की खपत ज्यादा होती है.  

ऐसे में 20 सेकंड्स से ज्यादा की रेड लाइट है तो इंजन बंद करिए, जिससे खतरनाक गैस जैसे CO2, NOX, CO नहीं निकलेंगी और फ्यूल की खपत भी कम होगी. इसे ही स्विच ऑफ बेहवीयर कहा गया. पिछले साल की स्टडी में पता लगा कि दिल्ली के एक चौराहे पर प्रयोग से करीब 250 करोड़ की लागत का ईंधन खर्च होने बचाया गया.

CRRI डायरेक्टर सतीश चंद्रा ने कहा कि, 'ये विन- विन सिचुएशन है. पेट्रोल बचत तो है ही इकॉनमी भी मजबूत होगी. पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा. पेट्रोल प्राइस न कम हो तो भी अगर आप पेट्रोल डीजल बचाते हैं तो बड़ी बात है. योजना है कि अगले डेढ़ महीने में पूरी दिल्ली में 100 इंटरसेक्शन कवर किए जाएगे. इसकी शुरूआत गुरुवार को मूल चंद और सादिक नगर की रेड लाइट पर हुई.

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पीसीआरए की मुक्ति आडवानी ने बताया कि जहां गाड़ियां लंबे समय तक रुकती हैं, वहां काउंटडाउन टाइम को री डिज़ाइन करेंगे. इससे लाइट पर रुकना यानी डिले कम हो. डिले कम होगा तो फ्रस्ट्रेशन कम होगा. विवाद कम होंगे. पेट्रोल और डीजल के दामों पर सरकार का नियंत्रण नहीं दिखता. ऐसे में फ्यूल बचाना ही अपने वश में है.

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