मॉब लिंचिंग से परेशान पशुपालक, नहीं मिल रहे मवेशियों के खरीदार

राजस्थान में  बढ़ रही मॉब लिंचिंग  की घटनाएं पशुपालकों के लिए परेशानी का सबब बन गई है. जिन लोगों की रोजी रोटी किसानी के साथ साथ पशु व्यापार पर टिकी थी, वे पशुबाजार में ग्राहकों की बाट जोह रहे हैं.

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पशुपालक किसान पशुपालक किसान

विवेक पाठक / शरत कुमार

  • जयपुर,
  • 21 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 4:10 PM IST

राजस्थान में मॉब लिंचिंग की घटनाओं की वजह से पशुपालन में लगे किसानों के लिए रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है. व्यापारी गाय खरीद नहीं रहे हैं और जो किसान खुद जान जोखिम में डालकर पशु बाजार में गायों को लेकर आ रहे हैं वो खरीदार नहीं मिलने से कई दिनों से गाय लेकर बाजार में बैठे हैं. लिहाजा गोरक्षकों और पुलिस से परेशान किसान गाय पालना ही बंद कर रहे है.

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जयपुर के पास रामगढ़ में लगने वाला पशु हटवाड़ा जहां किसान और व्यापारी अपनी गायों की खरीद फरोख्त के लिए रोज आते हैं लेकिन जबसे मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ी हैं, पशु बाजार की रौनक गायब है. जो किसान मजबूर हैं वही अपना जानवर बेचने के लिए आते हैं और जिन व्यापारियों का रोजी रोटी पशु व्यापार से चलता है, वही जान जोखिम में डालकर पशु बाजार में आ रहे हैं.

भरतपुर के पास के प्रेम यादव करीब 75 साल के किसान है उनके दो बेटे हैं. खेती के साथ-साथ जानवर पालते हैं. पशुओं की खरीद बिक्री से इनका घर चलता है लेकिन जबसे मॉब लिंचिंग घटनाएं बढ़ी हैं, गोरक्षकों के अलावा यह पुलिस से भी परेशान हैं. कहते हैं कि हर जगह गाड़ी रोक रोक कर पहले तो बिना पूछे ही पीटना शुरू करते हैं और फिर हजार-हजार रुपए ले लेते हैं. उम्र का भी लिहाज नहीं करते. उनको दिखाते हैं कि हमारी गाय दूध देने वाली है लेकिन उनको कोई फर्क नहीं पड़ता, घरवालों को क्या खिलाएंगे समझ में नहीं आता है.

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मॉब लिंचिंग की घटनाओं से अकेले प्रेम यादव के धंधे पर असर नहीं पड़ा है बल्की बहुत सारे किसान हैं जो चोरी चुपके जान जोखिम में डालकर अपनी गायों को पशु बाजार में लेकर आ रहे हैं. इनका कहना है कि अब तो पशुओं की खरीद-बिक्री का धंधा ही लोगों ने छोड़ दिया है जिनके पास कमाई का दूसरा जरिया नहीं है, वह कहां जाएं इसलिए मजबूरन गायों को लेकर पशु बाजार में आना पड़ता है.

इनके साथ साथ गायों को लाने ले जाने वाले ट्रांसपोर्टर अभी हाईवे पर लूटपाट और मारपीट की घटनाओं से परेशान है. पिछले 10 सालों से गायों के ट्रांसपोर्टेशन के धंधे में लगे राकेश बताते हैं कि अब धंधा पहले की तरह नहीं रहा, बहुत कम पशु आते हैं और इतना ज्यादा रिस्क है कि हम जान जोखिम में डालकर भी नहीं जाते.

जयपुर के पशु हटवाड़ा आंकड़ों पर गौर करें तो एक सप्ताह में 6 से 7 हजार गायें यहां बिकती थी जिसकी संख्या घटकर 2 से 3 हजार हो गई है. पहले गाय खरीदने के लिए गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश से लोग आया करते थे. लेकिन अब बाहरी व्यापारियों और खरीदारों के नहीं आने से किसानों को सस्ते दाम पर गाय बेचनी पड़ती है.

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