'भारत रत्न' पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन हो गया है. सोमवार शाम को 84 साल की उम्र में प्रणब मुखर्जी ने अंतिम सांस ली. वो पिछले कई दिनों से बीमार थे और दिल्ली के आर्मी अस्पताल में भर्ती थे. बीते दिनों प्रणब मुखर्जी कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे, उनकी सर्जरी भी हुई थी. प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने ट्वीट कर प्रणब मुखर्जी के निधन की जानकारी दी.
पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न से सम्मानित प्रणब मुखर्जी को लिविंग कंप्यूटर भी कहा जाता था. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके दिमाग में कंप्यूटर की तरह सारी बातें फिट हो जाया करती थीं. ऐसे कई मौके आए जब प्रणब ने अपनी याद्दाश्त से सबको हैरान कर दिया.
वरिष्ठ पत्रकार गौतम लाहिड़ी aajtak.in से बात करते हुए बताते हैं कि उन्हें काफी पुरानी बातें सटीक याद रहती थीं. 1952 में किस सीट से कौन चुनाव लड़ा था, कितने वोटों के अंतर से हारा था, उन्हें जुबानी याद था. पिछले एक दो सालों से उनकी याद्दाश्त थोड़ी कमजोर पड़ने लगी, वो भी ज्यादा उम्र होने की वजह से. अगर दो साल पहले तक आप उनसे पूछते कि किस कैबिनेट में कौन मंत्री थे, उस काल में देश के इकोनॉमिक पैरामीटर क्या थे, इन्फ्लेशन रेट (मुद्रास्फीति दर) क्या थी? तो वो आपको पूरे विस्तार से समझाते.
एक प्रसंग का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार संसद में किसी सदस्य का रिटायरमेंट स्पीच चल रहा था. जिसमें डॉ. प्रणब मुखर्जी ने शेक्सपियर को कोट करते हुए कोई बात कही थी. तब हिदायतुल्लाह खान उपराष्ट्रपति हुआ करते थे. उन्होंने डॉ. मुखर्जी को टोकते हुए कहा था कि प्रणब जी आपने गलत कोट किया है. तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि मुझे पता नहीं, लेकिन मैं जो जानता हूं वही कहा है. मेरे ख्याल में मैं यह भूल नहीं सकता हूं. बाद में देखा गया कि प्रणब मुखर्जी सही थे और हिदायतुल्लाह खान गलत थे.
गौतम लाहिड़ी ने बताया कि खुशवंत सिंह ने अपनी एक किताब में भी इस प्रसंग का जिक्र किया है और बताया है कि प्रणब सही थे. वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि प्रणब मुखर्जी मास लीडर नहीं थे लेकिन वो एक रणनीतिकार थे. इंदिरा गांधी सरकार में प्रणब नंबर दो पर थे, जबकि उस दौर में कई बड़े-बड़े नेता थे, तो इससे समझा जा सकता है कि पार्टी के अंदर उनका कितना बड़ा कद था. इंदिरा जी को पता था कि इनके पास कई सारे आइडियाज हैं, जिसपर काम किया जा सकता है. प्रणब दा को उस समय के लोग पार्टी का चाणक्य भी कहते थे. क्योंकि वो सबको एक साथ लेकर चलने और सबके बीच सहमति बनाने में माहिर थे.
वरिष्ठ पत्रकार जयंतो घोषाल कहते हैं कि प्रणब मुखर्जी को टैक्स्ट बुक मैन कहा जाता है. उन्होंने मदर टेरेसा को भारत रत्न दिलाए जाने में डॉ. मुखर्जी की भूमिका को याद करते हुए बताया कि तब कई लोग टेरेसा को भारत रत्न दिलाने के खिलाफ थे, क्योंकि वो भारतीय नागरिक नहीं थीं. जवाब में प्रणब मुखर्जी ने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसमें कहा गया हो कि सिर्फ भारतीय नागरिक को ही भारत रत्न दिया जा सकता है. उन्होंने कहा कि मदर टेरेसा काफी समय से यहां रह रही हैं, भारतीयों की सेवा कर रही हैं. तो वो भी अब भारतीय हो गई हैं. इसलिए नागरिक नहीं होने की वजह से भारत रत्न नहीं देने का सवाल ही नहीं उठता.
बाद में प्रणब दा के दावे को संविधान विशेषज्ञों ने सही माना और फिर मदर टेरेसा को भारत रत्न दिए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली. यही नहीं, इसी आधार पर फिर नेल्सन मंडेला और खान अब्दुल गफ्फार को भी भारत रत्न दिया गया.
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने प्रणब मुखर्जी को याद करते हुए आजतक से बातचीत में कहा कि हमारी पार्टी के नेता के बारे में एक बात बहुत प्रचलित थी कि उनकी याद्दाश्त बड़ी कमाल की थी. उन्होंने आगे कहा कि जब भी हममें से किसी को इतिहास को लेकर कोई संशय होता था या कांग्रेस के इतिहास को लेकर कोई बात होती थी, देश के इतिहास को लेकर, तो तारीख के साथ उनको हर डिटेल याद रहती थी. जब इंडिया अगेन्सट करप्शन आंदोलन चल रहा था तो हम लोग उनसे लगातार बात करते रहते थे. वो जिस तरह अन्ना हजारे की टीम से संवाद करते थे तो काफी कुछ सिखाने वाला था. उनसे मुझे काफी कुछ सीखने को मिला. इस क्षति की कभी भरपाई नहीं हो पाएगी.
कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने आजतक से हुई बातचीत में कहा कि जितने दिन से मैं राजनीति में हूं तब से उन्हें मैं जानता हूं. उनका स्नेह मुझे हमेशा मिला. भारत की राजनीति का पितामह आज चला गया. उनके जितना जानकार कोई नहीं था, सुपर कंप्यूटर थे वो. कभी कोई बात हुई हो उनको कभी कुछ नोट नहीं करना पड़ता था. उनसे मिलने और सुनने से ज्ञान बढ़ता था.
दीपक सिंह स्वरोची