'सुभाष बाबू के साथ मेजोरिटी थी, वे झगड़ा कर सकते थे', RSS चीफ ने सुनाई नेताजी और गांधीजी की कहानी

सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए डॉ मोहन भागवत ने कहा कि सुभाष बाबू ने इतना कड़ा संघर्ष अंग्रेजों के साथ किया तो सोचिए उनके पास कितना पराक्रम होगा. परंतु एक भी झगड़ा अपने लोगों के साथ नहीं किया.

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RSS प्रमुख मोहन भागवत (फोटो- पीटीआई) RSS प्रमुख मोहन भागवत (फोटो- पीटीआई)

हिमांशु मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 23 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 6:42 PM IST
  • इतिहास से वर्तमान की सबक दे गए मोहन भागवत
  • देश मना रहा है सुभाष बाबू की जयंती
  • मोहन भागवत ने बताई कांग्रेस अधिवेशन की कहानी

नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती पर आज कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें नमन कर रहा है. संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत ने भी रविवार को नेताजी को श्रद्धांजलि दी और स्वतंत्रता की लड़ाई में सुभाष चंद्र बोस के योगदान को याद किया. RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि जंग ए आजादी के दौरान सुभाष बाबू अंग्रेजों से तो लड़ ही रहे थे, पूरे देश के लोगों को भी साथ जोड़ रहे थे. उन्होंने कहा कि सुभाष बाबू ने कभी भी अपने लोगों के साथ एक भी झगड़ा नहीं किया. 

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मोहन भागवत ने कहा कि सुभाषचंद्र बोस कांग्रेस के चयनित अध्यक्ष थे...लेकिन इस बात पर महात्मा गांधी के साथ उनका विवाद था. उन्होंने राष्ट्रहित को ध्यान रखते हुए अपने पद को छोड़ दिया. 

नेताजी ने अपने लोगों से झगड़ा नहीं किया

मणिपुर की राजधानी इंफाल में सुभाषचंद्र बोस को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने कहा कि नेताजी की प्रेरणा आध्यात्मिक प्रेरणा थी. ऐसी आध्यात्मिक प्रेरणा की धारणा करके सम्पूर्ण भारत, जो अपनी मातृभूमि है, उसके लिए उन्होंने सर्वस्व बलिदान किया. राष्ट्रीय एकता की चर्चा करते हुए मोहन भागवत ने कहा, "सुभाष बाबू ने इतना कड़ा संघर्ष अंग्रेजों के साथ किया तो सोचिए उनके पास कितना पराक्रम होगा. परंतु एक भी झगड़ा अपने लोगों के साथ नहीं किया. देशभक्ति क्या होती है? पूरे देश के लिए काम करना, अपने देश के लोगों से मतभेद होने के बावजूद झगड़ा नहीं करना." 

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मेजोरिटी सुभाष बाबू के साथ थी...

डॉ मोहन भागवत ने आगे कहा, "कांग्रेस के वे इलेक्टेड प्रेसिडेंट हुए थे, कुछ कारण होगा...पता नहीं क्या है...गांधीजी की इच्छा नहीं थी...और मेजोरिटी सुभाष बाबू के साथ थी. वे झगड़ा कर सकते थे, उन्होंने नहीं किया. वे विदड्रा (वापस) हो गए...क्योंकि विदेशी सत्ता के खिलाफ लड़ना है. देश को एक होना चाहिए. तेरा-मेरा ऐसे छोटे स्वार्थ को भूलना जरूरी है."
 
1939 के कांग्रेस अधिवेशन की कहानी

बता दें कि देश की आजादी के पहले लगभग हर साल कांग्रेस का अधिवेशन होता था और हर साल नया अध्यक्ष चुना जाता था. 1938 में सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे. एमपी के जबलपुर के तिलवारा घाट के पास स्थित त्रिपुरी में वर्ष 1939 में कांग्रेस का 52वां अधिवेशन हुआ था. यहां कांग्रेस के नए अध्यक्ष का चुनाव होना था. 

इस चुनाव में पट्टाभि सीतारमैया गांधीजी की ओर से कांग्रेस के पसंदीदा उम्मीदवार थे. जबकि सुभाषचंद्र बोस एक बार फिर कांग्रेस अध्यक्ष बनना चाहते थे. दोनों नामों के बीच चुनाव हुआ. सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी के प्रतिनिधि पट्टाभि सीतारमैया को हरा दिया और एक बार फिर से कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए. लेकिन नेताजी की इस जीत के बाद महात्मा गांधी काफी दुखी हो गए. उन्होंने पट्टाभि सीतारमैया की हार को अपनी हार बताया.

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 महात्मा गांधी को आहत देख सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. माना जाता है कि सुभाष बाबू की जीत के बाद भी कांग्रेस में हालात ऐसे बने थे कि नेता जी अपनी कार्यसमिति तक नहीं बना पाए. इसके बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. इसी साल नेताजी ने अपनी पार्टी ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन भी किया था. 

ऐसे व्यक्ति की जरूरत हमेशा रहती है

इंफाल में डॉ मोहन भागवत ने कहा कि सुभाष बाबू में पूरे देश को एक करने की शक्ति थी क्योंकि वे पूरे भारत को अपना देश मानते थे. देशभक्ति और अपने देश की एकता की स्पष्ट कल्पना उन्होंने की थी. इसके लिए उन्होंने सबकुछ दे दिया. अपने लिए कुछ नहीं, देश के लिए सबकुछ. मोहन भागवत ने कहा कि देश को बड़ा बनाने में ऐसे व्यक्ति की जरूरत हमेशा रहती है. 

 

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