जरूरत से ज्यादा अनाज उगाने के बावजूद क्यों है देश में भुखमरी, क्या अनाज की बर्बादी है वजह?

देश में चल रहा किसानों का विरोध-प्रदर्शन इस बात का गवाह है कि अन्नदाता यानी किसान जो कुछ भी पैदा करता है, उसे उसका उचित मूल्य नही मिलता. दूसरी तरफ ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) में भारत की रैंक 103वीं है.

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अनाज की बर्बादी से हो रहा करोड़ों का नुकसान अनाज की बर्बादी से हो रहा करोड़ों का नुकसान

राहुल श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 24 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 9:31 AM IST
  • अनाज की बर्बादी से हो रहा 92 हजार करोड़ से अधिक का नुकसान
  • उपज को स्टोर करने और वितरित करने की क्षमता पर काम करने की जरूरत

देश में चल रहा किसानों का विरोध-प्रदर्शन इस बात का गवाह है कि अन्नदाता यानी किसान जो कुछ भी पैदा करता है, उसे उसका उचित मूल्य नही मिलता. दूसरी तरफ ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) में भारत की रैंक 103वीं है. इन दोनों बातों के अलाव एक तीसरी चौंकाने वाली सच्चाई है भारत में अनाज की बर्बादी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर ये बात दोहराते हैं कि कृषि उपज को स्टोर करने और वितरित करने की क्षमता पर तेजी से काम करने की जरूरत है. आंकड़े भी उनकी इस बात की गवाही देते हैं. भारत हर साल सस्ता या मुफ्त अनाज मुहैया कराने पर करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये खर्च करता है. जबकि, 2016 में एक स्टडी में अनुमान लगाया गया कि भारत में अनाज की बर्बादी के चलते सालाना 92,651 करोड़ रुपये का नुकसान होता है. 

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दशकों से जब भी अनाज की बर्बादी की बात आती है तो सरकार का वही घिसा पिटा जवाब होता है कि उसने जितना खरीदा, जितना सुरक्षित रखा और जितना बांटा, उसके मुकाबले ये बर्बादी कुछ नहीं है. हाल ही में 20 सितंबर को सरकार ने आंकड़ा जारी किया, जिसे अप्रैल में खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान ने पेश किया था. पासवान ने संसद को सूचित किया था कि भारतीय खाद्य निगम (FCI) द्वारा खरीदा गया सिर्फ 0.02 लाख टन अनाज बर्बाद हुआ. लेकिन अनाज की बर्बादी के सवाल पर सरकार सिर्फ एफसीआई का जिक्र करती है, जबकि जितने अनाज की बर्बादी होती है उसमें एफसीआई का योगदान बहुत छोटा है.

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बर्बादी रोकने के उपाय
पिछले कुछ वर्षों में एनडीए सरकार ने कृषि उपज के भंडारण पर काफी ध्यान केंद्रित किया है. संपदा नाम की 6,000 करोड़ रुपये की परियोजना को सरकारी और प्राइवेट प्लेयर्स की मदद से आगे बढ़ाया जा रहा है. यह कृषि उत्पादों के लिए एकीकृत सप्लाई कोल्ड चेन विकसित करने की एक राष्ट्रीय योजना है.

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एफसीआई के सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि एफसीआई के स्टोरेज में हर साल बर्बाद होने वाले अनाज की मात्रा को नीचे लाने का प्रयास किया जा रहा है. इसके लिए एफसीआई ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से एक अध्ययन करने को कहा है ताकि भंडारण सुविधाओं को वैज्ञानिक तरीकों का और बेहतर बनाया जा सके. वैज्ञानिक डॉ एसएन झा की अगुवाई वाली आईसीएआर टीम ने छह महीने पहले एफसीआई को एक रिपोर्ट सौंपी थी, और बताया जाता है कि एफसीआई राज्यों से बातचीत कर रहा है कि कैसे खेतों से लेकर स्टोर हाउस तक अनाज की बर्बादी रोकी जा सके

बर्बादी: दावा बनाम सच्चाई
रामविलास पासवान ने संसद में कहा था, 'आम लोगों की धारणा है कि एफसीआई के गोदामों में अनाजों की भारी बर्बादी होती है, लेकिन हम इसे नियंत्रित करने में सक्षम हैं और बर्बादी को नगण्य कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि 2015-16 में सरकार ने 62.3 मिलियन टन चावल और गेहूं खरीदा, जिसमें से 3,116 टन अनाज बर्बाद हो गया. ये कुल खरीद का सिर्फ 0.005 प्रतिशत है. 2016-17 में 61 मिलियन टन की कुल खरीद में से सिर्फ 0.014 प्रतिशत बर्बाद हुआ. 2017-18 और 2018-19 में अनाज की बर्बादी क्रमशः 0.003 प्रतिशत और 0.006 प्रतिशत रही. 2019-20 में सरकार ने 75.17 मिलियन टन अनाज खरीदा, जिसमें से 1,930 टन बर्बाद हुआ जो कुल खरीद का 0.002 प्रतिशत है.”

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इंडिया टुडे की टीमों ने अनाज की बर्बादी का जायजा लेने के लिए कई राज्यों का दौरा किया. मध्य प्रदेश के रीवा जिले में हमने पाया खरीद सिस्टम में लापरवाही बर्बादी की सबसे अहम वजह है. यहां 124 खरीद केंद्रों पर किसानों द्वारा लाए गए 11.4 लाख क्विंटल धान तौले जा चुके हैं. स्थानीय अधिकारियों का दावा है कि इसमें से 9.5 लाख क्विंटल पहले ही उठाया जा चुका है. लेकिन खरीदे गए धान पूरी तरह से अव्यवस्थित पड़े हैं. ये हालात तब हैं जब इन केंद्रों पर खरीद का जो लक्ष्य है, यह बमुश्किल उसका 50 फीसदी है. इन केंद्रों पर 70,000 किसान पंजीकृत हैं. उनमें से लगभग 59,000 को मैसेज भेजा गया है कि 27 दिसंबर तक अपनी फसल ले आएं. रिकॉर्ड के अनुसार 17 दिसंबर तक सिर्फ 29,000 किसान इन केंद्रों पर पहुंचे थे.

जितना धान अब तक खरीदा गया है उसके लिए किसानों को कुल 239 करोड़ रुपये भुगतान किया जाना है, लेकिन अब तक उनके खातों में सिर्फ 160 करोड़ रुपये जमा हुए हैं. इस बीच ठंड में पड़ रही ओस से बचाव के लिए कोई इंतजाम नहीं है. भंडारण सुविधाओं या पॉलीथीन शीट की कमी है जिससे खरीदा गया धान खुले में पड़ा है और ओस की वजह से उसमें नमी आ रही है. केंद्र के अधिकारी स्वीकार करते हैं कि जब तक ज्यादातर उपज अंदर होगी तब तक काफी नुकसान हो चुका होगा. रीवा से करीब 1,340 किलोमीटर दूर गुरदासपुर (पंजाब) में एफसीआई के गोदामों में धान की खरीद की जा रही है. एक दूसरे के ऊपर रखे गए चावल के कई बोरे फटे हुए हैं, जिनमें से दाने बिखरे हुए हैं. केंद्र के मैनेजर महिंदर पाल ने इंडिया टुडे को बताया कि कुछ कमियां हैं और उन्होंने केंद्रीय कार्यालय को कार्रवाई करने के लिए लिखा है.

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जरूरत से कम भंडारण क्षमता
भारत में भोजन एक तरह की राजनीति है. इसकी कमी से जनता में आक्रोश पनप सकता है और सियासी झटके लग सकते हैं. इसलिए सरकारें इस मामले में व्यावहारिक होने के बजाय सुरक्षित खेल खेलती हैं. देश में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ा है लेकिन भंडारण क्षमता विभिन्न स्तरों पर बहुत पीछे रह गई है. यही वजह है कि जब भी अच्छी पैदावार होती है तो कटाई के समय एफसीआई की सिरदर्दी बढ़ जाती है.

गेहूं को अच्छी भंडारण क्षमता के साथ 4-5 वर्षों के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है, लेकिन खराब भंडारण सुविधाओं के कारण बड़ी मात्रा में बर्बादी के डर से एफसीआई ने गेहूं के भंडारण का समय तीन साल और चावल का दो साल कर दिया है. 1 फरवरी, 2020 को एफसीआई के पास 103.50 लाख टन गेहूं था, जबकि राज्य की एजेंसियों के पास 197.07 लाख टन गेहूं था. 300.66 लाख टन के कुल गेहूं स्टॉक में से 4.27 लाख टन का स्टॉक 2016-17 से, 87.45 लाख टन 2017-18 से और 209 लाख टन गेहूं 2018-19 से था. चावल का हाल इससे भी बदतर है. सरकार के पास वर्ष 2017-18 से 1.8 लाख टन, 2018-19 से 153.7 लाख टन और 2019-20 से 114.5 लाख टन चावल है. 2019 में कुल गेहूं 341 लाख टन और चावल 443 लाख टन था. ये संख्या एफसीआई और राज्यों की भंडारण क्षमता से काफी ज्यादा है.

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भंडारण का खर्च और सब्सिडी का बोझ
एफसीआई की कुल भंडारण क्षमता 382.27 लाख टन है, जबकि राज्य की एजेंसियों की क्षमता 238.17 लाख टन है. इस 620.44 लाख टन क्षमता के अलावा, FCI और राज्यों के पास गेहूं के लिए अतिरिक्त 132 लाख टन अनाज है जिसके लिए कोई भंडारण सुविधा नहीं है. 2015 में सरकार ने धातुओं के बने साइलोज में 100 लाख टन के भंडारण को मंजूरी दी. 2020 तक साइलोज की क्षमता मात्र 6 लाख टन से कुछ ज्यादा हो सकी है. यूपीए सरकार ने 2008 में प्राइवेट इंटरप्रिन्योर गारंटी (PEG) स्कीम शुरू की थी जो बहुत उपयोगी साबित हुई. इसके तहत 142.83 लाख टन क्षमता विकसित की गई थी.

इस मार्च में जब एफसीआई और राज्य एजेंसियों ने अनाज की खरीद शुरू की, उस समय 1,500 करोड़ रुपये की कीमत का 18 लाख टन से ज्यादा गेहूं अवैज्ञानिक कैप भंडारण के तहत रखा गया था, जिसके बर्बाद होने की ज्यादा संभावना है. हालांकि, एफसीआई और सरकारी एजेंसियां इतनी ज्यादा मात्रा में अनाज भंडारण करती हैं तो इनमें से कुछ जो जल्दी खराब होने वाले अनाज हैं, उन्हें बचाने में कामयाब नहीं हो पातीं. खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "ये विरोधाभासी स्थिति है. सरकार स्टोर किए गए अनाज को तुरंत डंप नहीं कर सकती. अगर ऐसा हो तो तो बाजार में अनाज की कीमतें गिर जाएंगी और किसान अपनी लागत नहीं वसूल पाएंगे.

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अनाज की भारी बर्बादी
दावों और चुनौतियों से परे भारत अपने कृषि उत्पादन की बड़ी मात्रा में बर्बादी करता है. सरकार खुद पर लगे आरोपों के जवाब में एफसीआई के गोदामों में कम बर्बादी का हवाला देती है, लेकिन नुकसान बहुत व्यापक है. भारत में अनाज का कुल उत्पादन लगभग 30 करोड़ टन है और एफसीआई सिर्फ 8 करोड़ टन की खरीद करता है, जो भारत के कुल उत्पादन का करीब एक-चौथाई है. बचे हुए खाद्यान्न का ज्यादातर हिस्सा खुले में पड़ा रहता है.

कई तरह के अनाजों के मामले में भारती सर्वश्रेष्ठ उत्पादन करता है लेकिन दशकों का बर्बादी का चलन बना हुआ है. 2019-20 में कुल अनाज उत्पादन 292 मिलियन टन अनुमानित था, जबकि अनुमान के अनुसार, एक वर्ष में देश की कुल जनसंख्या को खिलाने के लिए 225-230 मिलियन टन की जरूरत होती है. फिर भी देश में बड़ी जनसंख्या को खाने का संकट रहता है और भारत इसके लिए संघर्ष कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) का अनुमान है कि भारत में जितने खाद्य पदार्थों का उत्पादन होता है, उसका 40 प्रतिशत से ज्यादा बर्बाद हो जाता है और इसकी लागत हर साल 14 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर हो सकती है.

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सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए तीन कानून पास किए हैं जिनमें खरीद और भंडारण में निजी क्षेत्र की भागीदारी भी शामिल है. लेकिन संवाद की विफलता ने हरियाणा और पंजाब जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में किसानों को नाराज कर दिया है. सरकार किसानों से बातचीत की कोशिश कर रही है और अब बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि वह किसानों की मांगों और आशंकाओं को दूर करने के लिए कितनी तैयार है.

 


 

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