बंगाल हिंसाः कलकत्ता HC के फैसले के खिलाफ SC पहुंची ममता सरकार, कहा- निष्पक्ष जांच की आस नहीं

हाईकोर्ट ने 19 अगस्त को पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा की जांच के लिए सीबीआई की जांच का आदेश दिया था. ममता बनर्जी की सरकार को करारा झटका देते हुए हाईकोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सीबीआई जांच का आदेश दिया था.

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (फाइल-पीटीआई) पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (फाइल-पीटीआई)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 01 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 9:35 PM IST
  • सीबीआई TMC के लोगों के खिलाफ केस दर्ज करने में बिजीः सरकार
  • HC का बंगाल में चुनाव बाद हिंसा की सीबीआई जांच का आदेश
  • ममता सरकार DGP की नियुक्ति के मुद्दे पर भी सुप्रीम कोर्ट पहुंची

पश्चिम बंगाल सरकार राज्य में विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई और उसने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. हाईकोर्ट ने चुनाव के बाद हुई हिंसा की सीबीआई जांच का आदेश दिया था. साथ ही ममता सरकार राज्य में DGP की नियुक्ति के मुद्दे पर भी सुप्रीम कोर्ट पहुंची है.

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में ममता सरकार की ओर से कहा गया कि उसे निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं है क्योंकि सीबीआई केंद्र के इशारे पर काम कर रही है. सीबीआई तृणमूल कांग्रेस (TMC) के  पदाधिकारियों के खिलाफ मामले दर्ज करने में व्यस्त है. 

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हाईकोर्ट ने 19 अगस्त को पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा की जांच के लिए सीबीआई की जांच का आदेश दिया था. ममता बनर्जी की सरकार को करारा झटका देते हुए हाईकोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सीबीआई जांच का आदेश दिया था. साथ ही कलकत्ता हाईकोर्ट ने हिंसा की घटनाओं की जांच के लिए एसआईटी के गठन का भी आदेश दिया था.

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हाईकोर्ट की निगरानी में होगी जांच

एसआईटी के गठन में पश्चिम बंगाल कैडर के सीनियर अधिकारियों को भी शामिल किया जाएगा. बंगाल की तृणमूल सरकार की ओर से हिंसा की घटनाओं की सीबीआई जांच का विरोध किया गया था. हाईकोर्ट ने बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा के दौरान हुए हत्या, बलात्कार के मामलों की सीबीआई जांच का आदेश दिया. सीबीआई और एसआईटी की जांच हाईकोर्ट की निगरानी में होगी. हाईकोर्ट ने सीबीआई को 6 सप्ताह के भीतर अपनी जांच रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है.

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DGP की नियुक्ति मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका

ममता सरकार DGP की नियुक्ति के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. याचिका में पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा है कि UPSC के पास न तो अधिकार क्षेत्र है और न ही उसमें किसी राज्य के DGP पर विचार करने और नियुक्त करने की विशेषज्ञता है. यह भारतीय संघीय शासन प्रणाली के अनुरूप नहीं है.

यह अर्जी ममता बनर्जी सरकार द्वारा 1986 बैच के एक IPS अधिकारी को राज्य के कार्यवाहक DGP के रूप में नामित करने के एक दिन बाद दाखिल की गई है, जबकि नए DGP के चयन को लेकर राज्य और UPSC के बीच खींचतान चल रही है. 

राज्य सरकार के अनुसार, यूपीएससी ने पद के लिए सुझाए गए नामों की बंगाल सरकार की सूची में कई खामियां निकाल दी है. राज्य सरकार ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें एक अच्छी तरह से परिभाषित क्षेत्र में समन्वय से काम करती हैं, लेकिन उसी समय वो एक दूसरे से स्वतंत्र होती हैं. 

जल्द सुनवाई की मांग

वकील  सिद्धार्थ लूथरा ने आज बुधवार को CJI एनवी रमना से जल्द सुनवाई की मांग की है. लूथरा ने पीठ को बताया कि राज्य में एक नियमित डीजीपी नहीं है और शीर्ष अदालत ने एक कार्यवाहक पुलिस प्रमुख की नियुक्ति पर रोक लगा रखी है. 
 
अपने आवेदन के माध्यम से, राज्य ने शीर्ष अदालत से 2018 में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे द्वारा दायर एक याचिका को अंतिम रूप देने के लिए अनुरोध किया है, जिसमें पुलिस सुधारों पर 1996 के प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को दूर करने के लिए राज्यों द्वारा पारित कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. 

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सितंबर 2006 में दिए गए इस फैसले ने राज्यों के DGP के चयन और न्यूनतम कार्यकाल से संबंधित विशिष्ट निर्देश जारी किए थे. इसके अनुसार, राज्य के DGP का चयन राज्य द्वारा UPSC द्वारा उस रैंक पर पदोन्नति के लिए सूचीबद्ध विभाग के तीन वरिष्ठतम अधिकारियों में से किया जाएगा.

 

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