भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद तो जेल से बाहर आ गए हैं, लेकिन सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में जातिगत तनाव बना हुआ है. पिछले साल मई महीने में महाराणा प्रताप की याद में आयोजित एक जुलूस में दलितों के कथित तौर पर पथराव से एक ठाकुर युवक की मौत के बाद भीड़ ने दलितों की पिटाई की थी और कई लोगों के मकानों को जला दिया गया था.
5 मई 2017 को सहारनपुर से 25 किलोमीटर दूर शब्बीरपुर गांव में राजपूतों और दलितों के बीच हिंसा हुई थी. इस हिंसा में कथित तौर पर दलितों के 25 घर जला दिए गए थे और एक शख्स की मौत हो गई थी. इस हिंसा के विरोध में जब प्रदर्शन किया गया तो पुलिस ने 37 लोगों को जेल में डाल दिया और 300 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया.
इस पूरे मामले के बाद चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में भीम आर्मी ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया था. बाद में चंद्रशेखर आजाद को गिरफ्तार कर लिया गया था.
आत्मसम्मान से बड़ा कुछ नहीं
ऐसे ही एक 85 साल के बुजुर्ग दलित परमल सिंह की भी पिटाई की गई थी और उनके मकान को आग लगा दिया गया था. परिवार पहले गांव में ही ठाकुरों के यहां कामकाज कर अपनी जीविका चलाता था. हमले में घायल परमल का बेटा भी पहले ठाकुरों के खेत में मजदूरी करता था. इंडियन एक्सप्रेस में इस गांव की जमीनी हालत पर एक रिपोर्ट दी गई है. इस रिपोर्ट के अनुसार परमल सिंह ने कहा, 'अब उसे (बेटे को) काम के लिए गांव से बाहर जाना पड़ता है. हम ठाकुरों के साथ काम नहीं कर सकते. हम कम कमा रहे हैं, लेकिन आत्मसम्मान हमारे लिए महत्वपूर्ण है.'
सामाजिक ताना-बाना टूटा
शब्बीरपुर में आगजनी और हिंसा की घटनाओं ने ऐसा लगता है कि सामाजिक ताने-बाने को बिखेर दिया है, जबकि सभी समुदाय एक-दूसरे पर निर्भर हैं. ठाकुरों के यहां काम करने वाले दलितों की संख्या घटती जा रही है.
मई, 2017 में हुई हिंसा के बाद भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर का दलितों के एक नए नेता के रूप में उभार हुआ. सहारनपुर में फैली हिंसा में कथित भूमिका के लिए चंद्रशेखर को जेल में डाल दिया गया और करीब एक साल जेल में रहने के दौरान हाल में ही वह बाहर आए हैं. दलित जहां राजपूतों में नए तरह की आक्रामकता के लिए 'ठाकुर' मुख्यमंत्री को जिम्मेदार बताते हैं, वहीं ठाकुरों का मानना है कि भीम आर्मी के उभार के बाद दलित उन्हें उकसा रहे हैं.
गांव के एक राजपूत अवरेश पुंडीर कहते हैं, 'पिछले साल से अब तक गांव में कोई टकराव तो नहीं हुआ है, लेकिन दोनों समुदायों के बीच लगातार तनाव है. चंद्रशेखर के उभार के बाद दलित बेवजह हमें उकसा रहे हैं. हम बाइक या कार से जाते हैं तो वे बीच रास्ते में खड़े हो जाते हैं और ऐसा बहाना करते हैं कि उन्होंने हमारा हॉर्न नहीं सुना.' असल में मेन रोड पर जाने के लिए राजपूतों को दलितों की बस्ती से ही होकर जाना पड़ता है.
एक और राजपूत सुधीर पुंडीर कहते हैं कि दलितों के साथ मेलमिलाप का प्रशासन का पूरा प्रयास विफल रहा है. चुनाव नजदीक है इसलिए राजनीतिक विभाजन भी तेज हो गया है. गांव के ही एक दलित श्याम सिंह कहते हैं, 'असली अपराधी अंतत: जेल जाएंगे. यह 2019 में होगा और इसका समाधान निकलेगा.' ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि गांव में बाबा साहब अंबेडकर की मूर्ति लगाने की इजाजत न देने गांव में तनाव बढ़ा और इसके लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.
श्याम सिंह ने कहा, 'मोदी जी अम्बेडकर पार्कों में जाकर सफाई कर रहे हैं, लेकिन जो लोग अम्बेडकर की मूर्तियों को अपवित्र कर रहे हैं, उन्हें सजा मिलना सुनिश्चित नहीं कर रहे. उनकी सरकार हमारे अपने जमीन पर भी हमारे मसीहा की मूर्ति नहीं लगाने दे रही.'
दिनेश अग्रहरि