राज्यों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में जातियों को शामिल का अधिकार देने वाला संविधान संशोधन बिल संसद के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से पास हो गया है. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश अपनी जरूरतों के हिसाब से ओबीसी की लिस्ट तैयार कर सकेंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021 का दोनों सदनों में पारित होना हमारे राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण क्षण है. यह विधेयक सामाजिक सशक्तीकरण को आगे बढ़ाता है. यह हाशिए पर पड़े वर्गों को सम्मान, अवसर और न्याय सुनिश्चित करने के लिए हमारी सरकार की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है.
हरियाणा-पंजाब में जाट, महाराष्ट्र में मराठा और गुजरात में पटेल जैसी जातियां आरक्षण के लिए खुद को ओबीसी में शामिल होने की मांग उठा सकती हैं, क्योंकि ये जातियां लंबे समय से आरक्षण की मांग करती रही हैं. हालांकि, आरक्षण की लिमिट को 50 फीसदी से ज्यादा नहीं बढ़ाया गया है. ऐसे में अगर राज्य सरकारें अपने सूबे में किसी नई जाति को पिछड़ा वर्ग का दर्जा देती हैं तो ओबीसी में पहले से शामिल जातियां इसके विरोध में खड़ी हो सकती हैं.
बता दें कि मराठा आरक्षण मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 5 मई को एक आदेश दिया था. इस आदेश में कहा गया कि राज्यों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों को नौकरी और एडमिशन में आरक्षण देने का अधिकार नहीं है. इसके लिए जजों ने संविधान के 102वें संशोधन का हवाला दिया. इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठों को ओबीसी में शामिल कर आरक्षण देने के फैसले पर भी रोक लगा दी थी.
SC के फैसले के बाद हुआ था विवाद
सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद विवाद खड़ा हो गया था, क्योंकि मौजूदा समय में ओबीसी की केंद्र और राज्यों की सूची अलग-अलग है. ऐसे में मोदी सरकार ने संसद का सहारा लिया और संविधान के आर्टिकल 342ए, आर्टिकल 338बी और 366 में संशोधन किए गए हैं. राज्य सरकारें अपने राज्य के हिसाब से अलग-अलग जातियों को ओबीसी कोटे में डाल सकेंगी. इसी के साथ मराठा और जाट आरक्षण की मांग भी उठने लगी है.
जेएनयू में राजनीतिक अध्ययन केंद्र के एसोसिएट प्रोफेसर हरीश वानखेड़े कहते हैं कि हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल, कर्नाटक में लिंगायत समुदाय लंबे समय से आरक्षण की मांग करता रहा है. ये समुदाय अपने-अपने राज्यों में बड़ी संख्या में हैं, जिसके चलते राजनीतिक रूप से भी निर्णायक भूमिका में हैं. ऐसे में अब यह समुदाय खुद को ओबीसी में शामिल कराने की मांग को लेकर राजनीतिक दबाव राज्य सरकारों पर बना सकते हैं और राज्य सरकार अपने सियासी हित के लिए उनकी मांग को पूरा कर सकती है.
वह कहते हैं कि राजनीतिक पार्टियां इन जातियों को साधने की तरह-तरह की कोशिश करती रहती हैं और आरक्षण भी उसमें से एक है. ऐसे में ओबीसी की कैटेगरी में शामिल दूसरी जातियों के अधिकारों का हनन हो सकता है, क्योंकि ये जातियां उनकी तुलना में सामाजिक और आर्थिक रूप से ज्यादा मजबूत हैं. ऐसे में वो आरक्षण का लाभ भी दूसरी जातियों की तुलना में ज्यादा उठाएंगी.ये एक तरह से बड़ा सियासी संकट बन सकता है.
'राज्यों के पास अब नहीं होगा बहाना'
अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष चौधरी यशपाल मलिक ने aajtak.in से बातचीत करते हुए कहा कि जाट समाज पहले से ही हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में ओबीसी कैटेगरी में शामिल होने की मांग करता रहा है. केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद अब राज्य सरकारों के पास किसी तरह का कोई बहाना नहीं होगा, क्योंकि उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में ओबीसी का दर्जा मिला हुआ है. ऐसे में हरियाणा सहित बाकी पांच राज्य हैं, वहां पर भी जाट समुदाय को ओबीसी में शामिल किया जाए ताकि हमें भी आरक्षण मिल सके.
गुजरात में पाटीदार समुदाय के आरक्षण की मांग उठाने वाले हार्दिक पटेल ने ओबीसी बिल के संसद से पास होने का स्वागत करते हुए कहा कि ओबीसी में संशोधन करने का अधिकार राज्य सरकार को दिया गया हैं. उन्होंने गुजरात सरकार से विनती करते हुए कहा कि जनरल में आ रही विभिन्न जातियों का ओबीसी मापदंड के आधार पर सर्वे कराए जाएं ताकि उन समाज की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर ओबीसी में शामिल करने का ऐतिहासिक काम हो सके.
ये बोले हार्दिक पटेल
हार्दिक पटेल ने भले ही अपने ट्वीट में पाटीदार समाज को ओबीसी में शामिल करने का नाम नहीं लिया है, लेकिन उनका इशारा पटेल समुदाय को लेकर ही है. गुजरात में लंबे समय से पाटीदार समाज खुद को ओबीसी में शामिल कराने के लिए आंदोलन करता रहा है. गुजरात में पटेल समाज को ओबीसी में शामिल करने का विरोध ओबीसी में शामिल ठाकोर जैसी जातियां करती रही हैं. ठाकोर सेना ने एक समय खुलकर पटेल आरक्षण का विरोध किया था.
ठाकोर समुदाय से आने वाले बीजेपी नेता अल्पेश ठाकोर ने केंद्र सरकार के द्वारा राज्यों को ओबीसी कैटेगरी बनाने का अधिकार दिए जाने का स्वागत किया. साथ ही उन्होंने कहा कि अब राज्य सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वो ऐसा कोई कदम न उठाए जिससे ओबीसी में पहले से शामिल जातियों का कोई नुकसान हो. राज्य सरकार सभी जातियों का सर्वे कराकर सामाजिक और आर्थिक स्थिति का पता कर सकती है. ऐसे में अगर वाकई कोई भी जाति सामाजिक रूप से पिछड़ी है तो उसे ओबीसी का दर्ज दिया जाए, लेकिन बिना सर्वे और आकलन किए बगैर ऐसा कदम न उठाया जाए, जिससे दूसरी जातियों के अधिकार का हनन हो सके.
क्या बोले एक्सपर्ट
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लक्ष्मण यादव कहते हैं कि केंद्र सरकार ने ओबीसी लिस्ट बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को तो दे दिया है, लेकिन आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से ज्यादा नहीं बढ़ाया गया है. ओबीसी को अभी 27 फीसदी आरक्षण मिल रहा है और कई राज्य हैं जहां पर 27 फीसदी भी आरक्षण नहीं है जबकि ओबीसी जातियों की आबादी 50 फीसदी से कहीं ज्यादा है.
ओबीसी में शामिल जातियों को पहले से ही उनकी आबादी के लिहाज से आरक्षण नहीं मिल रहा है. ऐसे में राज्य सरकारें अगर अन्य किसी जाति को ओबीसी में शामिल करती हैं तो आरक्षण की सीमा भी बढ़ाई जानी चाहिए. ऐसा नहीं होता है तो ओबीसी में शामिल दूसरी जातियां विरोध में खड़ी होंगी. केंद्र सरकार ने इसी वजह से राज्यों के पाले में इसे डाल दिया है.
दरअसल, इंदिरा साहनी केस के चलते 50 फीसदी की सीमा के बाहर जाकर आरक्षण दिया जाता है तो सुप्रीम कोर्ट उस पर रोक लगा सकता है. इसी वजह से इस सीमा को खत्म करने की मांग भी उठ रही है. कांग्रेस ने लोकसभा और राज्य सभा में 50 फीसदी आरक्षण के कोटे के बढ़ाने की मांग की है.
ओबीसी संशोधन कानून आने के बाद गुजरात में अगर पटेलों को आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार उन्हें ओबीसी में शामिल करती हैं तो पहले से उस फेहरिस्त में शामिल ठाकोर जैसी ओबीसी जातियां नाराज हो सकती हैं. ऐसा ही हरियाणा में जाट आरक्षण को लेकर है, उन्हें अगर ओबीसी की लिस्ट में शामिल किया जाता है तो दूसरी सैनी, गुर्जर जैसी जातियों की नाराजगी बढ़ सकती है. इसी तरह से महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को लेकर है. मराठा को ओबीसी में शामिल किया जाता है तो धनगर जैसी ओबीसी जातियां मुखर हो सकती हैं. इसीलिए 50 फीसदी के आरक्षण को दायरे को बढ़ाने की मांग हो रही है ताकि उनकी संख्या के आधार पर आरक्षण हो सके.
अधीर रंजन ने की थी ये मांग
कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा में कहा था कि हम इस बिल का समर्थन करते हैं और इसके साथ ही हम मांग करते हैं कि 50 फीसदी की बाध्यता पर कुछ किया जाए. कुछ प्रदेशों में इससे भी ज्यादा है. तमिलनाडु में 69 फीसदी आरक्षण है. इसी तरह बाकी राज्यों को भी कानूनी तौर पर ये ताकत दी जाए कि वो आरक्षण को 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ा सकें. साथ ही चौधरी ने मराठा आरक्षण पर भी अपनी बात रखी और बताया कि इस समाज की मांग काफी लंबी है. कांग्रेस ने सरकार से मराठा लोगों की मांगों को ध्यान में रखने की मांग भी की है. कांग्रेस के अलावा भी कई दलों ने 50 फीसदी आरक्षण के दायरे को खत्म करने की बात संसद में उठाई है.
कुबूल अहमद / गोपी घांघर