कोटा के भीतर कोटा पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आए अभी तीन महीने भी नहीं हुए हैं कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं. हरियाणा में नवगठित नायब सिंह सैनी सरकार ने पहली ही कैबिनेट मीटिंग में एससी-एसटी के लिए सब कैटेगरी बनाकर उन जातियों को इसमें शामिल करने का फैसला किया है जिनका प्रतिनिधित्व शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में कम है. हरियाणा के इस फैसले को एनडीए की सरकार वाले राज्यों के लिए लागू करने का संदेश भी बताया जा रहा है.
पीएम मोदी ने एनडीए की सरकार वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में एक-दूसरे की योजनाओं का अध्ययन कर उन्हें अपने राज्य में भी लागू करने का संदेश पहले ही दे रखा है. सवाल है कि ऐसे समय में जब महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में चुनाव, यूपी-बिहार जैसे राज्यों में उपचुनाव हो रहे हैं और विपक्ष तो विपक्ष, चिराग पासवान जैसे सहयोगी भी खुलकर इसका विरोध कर रहे हैं, बीजेपी सब कोटा के फॉर्मूले पर क्यों आगे बढ़ रही है? चिराग ने हरियाणा सरकार के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए फिर से साफ कर दिया है कि लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) इसका समर्थन नहीं करती है.
सब कोटा के फॉर्मूले पर क्यों बढ़ रही बीजेपी
अगले साल बिहार जैसे राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं जहां आरक्षण सेंटीमेंट से जुड़ा मुद्दा है. चिराग का विरोध हो या आरजेडी-कांग्रेस का, इसके पीछे जातीय राजनीति और जातीय आधार ही वजह बताए जाते हैं लेकिन बिहार के चुनाव से करीब एक साल पहले सहयोगी एलजेपीआर के विरोध के बावजूद बीजेपी ने सब कोटा के फॉर्मूले पर बढ़ने के संकेत दे दिए हैं तो इसके पीछे भी पार्टी की अपनी रणनीति है. इसे चार पॉइंट में समझा जा सकता है.
1- चुनावी असर का टेस्ट
बीजेपी की एक रणनीति कुछ मुद्दों पर जनता का मिजाज भांपने के लिए चुनावी टेस्ट की भी रही है. जातिगत जनगणना के मुद्दे पर जब कांग्रेस अधिक आक्रामक थी, तब भी मध्य प्रदेश-राजस्थान समेत चार राज्यों के चुनाव में बीजेपी ने इससे दूरी बनाए रखी थी. इसे भी बीजेपी की इस मुद्दे के चुनावी असर का अंदाजा लगाने की रणनीति से जोड़कर देखा गया.
चुनाव नतीजे बीजेपी के पक्ष में आए और पार्टी उसी रणनीति के साथ लोकसभा चुनाव में भी उतरी. हालांकि, लोकसभा चुनाव में उसे यूपी जैसे राज्य में नुकसान उठाना पड़ा. अब झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के साथ ही यूपी-बिहार समेत दर्जनभर राज्यों की 47 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. हरियाणा में बीजेपी की सरकार ने सब कैटेगरी पर इन चुनावी मौसम में कदम बढ़ा दिए हैं तो उसके पीछे भी यही रणनीति बताई जा रही है.
2- राज्यों में सेलेक्टिव काम
बीजेपी की एक रणनीति सेलेक्टिव होकर काम करने की भी हो सकती है. हरियाणा जैसे वे राज्य जहां बीजेपी एससी-एसटी वोट पर अधिक निर्भर नहीं है, पार्टी वहां इस दिशा में कदम बढ़ा सकती है. अगर इन राज्यों में इस पहल के नतीजे अच्छे रहे तो पार्टी इसे भविष्य में यूपी और बिहार जैसे जटिल जातीय राजनीति वाले राज्यों में भी एक मॉडल के रूप में लेकर जा सकती है.
3- दलित कैडर बनाने पर जोर
बीजेपी के लिए इस फैसले में 'खोने के लिए कुछ नहीं, पाने के लिए सारा जहां है' वाली स्थिति है. बिहार जैसे राज्य में दलित वोट के लिए पार्टी दूसरे दलों पर निर्भर है तो वहीं यूपी में भी पार्टी का गैर जाटव दलित वोटबैंक में भी कोई मजबूत पकड़ नहीं रही है. मध्य प्रदेश में भी आदिवासी वोटबैंक पर कांग्रेस की पकड़ मजबूत मानी जाती है.
यह भी पढ़ें: मोदी के हनुमान और 'मंत्री पद को लात' मारने वाली जुबान...आखिर क्या कहना चाहते हैं चिराग पासवान?
हरियाणा में भी कुमारी शैलजा के चेहरे पर दलितों का एक वर्ग कांग्रेस को वोट करता आया है जबकि बसपा जैसी पार्टी भी चार फीसदी के आसपास वोट शेयर के साथ अपनी चुनावी मौजूदगी दर्ज कराती रही है. ऐसे में बीजेपी की रणनीति नीतीश कुमार की तरह एससी-एसटी वर्ग में अपना कैडर बेस बनाने की है. पार्टी को उम्मीद है कि जिन जातियों को सब कैटेगरी में डाला जाएगा, वो जातियां उसके साथ आ सकती हैं.
4- बिहार में पहले से ही सब कैटेगरी
बिहार में पहले से ही दलित और महादलित हैं. ऐसे में हरियाणा सरकार के इस कदम का अधिक असर सूबे के चुनाव पर पड़ेगा, शायद पार्टी नेतृत्व को शायद ऐसा नहीं लगा होगा. दरअसल, नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार ने दलित वर्ग में लोक जनशक्ति पार्टी के कोर वोटर पासवान को छोड़कर बाकी दलित जातियों को महादलित कैटेगरी में डाल दिया था. इसका नतीजा ये हुआ कि जीतनराम मांझी भले ही महादलित में शामिल मुसहर बिरादरी से आते हैं लेकिन इस वर्ग के वोटबैंक पर उनके मुकाबले नीतीश की पकड़ कहीं अधिक मजबूत मानी जाती है. अब बीजेपी भी हरियाणा से इसी ट्रैक पर बढ़ती नजर आ रही है.
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 2004 का फैसला पलटते हुए कहा था कि आरक्षण के लिए राज्यों को कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार है. 6-1 के बहुमत से आए इस फैसले के बाद राज्य सरकारों के अनुसूचित जाति और जनजाति को लेकर सब कैटेगरी बनाने का रास्ता साफ हो गया था.
यह भी पढ़ें: 'दलितों को बांटने की कोशिश...', हरियाणा में कोटे के अंदर कोटा लागू होने पर भड़कीं बसपा सुप्रीमो मायावती
विपक्षी पार्टियों के साथ ही केंद्र की एनडीए सरकार में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी कोर्ट के इस फैसले पर विरोध जाहिर किया था. चिराग की पार्टी ने विपक्ष की ओर आहूत भारत बंद का भी समर्थन किया था. तब केंद्र ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया था कि वह इस पर कोई कदम नहीं उठाने जा रही.
बिकेश तिवारी