बिहार-यूपी के 'यादव लैंड' में कितनी सेंध लगा पाएंगे BJP के 'मोहन'? लालू-मुलायम कुनबे का गढ़ भेदने की क्या है रणनीति

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव के बिहार दौरे को लालू यादव कुनबे का गढ़ भेदने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. बीजेपी के मोहन बिहार और यूपी के यादव लैंड में कितनी सेंध लगा पाएंगे?

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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव

बिकेश तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 18 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 10:29 PM IST

कुछ ही महीने में लोकसभा चुनाव होने हैं और इससे पहले सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की अगुवाई कर रही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की रणनीति वोटों का नया समीकरण गढ़ने की है. बीजेपी ने हाल ही में हुए पांच राज्यों के चुनाव में तीन जगह जीतने के बाद जब मुख्यमंत्रियों के नाम का ऐलान किया, तभी इसकी झलक मिल गई थी. राजस्थान में भजनलाल शर्मा को सीएम बनाए जाने के पीछे कोर वोटर ब्राह्मण को सहेजने की कोशिश, मध्य प्रदेश में मोहन यादव को ताजपोशी के जरिए यूपी और बिहार के यादवों को संदेश देने की रणनीति बताई जा रही थी. बीजेपी की रणनीति अब धरातल पर भी दिखने लगी है.

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मोहन यादव के चेहरे को आगे कर बीजेपी ने अब बिहार और यूपी के यादव लैंड में सेंध लगाने की रणनीति पर काम भी शुरू कर दिया है. मोहन यादव आज बिहार में हैं. मध्य प्रदेश सरकार की कमान संभालने के बाद पहली बार बिहार पहुंचे मोहन यादव को पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में श्रीकृष्ण चेतना मंच के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित किया गया. वैसे तो यह कार्यक्रम गैर राजनीतिक बताया जा रहा है लेकिन इसके गहरे निहितार्थ हैं.

मध्य प्रदेश के सीएम मोहन यादव को पटना में किया गया सम्मानित (फोटोः ट्विटर)

मोहन यादव के इस दौरे के सियासी मायने भी तलाशे जाने लगे हैं. कहा तो यह भी जा रहा है कि बीजेपी यूपी और बिहार के यादव लैंड में, लालू यादव और मुलायम सिंह यादव के गढ़ में सेंध लगाने की रणनीति के तहत मोहन यादव को इन प्रदेशों में भी प्रचार के लिए उतारेगी और एमपी के सीएम का यह बिहार दौरा इसी की पहली कड़ी है. 

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बिहार और यूपी के यादव लैंड

बिहार की जातिगत जनगणना के मुताबिक सूबे की कुल जनसंख्या में यादव समाज की भागीदारी 14 फीसदी से अधिक है. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं और इन 40 में से करीब दर्जनभर सीटों पर जीत और हार का निर्धारण यादव मतदाता करते हैं. मधेपुरा, बांका, गोपालगंज, हाजीपुर और पटना के साथ ही सीमांचल के कई जिलों में भी यादव आबादी प्रभावी स्थिति में है.

बिहार में यादवों को साधने के लिए बीजेपी का मोहन कार्ड (फोटोः ट्विटर)

वहीं, यूपी की जनसंख्या में यादव समाज की भागीदारी अनुमानों के मुताबिक 10 फीसदी के करीब है. मैनपुरी, एटा, इटावा, फर्रुखाबाद के साथ ही पूर्वी यूपी के आजमगढ़, बलिया, गाजीपुर, देवरिया, जौनपुर समेत दर्जनभर से अधिक जिलों में यादव आबादी 15 फीसदी से भी अधिक है.

यादवों का वोटिंग पैटर्न

बिहार में यादव मतदाताओं के बीच लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को अधिक वोट मिलता रहा है. यादव आरजेडी के कोर वोटर माने जाते हैं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए इस वोट बैंक में भी सेंध लगाने में सफल रहा था. इंडिया टुडे एक्सिस माई इंडिया के ओपिनियन पोल के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में 56 फीसदी यादव वोट आरजेडी को मिले थे वहीं बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन को भी 27 फीसदी यादव वोट मिले थे.

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बिहार में लालू यादव की पार्टी को मिलता है यादवों का अधिक वोट (फाइल फोटो)

यूपी की बात करें तो सीएसडीएस और लोकनीति के ओपिनियन पोल के मुताबिक 60 फीसदी यादवों ने सपा और बसपा के महागठबंधन के पक्ष में मतदान किया था. बीजेपी को 23 और कांग्रेस पांच फीसदी यादवों के वोट मिले थे. 12 फीसदी यादव वोट अन्य को भी गए थे.

बीजेपी की स्ट्रैटजी क्या रही है

बीजेपी बिहार और यूपी में गैर यादव ओबीसी पॉलिटिक्स पर फोकस कर चलती आई है. लेकिन पिछले कुछ साल में पार्टी की रणनीति बदली है. बीजेपी ने यूपी से दो यादव नेताओं, हरिनाथ सिंह यादव और संगीता यादव को राज्यसभा भेजा तो साथ ही भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके सुभाष यदुवंश को भी एमएलसी बनाकर सूबे के उच्च सदन में भेज दिया. बीजेपी ने न सिर्फ विधानसभा-लोकसभा और विधानपरिषद-राज्यसभा के साथ ही सरकार और संगठन में भी यादव नेताओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाया है.

यूपी में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा के पक्ष में अधिक यादव मतदाता (फाइल फोटो)

बिहार में भी बीजेपी का फोकस गैर यादव ओबीसी को साधे रखने के साथ यादव मतदाताओं को भी पार्टी से जोड़ने की है. बीजेपी ने रामकृपाल यादव, हुकुमदेव नारायण यादव जैसे नेताओं पर भी दांव लगाया, नंदकिशोर यादव, नित्यानंद राय को भी आगे बढ़ाया. और तो और, पार्टी ने बिहार बीजेपी का प्रभारी भी भूपेंद्र यादव के रूप में एक बड़े यादव चेहरे को बना रखा था लेकिन पार्टी यादव वोट में बड़ी सेंधमारी नहीं कर सकी. बिहार में यादव वोटर्स पर लालू यादव का मैजिक ऐसा है कि उनका साथ छोड़कर गए पप्पू यादव की पार्टी और मुलायम सिंह यादव की सपा भी इस समाज में अपनी जमीन मजबूत नहीं कर सकी. 

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मोहन कितनी सेंध लगा पाएंगे?

बीजेपी ने अब अपनी रणनीति में बदलाव किया है. बीजेपी ने एक तरफ जातिगत जनगणना में यादवों की जनसंख्या बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए जाने का आरोप लगाया तो वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार में मंत्री नित्यानंद राय के नेतृत्व में बड़ा यादव सम्मेलन आयोजित करा यह संदेश भी दे दिए कि वह अब नॉन यादव ओबीसी पॉलिटिक्स से इंक्लूसिव ओबीसी पॉलिटिक्स की रणनीति पर चलेगी.

मोहन यादव के चेहरे को आगे कर पार्टी बिहार और यूपी के यादवों को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि आरजेडी और सपा जैसी पार्टियों की सरकार में परिवार से बाहर का कोई नेता मुख्यमंत्री नहीं बन सकता लेकिन बीजेपी किसी भी यादव नेता को सीएम बना सकती है. जिस यादव वोट को लालू की पार्टी से तोड़ने में मुलायम सिंह यादव जैसे कद्दावर नेता को सफलता नहीं मिल सकी थी, उस वोट बैंक में क्या मोहन यादव सेंध लगा पाएंगे? अगर लगा पाए तो कितनी?

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