आंध्र प्रदेश में विधायक की हत्या: क्या फिर जिंदा हो रहा है नक्सलवाद?

टीडीपी नेताओं की हत्या के बाद नक्सलवाद का खतरा फिर सामने है. सवाल है कि जब बड़े-बड़े नक्सली नेता या तो मारे गए या दूसरे राज्यों में भाग गए, तो हाल की घटना संगठन के पुनः जिंदा होने की ओर इशारा करती है.

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किदारी सर्वेश्वर राव (फाइल फोटो) किदारी सर्वेश्वर राव (फाइल फोटो)

रविकांत सिंह

  • नई दिल्ली,
  • 24 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 1:53 PM IST

आंध्र प्रदेश के विशाखापटनम जिले में रविवार को नक्सलियों ने अराकू (अजनजा) विधानसभा सीट से विधायक किदारी सर्वेश्वर राव और पूर्व विधायक एस सोमा की गोली मार कर हत्या कर दी. नक्सलियों ने रविवार सुबह विशाखापटनम से 125 किलोमीटर दूर डुंब्रीगुडा मंडल के थुटांगी गांव में इस वारदात को अंजाम दिया. ये जगह ओडिशा की सीमा से लगती है. हाई प्रोफाइल इन दोनों हत्याओं के बाद यह प्रश्न खड़ा हुआ है कि क्या आंध्र प्रदेश में नक्सलवाद फिर जिंदा हो उठा है?

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गौरतलब है कि पिछले कई वर्षों से आंध्र प्रदेश नक्सलवाद की घटनाओं से बचा हुआ है लेकिन रविवार की घटना ने शासन-प्रशासन को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या आंध्र की धरती से नक्सवाद का समूल सफाया हो पाया है?

रेड्डी सरकार ने नक्सलवाद को कुचला

आंध्र में तत्कालीन राजशेखर रेड्डी की सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की थी. इस कार्रवाई से रेड्डी के नेतृत्व की सरकार ने नक्सली हिंसा कुचलने में कामयाब रही. बाद की सरकारों ने भी रेड्डी की रणनीति पर कड़ाई से अमल किया जिसके नतीजे सामने हैं.

रेड्डी सरकार ने नक्सलवाद के सफाए के लिए ग्रे हाउंड नामक आधुनिक हथियारों और ट्रेनिंग से लैस सुरक्षा बल बनाया था. इन सुरक्षा बलों ने नक्सलियों का ढूंढ-ढूंढ कर सफाया किया. नतीजा यह रहा कि केंद्र सरकार माओवाद प्रभावित राज्यों को सलाह देती देखी जा सकती है कि वे नक्सलियों से निपटने के लिए आंध्रप्रदेश का मॉडल अपनाएं.

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माओवादी संगठन का इतिहास

1980 में पीपुल्स वॉर ग्रुप नाम का माओवादी संगठन बना. उस साल माओवादी हिंसा की 38 घटनाएं सामने आईं जिनमें छह हत्याएं भी थीं. सन 1991 में माओवादी हिंसा की सबसे ज्यादा 953 घटनाएं दर्ज की गईं. इनमें 178 आम लोग और 49 पुलिसकर्मी मारे गए. तब आंध्र के 23 में से 21 जिले माओवादी हिंसा से ग्रस्त थे. वर्षवार मौतों का आंकड़ा देखें तो 1990 में 145, 1991 में 227, 1992 में 212 और 1993 में 143 मौतें दर्ज की गईं.

 चंद्रबाबू नायडू की सख्ती

राजशेखर रेड्डी की तरह चंद्रबाबू नायडू की सरकार भी माओवादियों के खिलाफ सख्ती से पेश आती रही. बौखलाए माओवादियों ने एक बार नायडू की हत्या करने की भी कोशिश की लेकिन नायडू ने सख्ती बरतने के अलावा बातचीत का रास्ता भी खोला. नतीजा यह रहा कि नक्सिलयों के खिलाफ एक तरफ कड़ाई तो दूसरी ओर मुख्यधारा की राजनीति में लाने की रणनीति नक्सली हमलों को कमतर करने में कामयाब रही.

ग्रेहाउंड अभियान और नक्सलवाद

गणपति, कोटेश्वर राव या सुदर्शन-ये ऐसे नाम हैं जिनकी नक्सली अभियानों में तूती बोलती थी. इन नक्सली नेताओं का नाता आंध्र प्रदेश से ही था लेकिन ग्रेहाउंड सुरक्षा बलों ने इन नेताओं का सफाया कर दिया. इन बलों की कार्रवाई में ज्यादातर नक्सली या तो मारे गए या वे आंध्र छोड़कर बंगाल, बिहार और छत्तीसगढ़ चले गए. हालांकि इन राज्यों से इनकी गतिविधियां आज भी जारी हैं.

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