दलित...राष्ट्रवाद और अब कश्मीरी पंडित, कांग्रेस नहीं बीजेपी का विकल्प बनना चाहते केजरीवाल?

कश्मीर घाटी में शुरू हुई टारगेट किलिंग के बाद से कश्मीरी पंडित खौफ में हैं. वे घाटी छोड़ जम्मू जा रहे हैं. आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया है. इस मुद्दे पर उनका बोलना उनकी बदलती राजनीति का संदेश भी दे रहा है.

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आप संयोजक अरविंद केजरीवाल आप संयोजक अरविंद केजरीवाल

सुधांशु माहेश्वरी

  • नई दिल्ली,
  • 06 जून 2022,
  • अपडेटेड 6:26 PM IST
  • कश्मीरी पंडितों के लिए आप की रैली
  • दिल्ली में तिरंगा लगा राष्ट्रवाद को धार
  • आंबेडकर के नाम पर स्कूल-कॉलेज

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी 2 अक्टूबर 2012 को अस्तित्व में आई थी. उस समय पार्टी का सिर्फ एक उदेश्य था- भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देना. एक ऐसी सरकार जो सही मायनों में आम आदमी की हो और जहां पर राजनीति सिर्फ ईमानदारी की होती हो. अब 10 साल के अंतराल में आम आदमी पार्टी और उसकी राजनीति में काफी फर्क आ चुका है. AAP ने तीन बार दिल्ली में सरकार बना ली है, पंजाब में कांग्रेस को उखाड़ फेंका है और गुजरात में खुद को मजबूत करने की तैयारी है. हर चुनाव के साथ पार्टी ने अपने मुद्दों को भी बदला है. अब सिर्फ भ्रष्टाचार के दम पर वोटरों को नहीं साधा जा रहा है. अरविंद केजरीवाल की सियासी किताब में दलित, राष्ट्रवाद और कश्मीरी पंडित जैसे चैप्टर शामिल हो चुके हैं.

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कश्मीरी पंडितों की आवाज बने केजरीवाल

इस समय कश्मीर घाटी में टारगेट किलिंग की कई घटनाएं हुई है. कश्मीरी पंडितों को आतंकी अपनी गोली का निशाना बना रहे हैं. राहुल भट्ट को मार दिया गया है, विजय कुमार की हत्या हुई है, स्कूल टीचर रजनीबाला को मौत के घाट उतार दिया गया है. इन तमाम घटनाओं ने 1990 की उन खौफनाक और दर्दनाक यादों को फिर ताजा कर दिया है और कश्मीरी पंडित घाटी छोड़ जम्मू जाने को मजबूर हो रहे हैं. अब इस मुद्दे पर जम्मू-कश्मीर प्रशासन, केंद्र की मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा जा रहा है. विपक्ष सरकार पर ही इन टारगेट किलिंग का ठीकरा फोड़ रहा है. कांग्रेस ने बयानबाजी की, हैरानी नहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने निशाना साधा, हैरानी नहीं, महबूबा की पार्टी ने खरी खोटी सुनाई, वहां भी हैरानी नहीं. लेकिन ऐसे मुद्दों पर बोलने से बचने वाले आप संयोजक अरविंद कजेरीवाल भी इस बार सक्रिय नजर आ रहे हैं. वे जोर-शोर से कश्मीरी पंडितों का मुद्दा भी उठा रहे हैं और केंद्र पर निशाना भी साध रहे हैं.

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डैमेज कंट्रोल या फिर कोई और रणनीति?

कुछ समय पहले तक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स का मजाक बना कश्मीरी पंडितों के निशाने पर आने वाले अरविंद केजरीवाल पिछले कई दिनों से लगातार उस समुदाय की एक आवाज बनने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी पार्टी सड़क पर प्रदर्शन कर रही है, केजरीवाल लगातार मीडिया से बात कर रहे हैं और सोशल मीडिया पर भी एक ऐसा माहौल बनाने की तैयारी है जहां पर कश्मीरी पंडितों का सबसे बड़ा हितैषी बनने का प्रयास हो रहा है. सोमवार को पार्टी ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर जन आक्रोश रैली का आयोजन किया. ये सियासी कार्यक्रम कश्मीरी पंडितों की हो रही हत्याओं का विरोध करने के लिए रखा गया. 

रैली में अरविंद केजरीवाल ने कहा कि 1990 का दौर वापस आ चुका है. तब भी लोग घाटी को लेकर चिंतित थे, आज भी चिंतित हैं. जब भी कश्मीर में मर्डर होता है तो खबरें आती है कि गृह मंत्री ने उच्च स्तरीय मीटिंग बुलाई. अब कश्मीर एक्शन मांगता है, भारत एक्शन मांगता है, हिन्दुस्तानी एक्शन मांगते हैं, बहुत हो गई तुम्हारी मीटिंग, योजना क्या है तुम्हारे पास, प्लान क्या है तुम्हारे पास? देश को प्लान बताओ. एक्शन कब करोगे. मीटिंग बहुत हो गई तुम्हारी... कुछ एक्शन करके दिखाओ, लोग मर रहे हैं. इससे पहले भी कश्मीरी पंडितों को लेकर केजरीवाल ने बड़ा बयान दे डाला था. उन्होंने कहा था कि जब-जब केंद्र में बीजेपी आती है, घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हो जाता है.

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बीजेपी की पिच पर लड़ रहे केजरीवाल?

अब अरविंद केजरीवाल का कश्मीरी पंडितों का लगातार जिक्र करना कोई संजोग नहीं है. वे जानते हैं कि हिंदुत्व और राष्ट्रवाद बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत है. इन्हीं दो मुद्दों के दम पर उन्होंने अपनी एक ऐसी राजनीतिक बिसात तैयार की है जिसका तोड़ विपक्ष के पास अभी तक नहीं आया है. कांग्रेस का लगातार चुनाव हारने का एक बड़ा कारण भी बीजेपी का इन मुद्दों का प्रमुखता से उठाना रहा है. लेकिन अरविंद केजरीवाल ने अपनी राह बदली है. वे बीजेपी की पिच पर, उन्हीं के अंदाज में, उन्हीं के मुद्दों के साथ लोगों के सामने एक नया विकल्प खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी इसी कोशिश ने उन्हें दिल्ली में प्रचंड बहुमत वाली सरकार दे रखी है, पंजाब में भी अप्रत्याशित जीत मिल चुकी है और आगे के लिए उनका विस्तार वाला प्लान तैयार पड़ा है.

कश्मीरी पंडितों के मुद्दे पर दूसरे विपक्षी दल जब सोशल मीडिया के जरिए आरोप-प्रत्यारोप के फेर में फंसे हुए हैं, अरविंद केजरीवाल ने सड़क पर उतर कर फिर अपना पुराना रूप दिखा दिया है. जिस आंदोलनकारी मिजाज ने केजरीवाल को लोगों के सामने एक ईमानदार छवि वाला नेता बना दिया था, एक बार फिर उसी के सहारे वे कश्मीरी पंडितों की नई आवाज बनने की कोशिश कर रहे हैं. 

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यहां ये जानना जरूरी हो जाता है कि कश्मीरी पंडितों पर अगर केंद्र सरकार कोई योजना बनाएगी भी, अगर आतंकियों के खिलाफ किसी बड़े ऑपरेशन की तैयारी भी होगी...तो उसका ऐलान कभी भी पब्लिक डोमेन या फिर मीडिया के सामने नहीं किया जाएगा. एजेंसियों की बैठकें होंगी और फिर फैसले लिए जाएंगे. ये बात अरविंद केजरीवाल भी जानते हैं, लेकिन फिर भी कश्मीरी पंडितों को लेकर केंद्र की रणनीति जानने का प्रयास वे नहीं छोड़ रहे हैं क्योंकि ऐसा कर लोगों के बीच उनकी राष्ट्रवादी वाली छवि और ज्यादा प्रखर हो रही है.

पाकिस्तान को चैलैंज, केजरीवाल का 'मोदी अंदाज'

अब अरविंद केजरीवाल के राष्ट्रवादी चैप्टर में अगर कश्मीरी पंडितों का जिक्र है तो पाकिस्तान पर भी जोरदार हमला है. जिस पाकिस्तान को विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव में बीजेपी हर बार एक बड़ा मुद्दा बनाती है, अब आम आदमी पार्टी भी उस दिशा में आगे बढ़ चुकी है. कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों ने खुद को इस पाकिस्तान वाली सियासत से दूर रखा है. लेकिन केजरीवाल ने लोगों का मन पढ़ लिया है. उन्हें इस बात का अहसास है कि देश की राजनीति में राष्ट्रवाद वाली सियासत तब तक मजबूत नहीं हो सकती जब तक उसमें पाकिस्तान का जिक्र ना कर दिया जाए.

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ऐसे में कश्मीरी पंडितों का मुद्दा उठाने के साथ-साथ आप संयोजक पाकिस्तान को लेकर जो तल्ख तेवर दिखा रहे हैं जो काफी मायने रखता है. जन आक्रोश रैली में पाकिस्तान को ललकारते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि पाकिस्तानियों को हम चैलेंज करते हैं, अगर हिन्दुस्तान अपने पर आ गया तो पाकिस्तान नहीं बचेगा फिर. पाकिस्तान को छिछोरी हरकतें करनी बंद करनी चाहिए. वर्ना इसके बुरे परिणाम होंगे. आज इसी मंच से पाकिस्तान को ललकारना चाहता हूं, ज्यादा हिम्मत मत करो. ये छिछोरी हरकतें मत करो. अगर तुमको लगता है कि इस तरह की छिछोरी हरकतें करके तुम कश्मीर ले लोगे...कश्मीर हमारा था, हमारा है और हमारा रहेगा.

अब अरविंद केजरीवाल का ये तल्ख अंदाज बताने के लिए काफी है कि राष्ट्रवाद के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी भी बीजेपी को चुनौती देने वाली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने इसी अंदाज के दम पर लोगों के बीच में अपनी लोकप्रियता का परचम लहराया है और अपनी एक कठोर प्रशासक की छवि को मजबूत किया है. 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान गुजरात में रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा था कि मुझे सत्ता की, कुर्सी की परवाह नहीं है, मुझे चिंता मेरे देश की सुरक्षा की है. मैं अब लंबा इंतजार नहीं करने वाला हूं. चुन-चुनकर हिसाब लेना मेरी फितरत है. 

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दलित राजनीति में कहां खड़ी है आम आदमी पार्टी?

पीएम मोदी जैसा ही अंदाज अरविंद केजरीवाल भी दिखा रहे हैं. वे पाकिस्तान को चैलेंज कर सीधे-सीधे उसी राह पर चल रहे हैं  जहां से पीएम मोदी ने सफलता की सीढ़ियां चढ़नी शुरू की. वैसे राष्ट्रवाद के पहले दलित राजनीति में भी आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को कड़ी टक्कर देने का काम किया है. बहुजन समाज पार्टी का पहले की तुलना में थोड़ा कमजोर पड़ना, कांग्रेस का दलितों से मोह भंग दिखना, इन बदलते समीकरणों का बीजेपी ने काफी फायदा उठाया है. 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान 131 रिजर्व सीटों में से 77 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. दूसरी तरफ सरकार की उज्जवला योजना, जनधन योजना, ग्राम ज्योति योजना, मुद्रा योजना ने सीधे दलित समाज के एक बड़े तबके को मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया. 

अब इस मामले में भी आम आदमी पार्टी ने बीजेपी की सियासी पिच पर फिर नया विकल्प बनने का काम कर दिया है. इसकी शुरुआत दिल्ली से तब कर दी गई जब सरकारी स्कूलों में देशभक्ति पाठ्यक्रम का आगाज हुआ. इसके अलावा अलावा दिल्ली की सड़कों पर तिरंगा लगाना, दूसरे राज्यों में चुनावी प्रचार के दौरान तिरंगा यात्रा निकालना भी शामिल रहा. पंजाब चुनाव के दौरान तो बीआर आंबेडकर और भगत सिंह की तस्वीरों को सरकारी ऑफिस में लगाने का वादा कर ही पार्टी ने बड़ा सियासी दांव चल दिया. उस चुनाव पार्टी को जीत तो मिली ही, दलितों का एकतरफा वोट भी उन्हें पड़ा.  पंजाब की 34 रिजर्व सीटों में से 26 पर आम आदमी पार्टी ने जीत हासिल की थी.

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कांग्रेस की राजनीति पर आप का भविष्य निर्भर

ऐसे में राष्ट्रवाद पर बीजेपी के सामने नया विकल्प, दलित राजनीति में फिर एंट्री, जानकार मानने लगे हैं कि अरविंद केजरीवाल अब कांग्रेस नहीं बीजेपी का विकल्प बनना चाहते हैं. वे दिल्ली-पंजाब से निकल अब पूरे देश में खुद को और अपनी पार्टी को सक्रिय करना चाहते हैं. लेकिन उनकी ये सियासी महत्वाकांक्षा इस बात पर निर्भर करती है कि कांग्रेस आने वाले दिनों में कैसी राजनीति करने वाली है, वो और ज्यादा कमजोर होती है या फिर मजबूती से लड़ती है?

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