ऑपरेशन से प्रसव यानी सिजेरियन डिलीवरी के बढ़ते चलन और निजी अस्पतालों द्वारा इसे आमदनी का जरिया बना लेने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट से इस बारे में दिशा-निर्देश तय करने की मांग की गई है.
सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत जनहित याचिका दाखिल कर कोर्ट से केंद्र और राज्य सरकारों को ऑपरेशन से डिलीवरी (सिजेरियन डिलीवरी) के बारे में नीति तय करने का निर्देश दिए जाने की गुहार लगाई गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर करते हुए 3 अगस्त को सुनवाई की तरीख तय कर दी है. ऑपरेशन से डिलीवरी के बारे में मीडिया में आए आंकड़ों का उल्लेख करते हुए याचिका में कहा गया है कि कुछ राज्यों में स्थिति बेहद चिंताजनक है.
तेलंगाना के शहरी क्षेत्रों के निजी अस्पतालों में हुई कुल डिलीवरी की 74.8 फीसद सिजेरियन है. इसी तरह केरल में 41 फीसद और तमिलनाडु में 58 फीसद प्रसव सिजेरियन डिलीवरी के जरिए हुए हैं. दिल्ली में ये दर 65 फीसद से ज्यादा है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी अस्पतालों में सामान्य प्रसव की दर काफी ज्यादा है यानी धन के लालच और हवस की ये बीमारी निजी अस्पतालों, नर्सिंग होम और महिला क्लीनिकों में ज़्यादा है. जबकि इस समस्या पर सरकारों ने भी अब तक कोई ध्यान नहीं दिया है. लिहाजा कोर्ट इस बाबत सख्त गाइडलाइन बनाए. अब 2 अगस्त को इसमें सरकार से भी कोर्ट जवाब तलब करेगा.
जावेद अख़्तर / संजय शर्मा