मार्कंडेय काटजू का दावा- ’अटल बिहारी वाजपेयी ने मुझे बचाया’

इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच के सामने मो. शरीफ सैफी बनाम उत्तर प्रदेश (रिट संख्या 43403- 1998) मुकदमा आया और बेंच की अध्यक्षता मैं कर रहा था. इस मुकदमें में याचिकाकर्ता कुछ मुसलमान थे और उनकी शिकायत थी कि उन्हें अपनी ही जमीन पर मस्जिद बनाने की इजाजत नहीं मिल रही थी.

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जस्टिस (रिटायर्ड) मार्कंडेय काटजू जस्टिस (रिटायर्ड) मार्कंडेय काटजू

राहुल मिश्र

  • नई दिल्ली,
  • 17 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 12:19 PM IST

मैं कभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से नहीं मिला. बस एक घटना बता रहा हूं जब वह मुझे बचाने के लिए सामने आए.

यह घटना तब की है जब मैं इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज था. उस वक्त दोनों केन्द्र और राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी. अटल जी प्रधानमंत्री और लौहपुरुण देश के उप-प्रधानमंत्री थे.

इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच के सामने मो. शरीफ सैफी बनाम उत्तर प्रदेश (रिट संख्या 43403- 1998) मुकदमा आया और बेंच की अध्यक्षता मैं कर रहा था. इस मुकदमें में याचिकाकर्ता कुछ मुसलमान थे और उनकी शिकायत थी कि उन्हें अपनी ही जमीन पर मस्जिद बनाने की इजाजत नहीं मिल रही थी.

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उत्तर प्रदेश में कई मुसलमानों की यह शिकायत थी और इसके चलते वह सड़क और आम जगहों पर जुम्मे की नमाज पढ़ने के लिए मजबूर थे. क्योंकि उन्हें मस्जिद निर्माण करने की मंजूरी सरकार से नहीं मिल रही थी.

हाईकोर्ट बेंच के सामने आए इस मुकदमें में सरकार का पक्ष था कि मस्जिद निर्माण करने के लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की मंजूरी नहीं ली गई थी.

हाईकोर्ट बेंच ने 28.1.1999 को फैसला सुनाया कि एक आजाद, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश में मुसलमानों को मस्जिद बनाने का पूरा अधिकार है. लिहाजा मुसलमानों को अपनी जमीन अथवा किसी दूसरे की जमीन जिसपर जमीन मालिक ने मंजूरी दी है पर मस्जिद निर्माण का अधिकार है. ऐसे निर्माण के लिए किसी को डीएम से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है और ना ही कानून में ऐसे किसी मंजूरी का प्रावधान है.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर उत्तर प्रदेश में हंगामा खड़ा हो गया. कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि मामले को दिल्ली में बैठे हुक्मरानों के पास उठाया जा रहा है. मुझे बताया गया कि इस फैसले से लौहपुरुष बेहद नाराज हुए और मेरा तबादला इलाहाबाद हाईकोर्ट से सिक्किम या किसी सुदूर इलाके में कराने का निर्देश जारी करने लगे. ऐसे वक्त में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दखल देते हुए कहा कि भले हाईकोर्ट इलाहाबाद के फैसले का विरोध किया जा सकता है लेकिन देश की स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली का सम्मान किया जाना जरूरी है.

इलाहाबाद में अटल जी का एक ज्योतिष था. इत्तेफाक से उनका उपनाम भी वाजपेयी था और मैं भी उनसे वाकिफ था. अटल जी ने उस ज्योतिष को फोन किया और मेरी प्रतिष्ठा की जानकारी ली. उस ज्योतिष में मेरे पक्ष में बातें कही और उसकी बातें अटल जी के दिमाग में सदा रही. इस घटना के बाद फिर मेरे तबादले की मुहिम वहीं खत्म हो गई.

नतीजा, मैं इलाहाबाद में ही रहा.

यह घटना उस ज्योतिष ने मुझे बताई, हालांकि कुछ वर्षों बाद उस ज्योतिष का निधन हो गया.

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